आजकल घर की सफ़ाई का अभियान चल रहा है... दोनों बेटों की मदद से रुक रुक कर पूरे घर की सफ़ाई की जा रही है... दो तीन दिन में घर को रंग रोगन से नया रूप भी दे दिया जाएगा... इस बीच जाने क्या हुआ कि आँखें स्क्रीन पर टिक ही नहीं पातीं.... काली चाय को ठंडा करके उससे बार बार आँखें धोकर कभी काम तो कभी यहाँ उर्जा पाने आ बैठती हूँ कुछ पल के लिए लेकिन फिर लिखना पढ़ना न के बराबर ही है.....बस सैर को नियमित रखने की कोशिश जारी है .........
सैर के लिए तन्हा
रात के पहले पहर निकलती हूँ
गर्मी के मौसम में
लाल ईंटों की पगडंडियों पर चलती हूँ
जो लगती हैं धरती की माँग जैसी
लेकिन बलखाती सी..
हरयाली दूब के आँचल पर
टंके हैं छोटे बड़े पेड़ पौधे बूटेदार
कभी वही लगते धरा के पहरेदार
सीना ताने रक्षक से खड़े हुए
कर्तव्य पालन के भाव से भरे हुए...
उमस घनेरी, घनघोर अन्धेरा
अजब उदासी ने आ घेरा
फिर भी पग पग बढ़ती जाऊँ
आस के जुगनू पथ में पाऊँ
मन्द मन्द मुस्काते फूल
खिले हुए महकते फूल
कहते पथ पर बढ़ते जाओ
गर्म हवा को गले लगाओ !!