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बुधवार, 28 अप्रैल 2010
हम बुरा ही क्यों सोचते हैं.....!
ऑफिस के लिए विजय निकले ही थे कि इधर दुबई वाला मोबाइल बज उठा, सालिक का सन्देश था जिसमें टॉलगेट पार करने के लिए अब एक भी दहरम नहीं बचा था. वहाँ के आठ बजे का सन्देश मिला तो एक दम ख्याल आया कि शायद बेटे ने उसी वक्त टॉलगेट पार किया होगा... कल ही उसकी वार्षिक परीक्षा खत्म हुई है...उसने कहा तो था कि पेपर खत्म होते ही फोन करूँगा, क्या पता दोस्तों के साथ निकला हो डाउन टाउन की तरफ़...बस फिर क्या था हम लगे उसे फोन मिलाने..... घर का फोन और मोबाइल बार-बार मिला रहे थे लेकिन कहीं कोई अता पता नहीं था..... कलेजा जैसे मुँह को आ गया ....
वरुण को उठाया .... “इतनी सुबह क्यों परेशान हो रहीं हैं ...सो रहा होगा.” कह कर सो गया.... कुम्भकरण की नींद...! अरे इतनी बार में फोन की आवाज़ से तो पड़ोसी तक जाग गए होंगे....अब क्या करें....बेटे के एक करीबी दोस्त को फोन किया तो उसका फोन भी स्विच ऑफ आ रहा था...दिल और जोर से धड़कने लगा...जैसे अभी के अभी बाहर निकल आएगा....मन में बुरे बुरे ख्याल आने लगे.... आजकल जवान लड़के मस्ती करते वक्त ज़रा नहीं सोचते कि पीछे घर में कोई काँटों की सेज़ पर बैठा इंतज़ार कर रहा होगा....गाड़ी को स्पीड से भगाना....ड्राइव करते हुए फोन सुनना... ऊँची आवाज़ में संगीत लगाकर हा हा करते हुए बस अपनी धुन में निकल जाना...यही तो होता है अक्सर... ऊपर से दुबई की बेलगाम ज़िन्दगी..... कोई पीकर सामने ही न आ गया हो..... पैदल चलने वाले का ही कसूर क्यों न हो... पकड़ा तो गाड़ी का ड्राइवर ही जाएगा.....जानती हूँ कि विद्युत ऐसा नहीं कर सकता लेकिन समय कब बुद्धि फेर दे..किसे पता है.
इस दौरान घर के और उसके मोबाइल पर लगातार फोन करती जा रही थी... फिर से वरुण को जगाती हूँ..... “तुम सोए रहो...मेरी जान निकली जा रही है” कहते कहते गला रुँध गया... जैसे मन भर का पत्थर गले में अटक गया हो.....नींद में ही उसने कहा विद्युत के दूसरे दोस्त को फोन करिए.... उसे किया तो वह भी नींद में ही था... मेरी आवाज़ सुनते ही डर गया... ‘आँटी, डॉंट वरी,,, ही वॉज़ हेल्पिंग हिज़ क्लासमेट फॉर लास्ट एग्ज़ाम इन सिटी सेंटर टिल लेट नाइट’ सुनकर मन को कुछ राहत पहुँची.. उसे सॉरी कहकर फिर से विद्युत को फोन लगाया.... लेकिन नहीं लगना था सो नहीं लगा....
इस बीच वरुण की नींद पूरी तरह से खुल चुकी थी.....मेरा ध्यान बँटाने के लिए चाय बनाने को कहा और खुद फ्रेश होने चला गया.... चाय की मेज़ पर बैठते ही शुरु हो गया.... मम्मी,,,,बताओ तो ज़रा...हम बुरा ही क्यों सोचते हैं....! कोई बात हो...कोई रिश्ता हो... किसी भी तरह की कोई बात हो ... एक पल नहीं लगता और हम बुरा सोचने लगते हैं.... अच्छा क्यों नहीं सोचते...! बुरा सोचते हैं तभी बुरा हो भी जाता है... लेकिन उस वक्त उसकी एक भी बात समझ नहीं आ रही थी....
माँ का दिल जो ठहरा... हार कहाँ मानता.... आखिरकार घर के फोन पर बेटे की उनींदी आवाज़ सुनाई दी...जान में जान आई..... “म्म्म्म्ममाँ ... नींद से क्यों उठा दिया...” उसके यह कहते ही हम अपनी आवाज़ ऊँची करने ही वाले थे कि उधर से डरी डरी सी आवाज़ आई... ‘सॉरी मम्मी...कल रात दोस्त को हैल्प करते करते लेट हो गया और फोन करना भूल गया’ कुछ ही पल में सारा डर, दर्द और गुस्सा गायब हो गया...
आजकल के बच्चे वैसे ही चुस्त चालाक हैं... मुझ पर ही बात डाल दी कि आप को बताया तो था कि एग्ज़ाम खत्म होते ही मैं खूब सोऊँगा... आप शायद भूल गईं. और फिर बात बदल कर पूछने लगा कि खाने में क्या बनाया है....खाना खाया कि नहीं.... 2मई को जब मैं आऊँ तो मेरी पसन्द का सब खाना बना कर रखना..अगले दिन का नाश्ता मैं बनाऊँगा.. ! यह सब सुनकर सब नाराज़गी भूल गए और बस मुस्कुरा कर रह गए.... !
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20 टिप्पणियां:
सुभद्राकुमारी चौहान की एक कविता की एक पंक्ति है-
" पर माँ, माँ का हृदय तुम्हारा,बहुत विकल हो जाता "
माँ का दिल है ये ....
मां का दिन है .. थोडी भी अनियमितता हो तो बुरा ही सोंच लेता है .. पर मेरा पंचांग कुछ सहारा अवश्य दे देता है !!
pehli baar aapke blog par aana hua..bahut acchha laga aapko aur maa ke hridye ko padh kar.
shukriya mere blog par aane k liye.
apne priyajano ka to har waqt khayal rehta hi hai...unse doori bardasht hi nahi hoti...
जब भी ऐसी पोस्टें पढता हूं तो मां की याद मन को उदास कर जाती है ,और मां की चिंता अपनी संतान के लिए , इससे बढकर कुछ भी नहीं होता है मीनू दी । चलिए अब उसके पसंद के खाने की तैयारी करिए । और हमें भी बताईयेगा कि क्या क्या बना
अच्छी मनवीय रिश्तों और माया-मोह की विवेचना / कोई न कोई एक अदृश्य शक्ति है जो हमें नियंत्रित करती है / हमें अपनी भावना को हमेशा पवित्र रखना चाहिए / अच्छी प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /
जब भी कुछ अनचाहा या अनसोचा होता है तो सच ही पहले बुरे ख्याल ही आते हैं....और फिर माँ के मन की तो बात ही निराली होती है...बच्चों के ज़रा से कष्ट से ही विचलित हो उठता है मन....मन के भावों को सटीक रूप से लिखा है
maa kadil aisa hi hota hai
kushnkaye hi man me aati hai
बाकी सब तो ठीक है, स्वभाविक है
लेकिन हर बार यह खाने-पीने का मामला मन भटका देता है :-)
बी एस पाबला
Bada saral seedha likha hai!
Jo man sochta apnon ke liye,jab dar jata hai,itna bura to dushmanbhi nahi sochta!
माँ तो माँ है, कुछ और नहीं ।
मन की उड़ान पर किसी का वश नहीं - माँ के दिल की तो बात ही कुछ और है.
नमस्ते जी,
अच्छा लगा पढ़ कर दिल की भावनाओं को। क्या करें दिल होता ही ऐसा है, बुरे ख्याल पहले आते हैं...sensitivity शायद इसे ही कहते है। अगर अच्छा ही सोचते तो शायद विद्युत से बात करने के लिए इतने परेशान न होते, है ना।
सच ही कहा आपने हम बुरा क्यूँ सोचते है ....पर आपकी इस पोस्ट के बारे में तो हम अच्छा ही सोचते है
http://athaah.blogspot.com/
मां का प्यार ऐसा ही होता है , बच्चों के लिए । हमारे साथ भी अक्सर ऐसा होता है। जितना ज्यादा प्यार , उतना ज्यादा डर।
ब्लोगिंग से लम्बा ब्रेक -चलिए अब तो शुरू कर दिया न । समयनुसार लिखते रहें । अच्छा लगता है। शुभकामनायें।
क्या कहूँ? आप की टिप्पणी को पकड़ कर चला आया यहाँ, और पाया कि क्या है जो यहाँ भी है वहाँ भी…
ये इन्सान के जीवन की मोह-माया-ममता है जो दूसरे शब्दों में इमोशनल फ़ुलिशनेस भी है, जब तक कहने वाले पर नहीं बीतती।
दिल तो बच्चा है जी…
और बच्चा तो 'दिल' है ही!
आभार,
मां का हृदय तो ठीक, आम तौर पर हर व्यक्ति ऐसे ही सोचता है। जितना ज्यादा अटैचमेण्ट उतना ज्यादा ऐसा सोचना!
जितना प्यार होता है जिससे उतना ही सामने ब रहने पर आशंकाएँ होती ही हैं।
बहुत खूब!
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