
नट्खट मुन्ना, चंचल नन्हीं
भाई बहन में कभी न बनती
सुबह शाम झगड़े में कटती
नए नए खिलौने आते
मुन्ने को फिर भी न भाते
तोड़-फोड़ करता था मुन्ना
फिर भी था मम्मी का बन्ना
नन्हीं की थी बस इक गुड़िया
वही थी उसकी बस इक दुनिया
नन्हे हाथों से उसे सजाए
लोरी गाकर उसे सुलाए
परियों की शहज़ादी थी
अपने पापा की प्यारी थी
इक दिन मम्मी पापा में
हुई लड़ाई ज़ोर ज़ोर से
कई दिनों तक चुप्पी छाई
मुन्ना नन्ही को कभी न भाई
मुन्ना जब भी झगड़ा करता
नन्ही रूठ के रोती चिल्लाती
मम्मी पापा हरदम कहते
बार बार यही समझाते
झगड़ा करना बुरी बात है
रूठ के रोना बुरी बात है
झगड़ा करके हम गले थे लगते
मम्मी पापा क्यों ऐसा न करते
मम्मी पापा झगड़ा क्यों करते
रूठ के दोनो बात न करते
भोले बच्चे समझ न पाए
मम्मी पापा ऐसा क्यों करते
मम्मी पापा अलग हुए थे
दोनो बच्चे सहम गए थे
पापा संग गई सुबकती नन्ही
रोते मुन्ने को ले गई थी मम्मी
दोनो बच्चे बिछुड़ गए थे
मन ही मन वे बिखर गए थे.....!!
( विवाह सूत्र में बँधने से पहले अगर हम पूरी तरह से तैयार हो जाएँ और समझे कि हम समाज के एक पुण्य कर्म में हिस्सा लेने जा रहे हैं जिसे हमने बखूबी निभाना है तो मुश्किलें कम हो जाएँ.... लेकिन अक्सर उसके विपरीत होता है और समाज की जड़ें कमज़ोर होने लगती हैं)