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बुधवार, 3 अक्टूबर 2007

सब हैं त्रस्त !

जीवन की जटिल समस्याओँ को
उलझते देख हम सब हुए हैँ
पस्त
कैसे सुलझाएँ उलझी गुथियोँ को
उलझते देख हम सब हुए हैँ
त्रस्त
अकेले ही इस जटिल जीवन को
जीने को हम सब हुए हैँ
अभिशप्त
दूर कर न पाते अपने दुखोँ को
पर सुख पाने की चाह मेँ हैँ
व्यस्त
लेकिन हे मन ----
आशा के सूरज को होने न देना
अस्त
शालीनता औ' मधुर मुस्कान
बिखेरते हुए रहना सदा
मस्त !!!
(बेटे विद्युत द्वारा बनाया चित्र अनुमति के साथ)