मानव प्रकृति ऐसी है कि एक बार जिससे जुड़ जाए फिर उससे टूटना आसान नहीं होता चाहे फिर 7 महीने और 10 दिन का अंतराल ही क्यों न आ जाए.... इससे पहले भी लम्बे अंतराल आए लेकिन घूम फिर कर फिर आ पहुँचते इस विराट वट वृक्ष की छाया तले..... जड़े गहरी हैं... शाखाएँ अनगिनत...हर बार नन्हीं नन्हीं नई शाखाएँ उभरती दिखाई देतीं.... पुरानी और भी मज़बूत होती , जड़ों से जुड़ती दिखती हैं.....
आजकल एकांतवास में हैं...सहेज कर रखे हुए अपने ब्लॉग को एक अरसे बाद जतन से खोला....एक अजब सा भाव मन को छू गया.....उदास , ख़ामोश और खाली खाली सा लगा.... पहले सोचा वादा करते हैं कि अब नियमित आते रहेंगे, फिर सोचा नहीं नहीं.... अगर न पाए तो....... कितनी बार ऐसा हो चुका है कि नियमित होने का वादा निभा नहीं पाए......
जब भी मौका मिलेगा ज़िन्द्गी के इस सफ़र की छोटी छोटी यादों का ज़िक्र करने आते रहेगे.....
11 टिप्पणियां:
इन्तजार रहेगा..शुभकामनाएँ.
इतने दिन बाद आपको देखकर अच्छा लगा -ब्लागिंग कोई ऐसा कमिटमेंट भी नहीं है -अब आ गयी हैं तो फिर स्वागत है !
स्वागत है आपका दी...
जल्दी ही नियमित हों हम प्रती्क्षारत हैं
स्वागत फ़िर से ब्लाग जगत में आने का।
बहुत समय बाद आपका आना हुआ ..आगे इंतज़ार है ..
welcome back :)
वायदा तो तोड़ने के लये किये जाते हैं :-) जब समय मिले तब लिखें।
स्वागत है ।
सुस्वागतम!!
अपनी इच्छा और मूड से लिखिए...नियमित होने की कोई बाध्यता नहीं है....
इंतज़ार रहेगा
स्वागत है आपका
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