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गुरुवार, 24 मार्च 2011

इंतज़ार है बस
























भरम में खड़े हैं शायद वो चलेंगे साथ दो कदम
तन्हा बुत से बने हैं उस पल का इंतज़ार है बस 
रुके हैं वहीं जहाँ से शुरु किया था सपनों का सफ़र
हो जाए शायद उनपर मेरी सदाओं का कुछ असर 
न हुए न होंगे कभी हमारे थे वो संगदिल सनम
दीवाने हुए थे यकीं था हमें भी मिलेंगे अगले जनम















सब्र कर लिया जब्त कर लिया बहते जज़्बातों को
पर कैसे रोकें दिल की दरारों से रिसते इस दर्द को........! 
                 

12 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय मीनाक्षी जी
नमस्कार !
यथार्थमय सुन्दर पोस्ट
कविता के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.

Sanjay Karere ने कहा…

बहुत शानदार अभिव्‍यक्ति।

अजय कुमार झा ने कहा…

हमेशा की तरह खूबसूरत मीनाक्षी दी । शुभकामनाएं ......यूं ही लिखती रहें

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत संवेदनशील रचना ..

Sanjay Karere ने कहा…

क्‍या अब आपने त्रिपदम लिखने बंद कर दिए हैं... क्‍यों?

Unknown ने कहा…

Subhan'Allah ( سبحان الله)

Unknown ने कहा…

Subhan'Allah ( سبحان الله) is

Udan Tashtari ने कहा…

سبحان الل


बहुत बढ़िया...

केवल राम ने कहा…

वाह..! क्या बात है ....आनंद आ गया

कुश ने कहा…

बड़े दिनों बाद की आमद सुकूनदायक रही..

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा ने कहा…

सुन्दर अभिव्‍यक्ति।