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शुक्रवार, 16 मई 2014

कजरी बंजारन


 ट्रैफिक लाइट पर रुक कर अजनबी बंजारन से नज़र मिलना और उसकी मुस्कान से सुकून पा जाना...ऐसे अनुभव याद रह जाते हैं. सड़क के किनारे टिशुबॉक्स एक तरफ किए बैठी उस खूबसूरती को देखती रह गई थी, फौरन कैमरा निकाल कर क्लिक किया ही था कि उसकी नज़र मुझसे मिली....

पल भर के लिए मैं डर गई लगा जैसे रियाद में हूँ जहाँ सार्वजनिक स्थान पर फोटो खींचना मना है.. दूसरे ही पल  हम दोनों की नज़रें मिलीं और मुस्कान का आदान प्रदान हुआ तो चैन की साँस आई कि मैं अपने ही देश में  हूँ ...फिर भी बिना इजाज़त फोटो लेने की झेंप दूर करने के लिए चिल्लाई, " क्या नाम है तुम्हारा.....एक फोटो खींच लूँ?" सिर हिला कर वह भी वहीं से चिल्ला के कुछ बोली और फिर से मुस्कुरा दी.. बस 'ईईईईई' इतना ही सुनाई दिया....उसकी पोशाक और रंग देखकर ईईई से कजरी नाम का ही अनुमान लगाया...वह अपनी मासूम मुस्कान के साथ  मेरे दिल में उतर गई..

फोटो तो मैं पहले ही खींच चुकी थी लेकिन दिल किया कि कार एक साइड पर रोक कर उसीकी बगल में बैठ जाऊँ लेकिन उस वक्त ऐसा करना मुमकिन नहीं था. दुबारा उसी रास्ते से कई बार गुज़री लेकिन मुलाकात न हो पाई. कभी कभी ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर किसी अजनबी से पल भर के लिए हुई एक मुलाकात भी भुलाए नहीं भूलती.

कमली(पागल) ही थी जो उसकी बगल में बैठने की चाह जगी थी... अचानक एक दिन पुरानी तस्वीरें देखते हुए अपनी एक तस्वीर पर नज़र गई. दमाम से रियाद लौटते वक्त कार खराब हो गई थी..पति वर्कशॉप गए और मैं घर के नीचे ही फुटपाथ पर बैठ गई थी. सामान के साथ फिर से ऊपर जाने की हिम्मत नहीं थी. उस तौबा की गर्मी में इंतज़ार आसान नहीं थी लेकिन हालात ऐसे थे कि चारा भी नहीं था. उसी दौरान न जाने कब छोटे बेटे ने तस्वीर उतार ली थी..

दुबारा उस तस्वीर को देखते ही कजरी बंजारन की याद आ गई. मुझमें और उसमें ज़्यादा फ़र्क नहीं लगा...
बच्चों जैसे खुश होकर दोनों तस्वीरों को मिला कर देखने लगी...तस्वीरों की समानता ने ही खुश कर दिया...
कितनी ही ऐसी छोटी छोटी खुशियाँ ज़िन्दगी को खुशगवार बना देती हैं..


मेरे देश का रेतीला रंगीला राजस्थान---वहाँ  के प्यारे लोग और उनका मनमोहक रहनसहन ...





बुधवार, 14 मई 2014

बेटे का मुबारक जन्मदिन

  

भूली बिसरी यादों की महक के साथ बेटे का जन्मदिन मनाना भी अपने आप में एक अलग ही अनुभव है...जैसे माँ पर लिखते वक्त कुछ नहीं सूझता वैसे ही बच्चों पर लिखना भी आसान नहीं... माँ और बच्चे का प्यार बस महसूस किया जा सकता है.

 जैसे अभी कल की ही बात हो , नन्हा सा गोद में था फिर उंगली पकड़ चलना सीखा, फिर दौड़ने लगा 


वक्त ने सख्त इम्तिहान लिया जिसमें अव्वल आया. जद्दोजहद स्कूल से शुरु हुई , दर्द ने जकड़ा तो बैसाखी का सहारा लिया जिसने स्कूल से लेकर कॉलेज तक साथ दिया.


2008 में डिग्री लेने के बाद एक नई ज़िन्दगी जीने की राह चुनी. 2009 में दर्द से निजात पाने के लिए अपने दोनों हिप जोएंटस एक साथ बदलवा दिए. सर्जरी के दो महीने बाद ही अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के लिए तैयार था. बस उसके बाद तो फिर रुकने का नाम नहीं. 
फिर तो टीन एज के सपने, जवानी की मस्ती, बेफिक्री का जीना सब कुछ करते हुए अब भी एक ही जुमला सुनने को मिलता है कि अभी तो मस्ती शुरु हुई है.


बेटे की आत्मशक्ति पर जितना यकीन है उतना ही यकीन दुआओं के जादुई असर पर है. रियाद, दुबई ईरान और अपने देश के परिवार , मित्रजन ..खासकर ब्लॉग जगत के कई मित्र जिन्हें भुलाना मुमकिन नहीं. उनकी दुआओं का असर है तभी आज बेटा ज़िन्दगी के अलग अलग पड़ावों का आनन्द लेता हुआ आगे बढ़ रहा है. 



सोमवार, 12 मई 2014

सुबह का सूरज




ऊँची ऊँची दीवारों के उस पार से 
विशाल आसमान खुले दिल से 
मेरी तरफ सोने की गेंद उछाल देता है 
लपकना भूल जाती हूँ मैं 
 टकटकी लगाए देखती हूँ
नीले आसमान की सुनहरीं बाहें 
और सूरज की सुनहरी गेंद 
जो संतुलन बनाए टिका मेरी दीवार पर 
   पल में उछल जाता फिर से आसमान की ओर
छूने की चाहत में मन पंछी भी उड़ता
खिलखिलातीं दिशाएँ !!





गुरुवार, 8 मई 2014

नो वुमेन नो क्राई..नो नो...वुमेन नो ड्राइव

तुम बहुत नाज़ुक हो कोमल हो
बला की खूबसूरत हो तुम
चेहरा ढक कर रखो हमेशा
बुर्के में रहो बिना मेकअप के
आँखों पर भी हो जालीदार पर्दा
काजरारी आँखें लुभाती हैं ............
मर्द मद में अंधा हो जाता है
ग़र कोई मर्द फिसल गया
अपराधी कहलाओगी

तुम बहुत नाज़ुक हो कोमल हो
तुम घर के अंदर महफ़ूज़ हो
तुम्हारे पैर बेहद नाज़ुक हैं
दुनिया की राहें हैं काँटों भरी
मैं हूँ न तुम्हारा रक्षक
बाकि सारी दुनिया है भक्षक ..........
घर की चारदीवारी में रहो
पति परिवार की प्यारी बनकर
मेरे वारिस पैदा करो बस

तुम बहुत नाज़ुक हो कोमल हो
मैं शौहर हूँ और शोफ़र भी
कार की पिछली सीट पर बैठी
राजरानी पटरानी हो तुम मेरी
औरत के लिए ड्राइविंग सही नहीं ...........
डिम्बाशय गर्भाशय रहेंगे स्वस्थ
मुश्किलें और भी कई टलेगीं
ड्राइव करना ही आज़ादी नहीं
मर्द ही निकलते हैं सड़कों पर

ऐ औरत ! ख़ामोश रहो !
आज़ादी की बेकार बातें न करो
सौ दस कोड़े खाकर क्या होगा
जेल जाकर फिर बाहर आओगी
फिर आज़ादी का सपना लोगी
हज़ारों हक पाने को मचलोगी ............
हसरतों की  रंगबिरंगी पर्चियाँ
बनाओ दफ़नाओ,बनाओ दफ़नाओ
बस यही लिखा है तुम्हारे नसीब में

आख़िरी साँस तक लड़ने की ठानी .........
क्या है आज़ादी  समझ गई औरत !





सोमवार, 5 मई 2014

अपनापा




रोज़ की तरह पति को विदा किया
दफ़तर के बैग के साथ कचरे का थैला भी दिया
दरवाज़े को ताला लगाया
फिर देखा आसमान को लम्बी साँस लेकर
सूरज की बाँहें गर्मजोशी से फैली हैं
बैठ जाती हूँ वहीं उसके आग़ोश में..  
जलती झुलसती है देह
फिर भी सुकूनदेह है यूँ बाहर बैठना
चारदीवारी की कैद से बाहर 
ऊँची दीवारों के बीच 
नीला आकाश, लाल सूरज, पीली किरणें 
बेरंग हवा बहती बरसाती रेत का नेह 
गुटरगूँ करते कबूतर, बुदबुदाती घुघुती 
चहचहाती गौरया 

यही तो है अपनापा !!