भरम में खड़े हैं शायद वो चलेंगे साथ दो कदम
तन्हा बुत से बने हैं उस पल का इंतज़ार है बस
रुके हैं वहीं जहाँ से शुरु किया था सपनों का सफ़र
हो जाए शायद उनपर मेरी सदाओं का कुछ असर
न हुए न होंगे कभी हमारे थे वो संगदिल सनम
दीवाने हुए थे यकीं था हमें भी मिलेंगे अगले जनम
सब्र कर लिया जब्त कर लिया बहते जज़्बातों को
पर कैसे रोकें दिल की दरारों से रिसते इस दर्द को........!
12 टिप्पणियां:
आदरणीय मीनाक्षी जी
नमस्कार !
यथार्थमय सुन्दर पोस्ट
कविता के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है.
Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.
बहुत शानदार अभिव्यक्ति।
हमेशा की तरह खूबसूरत मीनाक्षी दी । शुभकामनाएं ......यूं ही लिखती रहें
बहुत संवेदनशील रचना ..
क्या अब आपने त्रिपदम लिखने बंद कर दिए हैं... क्यों?
Subhan'Allah ( سبحان الله)
Subhan'Allah ( سبحان الله) is
سبحان الل
बहुत बढ़िया...
वाह..! क्या बात है ....आनंद आ गया
बड़े दिनों बाद की आमद सुकूनदायक रही..
सुन्दर अभिव्यक्ति।
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