जाने क्यों आज सुबह से ....
मेरी 'कविता' रूठी है मुझसे
दूसरी कविताओं को देख कर
वैसा ही बनने की चाहत जागी है उसमें...
मेरे दिए शब्द और भाव अच्छे नहीं लगते उसे
दूसरे का रूप और रंग मोहते हैं उसे
मेरी 'कविता' नहीं जानती, समझती मुझे
मैं भी उसे उतना ही दुलारती सँवारती हूँ
जितना कोई और ............
जाने क्यों उसे भी आज के दौर की हवा लगी है...
अपने पास जो है उससे खुश नहीं....
दूसरे का रूप-रंग देख कर ललचाती है...
उन जैसा बनने की आस करने लगी है...
जो अपने पास है , वही बस अपना है...
यह समझती ही नही....
जाने क्यों हीन-भावना से उबरती नहीं ...
अपने स्वाभाविक गुणों को पहचानती नहीं
पालन-पोषण में क्या कमी रह गई...
कविता मेरी क्यों कमज़ोर हुई...
मैं हैरान हूँ , परेशान हूँ , उदास हूँ !!
देख मुझे मेरी रूठी कविता ठिठकी
उतरी सूरत मेरी देख के झिझकी
फिर सँभली....रुक रुक कर बोली....
"कुछ पल को कमज़ोर हुई...
नए शब्द औ' भाव देख के
आसक्त हुई...
तुम मेरी जननी हो...
मैं तुमसे ही जनमी हूँ ...जो हूँ , जैसी हूँ ..
यही रूप सलोना मेरा अपना है !!"
26 टिप्पणियां:
कविता भी तो बच्चों की तरह है ... सर्जन होता है .. वो बाहर की दुनिया में जाती है नयी चीज़ें देखती है ... रूठ जाती है ... फिर वापस लौट कर जहाज पे आ जाती है ... अपनों से कोई लंबे समय तक कहाँ रूठ के रह सकता है ...
kavita kabhi kamjor nahi hoti yah pathhak ki sonch par nirbhar karti hai
kave ke baho me hai ,lakin lekha bahut he sundar
आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
अपनी कविता से वार्तालाप!
बहुत सुंदर!
भावपूर्ण!
Jitne pyaar se aapne apni kavita ko samjha dia kaash utne pyar se log apni har 'rachna' ko samjha paate... na jaane kyu unhe bharosa nahihota k koshish karne par samajh jayegi...jaane kyu use chhod dete hain uske haal par... bas ye keh kar k ZIMMEDARI TUMHARI HOGI :(
दूसरे की कमीज कितनी भी उजली हो आती अपनी ही काम में
apni khushboo hi to kavita ko alag banaati hai ...ye svabhavikta hi bejod hoti hai ..kavita achchhi lagi...
सलोनी है क्योंकि अपनी है.
एक कवि का अंतर्द्वंद्व !बहुत सुंदर कविता ।
अति सुंदर,
साभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अब जब सभी रूठते मनाते हैं - तो कवि और कविता के बीच यह खेल क्यों न हो ? आखिर रूठना मनाना भी तो अपनापन ही है न :)
क्या कहने, बहुत सुंदर रचना।
बधाई
अपनी कविता के रूप में खुद से बातें अच्छी लगीं ....
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना...बहुत बढ़िया...
दिल को छूती....ये भी एक तरीका रहा...
अलग सी है यह रचना मगर दिल को छूती है ...शुभकामनायें आपको !!
bahut achchhe bhav, bahut achchhi kavita..
चार स्माईली - :) :) :) :)
ruthe ko itna manaya ... jab na ruthi ho to, hai n jadui baat
आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता और आपका ब्लॉग।
सादर
बहुत ही प्यारी रचना...
बेहतरीन अभिवयक्ति...
रूठी कविता को आखिर मना ही लिया है आपने । माँ से न माने ऐसी बेटी होती ही नही ।
दिल को छूती हुई कविता ,, शब्द अपनी गाथा कहते हुए से है .. बधाई
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
बहुत ही बेहतर अपनी सी कविताएं...
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