पिछले साल बड़े बेटे की सर्जरी के सिलसिले में दिल्ली आए तो लगभग साल भर रुकना पड़ा...उस दौरान कई बार चाहा कि यहाँ रहने के अपने अनुभव लिखित रूप में दर्ज किए जाएँ लेकिन समय ही नहीं मिला.... उसी दौरान जाना कि अगर पड़ोसी अच्छे नहीं मिलते तो समझिए आपसे बड़ा अभागा कोई नहीं.... उससे बड़ा अभागा वह जिसे धूर्त, चालाक और स्वार्थी पड़ोसी मिल जाएं....
चित्रों देखिए और समझिए कि कैसे एक पड़ोसी आपको बेवकूफ बना सकता है.......
छह महीने बाद हम और माँ घर लौटे तो देख कर हैरान कि किस तरह से कोई किसी की शराफत का नाजायज़ फ़ायदा उठा सकता है.....
घर का रूप रंग बिगड़ चुका था.... डोर बैल का कनैक्शन कट चुका था...टीवी की केबल वायर का कोई अता पता नहीं था.... बाहर मेन गेट की बिजली भी नदारद थी.... शुक्र हो छोटी बहन का जिसने मज़दूर बुला कर बाहर के मेन गेट से इमारत बनाने का सामान उठवा कर अन्दर आने की जगह बनवा दी थी....
जैसे तैसे रात गुज़री .... अगली सुबह पीछे का दरवाज़ा खोलने का सोची तो पता चला कि पीछे से सीमेण्ट की चादरों के कारण दरवाज़ा खुल ही नहीं सकता... कलेजा मुहँ को आ गया... लोग कैसे इतने सम्वेदनहीन हो जाते हैं कि किसी की छोटी छोटी सुविधाओं को भी नज़रअन्दाज़ कर जाते हैं.....
नाश्ते के बाद अगला कमरा देखा तो हैरान रह गए..... कैसे उस कमज़ोर कमरे को ढकने की कोशिश की गई थी.....पहले से ही कमज़ोर कमरे के कन्धे टूट चुके थे... जिन दीवारों के गिरने
के डर से कोई वहाँ जाता नहीं था उसी की दीवारों पर दो दो ईंटों का सहारा देकर नई छत बना ली गई थी.....
पहली बार जाना कि यहाँ के कुशल ठेकेदार पुरानी कमज़ोर छत के ऊपर दो ईटों के सहारे पर एक नई छत भी बना सकते हैं.... हैरानी उस ठेकेदार की बहादुरी पर भी है या पैसा इस कदर ज़रूरत बन गया है कि कोई भी अपना ईमान बेचने पर तैयार हो सकता है.... कमज़ोर दीवारें..कमज़ोर छत और उस पर नई छत बना कर.... बीच के हिस्से को चालाकी से ढक कर लोगों की ज़िन्दगी को खतरे में डाल दिया जाता है....
ऐसी ही कई छोटी छोटी बातें होती हैं जिन्हें देख सुन और अनुभव करके लगता है कि आत्माएँ मर चुकी हैं.... या भारी स्वार्थ के नीचे दब चुकी हैं
आज से अपने बच्चों को कभी अपने देश में बसने के लिए नहीं कहूँगी....अपनी जन्मभूमि है तो यहाँ आने से कोई रोक भी नहीं सकता... कोसेंगे, कुढेगें , निन्दा करेंगे लेकिन फिर भी आते जाते रहेंगे...!
(मन के भाव पढ़े....चित्र देखे..... आप क्या कहते हैं.....क्या पता हर चौथे पाँचवें पड़ोसी के साथ ऐसा ही होता हो...... बताइए ....मन को कुछ राहत मिले....




