नट्खट मुन्ना, चंचल नन्हीं
भाई बहन में कभी न बनती
सुबह शाम झगड़े में कटती
नए नए खिलौने आते
मुन्ने को फिर भी न भाते
तोड़-फोड़ करता था मुन्ना
फिर भी था मम्मी का बन्ना
नन्हीं की थी बस इक गुड़िया
वही थी उसकी बस इक दुनिया
नन्हे हाथों से उसे सजाए
लोरी गाकर उसे सुलाए
परियों की शहज़ादी थी
अपने पापा की प्यारी थी
इक दिन मम्मी पापा में
हुई लड़ाई ज़ोर ज़ोर से
कई दिनों तक चुप्पी छाई
मुन्ना नन्ही को कभी न भाई
मुन्ना जब भी झगड़ा करता
नन्ही रूठ के रोती चिल्लाती
मम्मी पापा हरदम कहते
बार बार यही समझाते
झगड़ा करना बुरी बात है
रूठ के रोना बुरी बात है
झगड़ा करके हम गले थे लगते
मम्मी पापा क्यों ऐसा न करते
मम्मी पापा झगड़ा क्यों करते
रूठ के दोनो बात न करते
भोले बच्चे समझ न पाए
मम्मी पापा ऐसा क्यों करते
मम्मी पापा अलग हुए थे
दोनो बच्चे सहम गए थे
पापा संग गई सुबकती नन्ही
रोते मुन्ने को ले गई थी मम्मी
दोनो बच्चे बिछुड़ गए थे
मन ही मन वे बिखर गए थे.....!!
( विवाह सूत्र में बँधने से पहले अगर हम पूरी तरह से तैयार हो जाएँ और समझे कि हम समाज के एक पुण्य कर्म में हिस्सा लेने जा रहे हैं जिसे हमने बखूबी निभाना है तो मुश्किलें कम हो जाएँ.... लेकिन अक्सर उसके विपरीत होता है और समाज की जड़ें कमज़ोर होने लगती हैं)
23 टिप्पणियां:
शत प्रतिशत सही बात कही है आपने
कविता बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद है
ओह... शुरू में तो मैं इसे बहुत लाइटली लेकर पढता गया लेकिन अंत होने तक...
क्या कहूं. आसपास यह सब बहुत तेजी से घटित होते देख रहा हूँ.
हर समस्या की जड़ में संवादहीनता और स्वयं को औरों से पहले रखने की जिद है.
मिनाक्षीजी, पहले लगा कि बच्चों की कविता है तो उसी भाव से पढ़ती चले गयी लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ती गयी उसका गूढार्थ समझ आने लगा। बहुत ही मार्मिक और प्रेरणास्पद कविता है बधाई।
बहुत भावप्रवण और शिक्षात्मक कविता -बच्चों और उनके माँ बाप दोनों के लिए ही !
टूटते परिवारों पर सशक्त रचना..बहुत खूब!! बधाई.
विवाह बंधन तोड़ने से पहले माता- पिता को बच्चों के बारे में सोचना चाहिए ....मगर साथ रहकर हमेशा लड़ते- झगड़ते , एक दूसरी को अपमानित करते रहने से भी उन पर बुरा ही असर होता है ..
एक सार्थक सन्देश देती रचना ..
विवाह के संबंधों के गुढ़ अर्थ बताती अच्छी रचना
बच्चों के झगडे तो प्राकृतिक होते हैं .. आज लडते कल प्यार करते हैं वो .. पर बडों के ??
SAHI KAHUN TO ME BHI APNI BADI BAHN SE KAFI LAGAI JAGDA KARTA THA BACHPAN ME MAGAR AAJ USESE DEKHANE KO BHI NAHI MILTA
AAP KA SHUKRIYA IS KAVITA KO PADWANE KE LIYE
Bahut sashakt rachna hai..kya kahun,kuchh samajh nahi paa rahi hun..
जिंदगी के सत्य की मार्मिक प्रस्तुति।
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करे कोई, भरे कोई?
हाजिर है एकदम हलवा पहेली।
सम्बन्ध विच्छेद से बच्चों की जिन्दगी असामान्य हो जाती है ।
आपकी रचना के अंत तक पहुंचते-पहुंचते मैं थोड़ा दुखी हो गया। किसी भी बच्चे के साथ ऐसा न हो। वैसे आपने मन्नू भंडारी जी का उपन्यास आपका बन्टी न पढ़ा तो जरूर पढि़एगा। यह मेरी प्रार्थना है। आपने बहुत ही शानदार लिखा है।
बाल मन पर पड्ते असर को बखुबी उकेरा है।
माता-पिता के झगडे में सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है,इन बच्चों को...बिना किसी दोष के...हलकी फुलकी कविता के माध्यम से बड़ी बात कह दी है,आपने और एक सुन्दर सन्देश भी दिया है...अपनी ज़िन्दगी तो जी ली,अब जिस एदुनिया में लाये हैं उसकी खुशियों की तो परवाह करें..
मै रश्मी जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ..........मैने ऐसे कई बच्चों के साथ समय बिताया है ....उन्हे संभालना बहुत कठिन होता है ...वे वाकई बिखर जाते हैं......माता-पिता को ऐसा कुछ करने से पहले एक-दो नहीं..........हजारों बार सोचना चाहिए........
बच्चों के भोले पन से शुरू हुई कविता .. उम्र(आगे आगे) के साथ साथ गूड़ होती गयी ... विवाह एक पुण्य कर्म है .. इस यग्य में सब कुछ है ... बस आपसी प्रेम और समर्पण की चाह ज़रूरी है ...
ironical but true... divorce is a culture these days..
nobody wants to compromise..
बहुत अच्छी शुरुआत के साथ.... यह कबिता अंत तक अच्छी लगी...
आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।
आचार्य जी
. बस आपसी प्रेम और समर्पण की चाह ज़रूरी है ...
Hasi-mazak me start hui kavita sansarik jeevan ki gahraio me utar gai.
Rishte TUT ka pramukh karan pati-patni ka sukshham ahankar ho sakta hai.
Shuru me light tone par arambh huee ye kawita ant tak aate aate ek gambhir sandesh me badal gaee. Dhanyawad.
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