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शनिवार, 5 जुलाई 2008

तोड़ दो सारे बन्धन और अपने बल पर मुक्ति पाओ..!

गन्दे लोगों से छुड़वाओ... पापा मुझको तुम ले जाओ...
खत पढ़कर घर भर में छाया था मातम....

पापा की आँखों से आँसू रुकते थे....
माँ की ममता माँ को जीते जी मार रही थी ....

मैं दीदी का खत पढ़कर जड़ सी बैठी थी...
मन में धधक रही थी आग, आँखें थी जलती...
क्यों मेरी दीदी इतनी लाचार हुई...
क्यों अपने बल पर लड़ पाई...

माँ ने हम दोनों बहनों को प्यार दिया ..
पापा ने बेटा मान हमें दुलार दिया....
जूडो कराटे की क्लास में दीदी अव्वल आती...
रोती जब दीदी से हर वार में हार मैं पाती...

मेरी दीदी इतनी कमज़ोर हुई क्यों....
सोच सोच मेरी बुद्धि थक जाती...

छोटी बहन नहीं दीदी की दीदी बन बैठी...
दीदी को खत लिखने मैं बैठी..

"मेरी प्यारी दीदी.... पहले तो आँसू पोछों...
फिर छोटी की खातिर लम्बी साँस तो खीचों..
फिर सोचो...
क्या तुम मेरी दीदी हो...
जो कहती थी..
अत्याचार जो सहता , वह भी पापी कहलाता...
फिर तुम.....
अत्याचार सहोगी और मरोगी...
क्यों .... क्यों तुम कमज़ोर हुई...
क्यों... अत्याचारी को बल देती हो....
क्यों.... क्यों... क्यों...

क्यों का उत्तर नहीं तुम्हारे पास...
क्यों का उत्तर तो है मेरे पास....

तोड़ दो सारे बन्धन और अपने बल पर मुक्ति पाओ..
अपने मन की आवाज़ सुनो फिर राह चुनो नई तुम..
ऊँची शिक्षा जो पाई उसके अर्थ ढूँढ कर लाओ ..
अपने पैरों पर खड़े होकर दिखलाओ तुम ....

दीदी बनके खत लिखा है दीदी तुमको...
छोटी जानके क्षमा करो तुम मुझको....

10 टिप्‍पणियां:

कुश ने कहा…

नारी के कविता ब्लॉग पर घुघूती जी का कमेंट पढ़ा मैने.. बहुत सार्थक बात कही उन्होने.. उनका कमेंट पढ़ते ही मैने सोचा आज इस विषय पर कुछ लिखूंगा परंतु आपने पहले ही इस पर लिख दिया.. एक सकारत्मक सोच.. बिल्कुल ठीक बात कही घुघूती जी ने और आपकी सोच भी कमाल है.. यदि सभी आत्म निर्भर हो जाए तो दृश्य ही कुछ और होगा.. एक सशक्त रचना के लिए बहुत बधाई आपको..

रंजू भाटिया ने कहा…

मेरे अपने ख्याल से दिल को छु लेने वाली कविता वही होती है जो पढने वाले के दिल में लिखने कि कहने की चाहत भर देती है
मुझे कल कुश की लिखी इस कविता ने रुला दिया और तब से मैं इसको कई बार पढ़ चुकी हूँ ..आज आपकी कविता ने जो संदेश दिया है वह सच में तारीफ लायक है ....बहुत सुंदर लिखा है आपने और आज हर लड़की को यूँ ही होना चाहिए .की कोई कुछग़लत कहने की हिम्मत ही न कर सके ...

बेनामी ने कहा…

bhut sundar. or ek sahi vakya. bhut badhiya. likhati rhe.

इन्दौरनामा ने कहा…

ऐसा शब्दांकन न जाने कितने जाने-अनजाने लोगों को प्रेरणा देता है.सुन्दर भावाभिव्यक्ति मीनू’दी’

बेनामी ने कहा…

तोड़ दो सारे बन्धन और अपने बल पर मुक्ति पाओ..
अपने मन की आवाज़ सुनो फिर राह चुनो नई तुम..
ऊँची शिक्षा जो पाई उसके अर्थ ढूँढ कर लाओ ..
अपने पैरों पर खड़े होकर दिखलाओ तुम ....

दीदी बनके खत लिखा है दीदी तुमको...
छोटी जानके क्षमा करो तुम मुझको....

wah bahut sahi meenakshi ji,bahut prernadayi sundar kathya,bahut badhai

शोभा ने कहा…

मीनाक्षी जी
तोड़ दो सारे बन्धन और अपने बल पर मुक्ति पाओ..
अपने मन की आवाज़ सुनो फिर राह चुनो नई तुम..
ऊँची शिक्षा जो पाई उसके अर्थ ढूँढ कर लाओ ..
अपने पैरों पर खड़े होकर दिखलाओ तुम ....
बहुत सही विचार दिया है आपने। बधाई स्वीकारें।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

इसी हिम्मत की तो जरूरत है।

डॉ .अनुराग ने कहा…

बहुत ही भावुक कविता है.....निशब्द हूँ.....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बहुत सही सलाह दी अपनी दीदी को -

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

मिनाक्षी जी,
बहुत ही सुंदर और भावुक कविता लिखी आपने,जो भी इस दौर से गुजरे हों उनके लिए प्रेरणास्रोत है और काफ़ी लोगों के लिए हिम्मत भी, आख़िर जिंदगी हिम्मत से ही जीने का तो नाम है|