नर और नारी
सागर किनारे बैठे थे
झगड़ा करके ऐंठे थे
रेत पर नर नारी लिखते
लम्बे वक्त से मौन थे
नर ने मौन तोड़ा
नारी को लगा चिढ़ाने
दो मात्राओं की बैसाखियाँ
लिए हर दम चलती नारी
मै बिन मात्रा के हूँ नर
बिना सहारे चलता हरदम
नारी कहाँ कम थी
झट से बोल उठी
दो मात्राओं से ग़रीब
बिन आ-ई के फक़ीर
कमज़ोर हो तुम
बलशाली होने का
नाटक करते हो
सुन कर नर भड़का
नारी का दिल धड़का
तभी अचानक लहरें आईं
रेत पर लिखे नर नारी को
ले गई अपने साथ बहा कर
गुम हो गए दोनों
सागर में
जीवन का ज्वार-भाटा भी
ऐसा ही तो होता है .... !!
38 टिप्पणियां:
बेहतरीन और अनूठी भावना अभिव्यक्ति .....आभार आपका !
Sach! Jeevan ka jwaar bhata aisahee hota hai!
बहुत खूब....
गहन अभिव्यक्ति
बेहतरीन!
सादर
बढ़िया एवं अनूठी ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
खुबसूरत अभिवयक्ति....
मीनाक्षी ,सच में आज तो तुमने बहुत बड़ी उलझन में डाल दिया है ..... अब तुम्ही बताओ इतना प्यारा सा सोचने पर तुम्हे नमन करूँ या दुलार ..... मन बहुत भर आया है .....
मीनाक्षी ,सच में आज तो तुमने बहुत बड़ी उलझन में डाल दिया है ..... अब तुम्ही बताओ इतना प्यारा सा सोचने पर तुम्हे नमन करूँ या दुलार ..... मन बहुत भर आया है .....
सुन्दर बहुत ही सुन्दर |
मीनाक्षी ,सच में आज तो तुमने बहुत बड़ी उलझन में डाल दिया है ..... अब तुम्ही बताओ इतना प्यारा सा सोचने पर तुम्हे नमन करूँ या दुलार ..... मन बहुत भर आया है .....
मीनाक्षी जी, बात तो लाख टके की है,पर लोगों की समझ में आए तब।
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कम्प्यूटर से तेज़...!
सुज्ञ कहे सुविचार के....
गहन अभिव्यक्ति के साथ ....सटीक प्रस्तुति
बिल्कुल अलग ख्यालो की उम्दा प्रस्तुति………जीवन का गणित समझाती हुई।
नर नारी के झंझट में हम झगड़ते रहते है और ऐसे ज्वार भाटा जीवन मैं आकर हलचल मचाते रहते है
हम्म यह एक नया कोण है :)
कल 09/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
sach bahut khub kaha aap ne
anoothi...achchhi prastuti
वाह ...बहुत ही बढि़या ... ।
आपने बहुत बड़ी बात कह दी है मिनाक्षी जी .. काश ये सभी कि समझ में आ जाए .. इतने उम्दा लेखन के लिये दिल से बधाई ..
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
बहुत ही अनूठी कविता लिखी है.पढ़कर अच्छा लगा.हम बेकार की बातों में उलझे होते है और समय का ज्वार भाटा अपना काम कर जाता है.
घुघूती बासूती
यह चिरन्तन रार है
फिर भी सृजन की धार है
चहुँ ओरजहाँ गुलजार है :)
जीवन का ज्वार भाटा, नर नारी संबंध और उनका सामनजस्य, कितना कुछ समेट लिया आपने इस भावनात्मक कविता में.
स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें.
जीवन का ज्वार भाटा और प्रेम क्या बात है मीनाक्षी जी । सुंदर अभिव्यक्ति ।
आज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो.
जीवन का ज्वार भाटा ऐसा ही होता है ... सच लिखा है आपने ... नर और नारी ... मात्राओं का फर्क पर फिर ही एक ही तो हैं .. नोकझोंक तो चलती रहती है ... पर अक्षर तो दोनों एक ही हैं ... पता नहीं शब्दों को छोड़ कर मात्राओं के झगडे में क्यों पड़े रहते हैं ...
नमस्कार मीनाक्षी जी ...
बहुत सुन्दर है.....
आप भी जरुर आये मेरी छोटी सी दुनिया में
MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
or
http://www.neelkamalkosir.blogspot.com
bahut sundar
बहुत खूब - अनुपम प्रस्तुति
नर ने मौन तोड़ा...!!! हम्मम
क्या बात है मीनाक्षी जी । जैसा आपने नर नारी के साथ किया है ऐसा ही खेल अंग्रेजी के सब्द वूमन के साथ भी होता है कि देअर इज ए मेन इन एवरी वूमन । WOMAN
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कमाल की प्रस्तुति है आपकी
नर नारी की तकरार और
फिर समुन्द्र की लहर में विलय.
वाह! आनंद आ गया पढकर.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
जीवन का ज्वार भाटा....हाँ शायद ऐसा ही होता...
बहुत बढ़िया रचना.
जीवन का ज्वार भाटा....हाँ शायद ऐसा ही होता...
वाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको... सादर वन्दे
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