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मंगलवार, 29 मार्च 2011

चित्रों में हाइकु (त्रिपदम)



 प्यारी सी बेटी न्यूशा

चंचल  नैन
हर पल उड़ते हैं
पलकें पंख 

गुलाबी से हैं
आज़ादी के नग़में
सुरीले सुर

खुतकार सी
ये उंगलियाँ रचें
तस्वीर नई


वीरान पथ
निपट अकेली मैं
कोहरा गूँगा 

नीले सपने
गहरे भेद भरे
विस्तार लिए


साकी सा यम
मौत अंगूरी न्यारी
रूप खिलेगा/नशा चढ़ेगा/मोक्ष मिलेगा

मुत्यु प्रिया सी
इक दिन आएगी
गले मिलेंगे

(खुतकार=पेंसिल)


रविवार, 27 मार्च 2011

मासूम और नादान बच्चे



आज की ‘अरब न्यूज़’ में जब पाकिस्तानी बच्चे रिज़वान के मिलने की खबर पढ़ी
तो दिल को राहत मिली...11 साल का रिज़वान पकिस्तानी इंटरनेशनल स्कूल में  
छठी क्लास में पढ़ता है.. चार भाई बहनों में बड़ा है..गणित के पेपर की तैयारी के लिए
ट्यूशन गया था फिर नहीं लौटा....दो चार घरों की दूरी पर पैदल ही चला
जाया करता था उस दिन भी गया लेकिन डरा हुआ बाल मन....अगले दिन के पेपर
की पूरी तैयारी न हो पाई...कम नम्बर आने के डर से ट्यूशन पढ़के निकला और टैक्सी
करके मक्का पहुँच गया... जद्दा से मक्का टैक्सी से एक घंटे में पहुँच जाते हैं..पता नहीं रिज़वान
ने टैक्सी वाले को क्या कहा होगा जो उसे अकेले ही मक्का के हरम तक पहुँचा दिया.....
इधर माता पिता का बुरा हाल....याद आने लगा जब वरुण विद्युत को बोर्ड पेपरों के दिनों में
ऐसे ही छोड़ आया करते थे... जब तक वे घर नहीं लौटते थे, जान अटकी रहती थी... कई कहानियाँ सुनते थे जो अखबारों में छपती नहीं थी....इसलिए और भी डर लगता.... समझ सकती थी रिज़वान के माता पिता के दिल का हाल...खाना पीना सोना दुश्वार हो गया होगा....
कई लोगों ने उसे हरम में अकेले देखा होगा...शायद उसकी किस्मत अच्छी थी जो कुछ अच्छे लोगों ने उसे पुलिस के हवाले कर दिया..पुलिस ने रिज़वान के पिता को फौरन फोन किया और सही सलामत घर पहुँचा दिया..इस दौरान पाकिस्तानी काउंसिल जर्नल और सभी दोस्तों के प्यार और साथ ने ही उन्हें हौंसला दिया...
ऐसे कितने ही बच्चे हैं यहाँ जिनके मन को माता पिता समझ नहीं पाते....इसलिए बच्चे उनसे दूरी
बनाकर अपने मन की दुनिया में अकेले रहने लगते हैं..वहाँ का अकेलापन और भी तकलीफ़देह होता है. मातापिता अपने सपनों को पूरा करने के लिए बच्चों को साधन बनाते हैं जिसका बच्चों पर बहुत गहरा असर पड़ता है. बच्चे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि किसी भी तरह वे अपने माँ बाप को खुश कर सकें जब ऐसा नहीं कर पाते तो कई तरह के गलत रास्ते चुन लेते हैं ....
पिछले दिनों रश्मिजी ने इसी समस्या पर दो लेख -- 1 2  लिखे जिन्हें सिर्फ पढ़ लेने से समस्या का हल नहीं मिलेगा बल्कि उन पर अमल किया जाए तो बच्चों की समस्याएँ तो हल होगीं घर परिवार में एक नई खुशी का आलम भी होगा. 

गुरुवार, 24 मार्च 2011

इंतज़ार है बस
























भरम में खड़े हैं शायद वो चलेंगे साथ दो कदम
तन्हा बुत से बने हैं उस पल का इंतज़ार है बस 
रुके हैं वहीं जहाँ से शुरु किया था सपनों का सफ़र
हो जाए शायद उनपर मेरी सदाओं का कुछ असर 
न हुए न होंगे कभी हमारे थे वो संगदिल सनम
दीवाने हुए थे यकीं था हमें भी मिलेंगे अगले जनम















सब्र कर लिया जब्त कर लिया बहते जज़्बातों को
पर कैसे रोकें दिल की दरारों से रिसते इस दर्द को........! 
                 

स्वार्थी मन कुछ कहता है ....


















सुबह की दिनचर्या से फुर्सत पाते ही पहला काम  होता है देश विदेश के समाचार जानना.. ताज़ी खबरों के साथ साथ पुरानी खबरों को दुबारा पढ़ना कम रोमांचक नहीं होता...जिस देश में रहते हैं पहले वहाँ की खबर जानने की उत्सुकता रहती है.
मध्यपूर्व देशों की अशांति देख कर एक अंजाना सा डर लगा ही रहता है कि कभी यहाँ भी ऐसा कुछ हो गया तो क्या करेंगे... कुछ असर तो साउदी अरब पर होना ही था .. असर देखा गया काले लबादो से ढकी 20-30 औरतों पर जो गृह मंत्रालय के बाहर अपने रिश्तेदारों की रिहाई की गुहार लगाने आ पहुँची थीं. कैदी जिस कारण से भी अन्दर हों या बिना ट्रायल सालों से कैद में हों...वह बाद की बात थी....
हैरानी इस बात की थी कि औरतें कानून तोड़ कर घरों से अकेली बाहर निकली थी.  ...जिन्हें अकेले घर से निकलने का अधिकार नहीं है.., ड्राइव करने का हक नहीं है..... उन्हें वोट देने का अधिकार कब मिलेगा, यह तो ऊपर वाला ही जाने.....लेकिन फिर भी उनमें से कुछ निडर औरतें बिना मर्दों के रियाद पहुँच गईं थी. सरकार गुस्से में थी कि बिना किसी इजाज़त के इस तरह धरने पर बैठने की हिम्मत कैसे हुई उन औरतों की. सरकार औरतों की आर्थिक मदद करती है जिनके भी मर्द किसी न किसी कारण जेल में बन्द होते हैं... अधिकतर लोग आतंकवाद से जुड़े होने के शक के कारण ही पकड़े जाते रहे हैं..
इसी तरह की हिम्मत देश के और भी कई इलाकों में देखने सुनने को मिली.. पिछले कुछ सालों से जद्दा में आई बाढ़ के कारण लाखों का नुक्सान हुआ..उससे नाराज़ लोगों ने आवाज़ उठाई कि राजा को इस बारे में कुछ सोचना चाहिए... बेरोज़गारी के कारण घर जुटाना भी एक आम अरबी के लिए बहुत मुश्किल काम है.... उनकी आवाज़ अभी उठी ही थी कि राजा के कान खड़े हो गए....
इतने सालों से जो नहीं हुआ था , आज अरब देशों में हो रही खतरनाक हलचल के कारण हो गया. अमेरिका में इलाज कराने गए किंग ने फौरन मिलियन बिलियन डॉलरज़ लोगों को दिए जाने का एलान कर दिया...खरीदे गए घरों की बाकि बची किश्तें माफ कर दी गई... रीयल एस्टेट्स को नए घर बनाने का आदेश दिया गया..क्यों कि 76% साउदी लोगो के पास रहने के लिए घर नहीं है और हर घर में कम से कम एक तो बेरोज़गार है ही.(यह आँकड़े फेसबुक के ज़रिए निकाले गए थे). बेरोज़गारों को मिलने वाला पैसा  बढ़ा दिया गया..... वेतन दुगुने कर दिए गए...बोनस भी साथ दिया गया....
बन्दर के मुँह में केला देकर कुछ वक्त के लिए तो मदारी उसे अपने बस में कर सकता है लेकिन कब तक....आग तो लग चुकी है.... गर्मी भी महसूस होने लगी है ... बस लपटों के आने का इंतज़ार है...
स्वार्थी मन कहता है पहले अपना हित फिर परहित.... मन ही मन दुआ करते हैं कि अभी यहाँ एक दो साल शांति रहे तो अच्छा है अपने लिए... !

शनिवार, 19 मार्च 2011

विदेश में बसना : चाहत या ज़रूरत









‘’बाऊजी, अब पूरी तरह से चारपाई पर हैं, उनका सब काम बिस्तर पर ही होता है. माताजी जल्दी ही थक जाती हैं. उनका चश्मा भी टूट गया है. बड़का शरारती होता जा रहा है. मेरी तो बिल्कुल नहीं सुनता और बाऊजी के बार बार बुलाने पर ही उनकी बात सुनता है. छोटे की तबियत वैसी ही है, धन्नीराम कम्पाउडर की दवाई से भी कोई असर नहीं हो रहा... आप बस जल्दी से आ जाइए... रूखा सूखा खाकर ही पेट भर लेंगे लेकिन रहेंगे तो एक साथ “

अमर अपनी पत्नी सरोज का ख़त पढ़ कर अतीत की यादों में डूब गया... एक बार पहले भी वह नौकरी छोड़ कर घर वापिस गया था.... दो साल तक कोई नौकरी नहीं मिली थी.... बैंक बैलेंस खत्म होता जा रहा था मुट्ठी से जैसे रेत खिसकती जाती हो.... सब रिश्तेदार जो मदद करने की बात करते थे सब मुँह मोड़ चुके थे.... व्यापार करने की सोची तो हिस्सेदार ने 50,000 लिखा पढ़ी से पहले ही हजम कर लिए थे.... गैस ऐजेंसी लेने की सोची थी तो 10,000 रिश्वत देकर भी काम नहीं बना था.... मजबूरन फिर वापिस आना पड़ा था.

“मेरी प्यारी बन्नो, खुशखबरी मिली कि मुन्नी अपने ससुराल में खुश है, वह अपना मायका भूल गई है...यह तो बड़ी खुशी की बात है... तसल्ली हुई ... अपने बेटे को भी अच्छी नौकरी मिल गई है..अपनी मनपसन्द लड़की से उसने शादी भी कर ली....चलो कोई बात नहीं....बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है.... दोनों खुश रहें बस यही दुआ है. सुना है उसे कम्पनी की तरफ से घर और कार भी मिली है....

अब हम दोनों के बनवास के दिन पूरे हो गए....जैसा तुम चाहती थी....हमारा सपनों का घर भी बन कर तैयार हो गया है...उम्मीद है कि तुमने अपनी पसन्द से उसे सजा भी लिया होगा...”

एक महीने बाद लाल सिंह को खबर मिलती है कि सब कुछ बेच बाच कर बेटा बहू इंगलैंड चले गए..माँ से धोखे से काग़ज़ों पर साइन करवा लिए थे... माँ को गाँव बुआ के पास छोड़ गया...विधवा बुआ जिसकी कोई औलाद नहीं थी ,,,वह खुद ही खस्ताहाल में थी... दोनों औरतें अपनी अपनी किस्मत पर रोतीं दिन गुज़ार रही थी... लाल सिंह को अब नए सिरे से पैसा जमा करने हैं...गाँव के उस घर की कच्ची छत की जगह पक्का लंटर डलवाना है...इस्तीफा देने की बात उसे न चाहते हुए भी भुलानी पड़ी...

परिवार की ज़रूरते इतनी होती हैं कि न चाहते हुए भी अपने घर परिवार से दूर होना पड़ता है... अपने देश में 5000 रुपए महीना की कमाई अगर विदेश में 40,000 रुपए के रूप में मिले तो ज़रूरतमन्द विदेश का ही रुख करेगा...

ऐसी हज़ारों कहानियों का ठिकाना साउदी अरब ही नहीं है...शायद हर वह देश है जहाँ लोग आ बसे हैं अलग अलग कारणों से.... यहाँ सबकी नहीं तो अधिकतर लोगों की यही कहानी है.....’’पेट जो कराए सो थोड़ा”

कुछ लोग गलती से आ बसे तो फिर बुरी तरह से जकड़े गए... घर परिवार होने के कारण खतरा मोल लेने का जोख़िम न उठा पाए.... चुपचाप किस्मत का लिखा मान कर कोल्हू के बैल की तरह परिवार को पालने पोसने में लगे रहे... पैसा कमाना कहीं भी आसान नहीं ... चाहे देश हो या विदेश .... मेहनत मशकत तो हर जगह एक जैसी है.... थोड़ी बहुत सुख सुविधाएँ हर देश के रहन सहन के स्तर के कारण मिल पाती हैं....

जहाँ तक सुख सुविधाओं की लालसा है....उसका कोई पार नहीं...जब भी गाँव जाती हूँ तो वहाँ के लोगों की नज़र शहर की ओर होती है...स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे इसी इंतज़ार में अपनी पढ़ाई खत्म करने के लिए बेसब्र हुए जाते हैं कि कब वे शहर जा पाएँगे क्योंकि उनके मातापिता की भी यही चाहत होती है.... शहर में आकर ऐसे परिवार दिखते हैं जो बच्चों को विदेश भेजने की तैयारी में जुटे हैं....बुढ़ापे में चाहे वही फिर अपने बच्चों को कोसने से भी नहीं हिचकते..... यहाँ विदेश में दिखता है कि ज़्यादातर लोगों में दुनिया के अलग अलग देशों में जाने की होड़ सी लगी है.....

विदेश में रहना किसी के लिए ज़रूरत हो सकती है...किसी के लिए चाहत हो सकती है..... इस बात को भी नहीं नकार सकते कि किस्मत का भी कुछ न कुछ हाथ तो होता ही है.....कुछ लोग न चाह कर भी विदेश में रह रहे हैं...और कुछ चाह कर भी विदेश नहीं जा पाते...इसे शायद “अन्न जल की माया” कहते हैं.....

ऐसे में अगर कोई यह कह दे कि आपको तो अपने देश से प्रेम ही नहीं है, विदेश में ठाठ से रहिए तो दिल दर्द से सुलगने लगता है...!

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

एक नया सफ़रनामा








एक हफ्ते से सोच रहे हैं कि कैसे पतिव्रता नारी बन कर दिखाएँ... इतने दिनों बाद रियाद लौटे हैं.... पतिदेव की कुछ सेवा की जाए...... लेकिन साहब हैं कि हम से पहले ही उठ कर तैयार हो कर ..नाश्ता वाश्ता करके हमें ‘गुड मॉर्निग’ कह कर निकल जाते हैं....नींद को झटका देकर जब तक आँख खुलती है तो वे निकल चुके होते हैं....

सारा दिन इसी सोच में गुज़र जाता है कि अगले दिन पक्का उठेंगे....

अभी तक तो सफ़लता मिली नहीं ,,,, जाने कल .......

घर के सामने ही मस्ज़िद है... फ़ज़र की अज़ान बहुत ज़ोरों से होती है लेकिन न जाने क्यों हमें ही सुनाई नहीं देती..विजय के लिए अज़ान सुनते ही फौरन उठ जाते हैं...आँखों पर सूरज की तेज़ किरणें दस्तक देतीं हैं तो नींद खुलती है.......खिड़की खोलते हैं तो उसी मस्ज़िद की मीनार के पीछे से चिलकता सूरज आग उगलता सा घूरता सा देख रहा होता है..... सूरज को प्रणाम करके वहीं खिड़की की ओट में बैठ जाते हैं..प्रणाम करते ही सूरज देवता प्रसन्न हो जाते हैं....ताज़ी हवा का झोंका और सूरज की मुस्कुराहट तन मन को गहरे तक तरो ताज़ा कर देती हैं... बरसों बाद ऐसा मौका मिला है कि बिस्तर पर बैठे बैठे ही उदय होते सूरज को निहारने का मौका मिल रहा है...

वहीं बैठ कर सुबह की पहली चाय की चुस्कियाँ लेती हूँ... कभी कभी यह एकांतवास भी मन को अच्छा लगता है ....दिल्ली में काम वाली बाई की खटपट , धोबी और कूड़ा ले जाने वाले की आवाज़ें... कबाड़ी और सब्ज़ीवाले की सुरीली तानें ...कुछ भी तो नहीं सुनाई देता.... चार पाँच बार अज़ान की सदा और आती जाती कारों की आवाज़ें .... बस...इतना ही.... हॉर्न तो यहाँ बजता ही नहीं....

विजय जानते हैं कि यहाँ आकर हम लिखने पढने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकते.... इसलिए अपना लैपटॉप घर पर रख कर जाते हैं... मेरा लैपटॉप रिपेयर के लिए गया हुआ है... खैर...... लिखने से ज़्यादा पढने का भूत सवार रहता है ...... जाने क्यों.... शायद अपने ही मन की बात किसी न किसी ब्लॉगर के लेखन में पढ़ कर महसूस होता है कि यही तो था मेरे मन में...उन्हें पढ़कर बेहद सुकून मिलता है....


मंगलवार, 15 मार्च 2011

ब्लॉग जगत के सभी नए पुराने मित्रों को प्रणाम !

मानव प्रकृति ऐसी है कि एक बार जिससे जुड़ जाए फिर उससे टूटना आसान नहीं होता चाहे फिर 7 महीने और 10 दिन का अंतराल ही क्यों न आ जाए.... इससे पहले भी लम्बे अंतराल आए लेकिन घूम फिर कर फिर आ पहुँचते इस विराट वट वृक्ष की छाया तले..... जड़े गहरी हैं... शाखाएँ अनगिनत...हर बार नन्हीं नन्हीं नई शाखाएँ उभरती दिखाई देतीं.... पुरानी और भी मज़बूत होती , जड़ों से जुड़ती दिखती हैं.....

आजकल एकांतवास में हैं...सहेज कर रखे हुए अपने ब्लॉग को एक अरसे बाद जतन से खोला....एक अजब सा भाव मन को छू गया.....उदास , ख़ामोश और खाली खाली सा लगा.... पहले सोचा वादा करते हैं कि अब नियमित आते रहेंगे, फिर सोचा नहीं नहीं.... अगर न पाए तो....... कितनी बार ऐसा हो चुका है कि नियमित होने का वादा निभा नहीं पाए......

जब भी मौका मिलेगा ज़िन्द्गी के इस सफ़र की छोटी छोटी यादों का ज़िक्र करने आते रहेगे.....