Translate

बुधवार, 4 जून 2008

बेतरतीब सोच के कई चेहरे ...



३० मई की रात को सब काम निपटा कर आभासी दुनिया की सैर की सोच कर ब्लॉगजगत में दाखिल हुए तो जीमेल के अकाउंट से रीडर खोला.... सामने ज्ञान जी की नई पोस्ट ' भोर का सपना' खुली ,,,जिसे पढ़ते हुए ' हैंग ग्लाइड ' को नज़र भर देखने के लिए विकी पीडिया खोलना पडा... मन ही मन कामना की कि ज्ञान जी का भोर का सपना उनकी तरक्की करता हुआ सच हो जाए .... पोस्ट पढ़ते गए आगे बढ़ते गए..... हरे रंग का दूसरा बॉक्स मन को ललचा रहा था... जिसमे पोस्ट का शीर्षक 'सुखी एक बन्दर परिवार ,दुखिया सब संसार ! ' हमे पढने को बाध्य कर रहा था क्योंकि बंदरों से हमारा पुराना बैर भी है और उनके बारे में बहुत कुछ जानने की इच्छा भी.(इस .विषय .पर भी कभी लिखेंगे ) .. अब हम अरविंद जी की उस रोचक पोस्ट को पढने उनके ब्लॉग पहुँच गए... उसी हरे बॉक्स में ज्ञान जी की अपनी एक पोस्ट का नाम देखा तो कैसे छोड़ देते.... उनकी पोस्ट "रोज दस से ज्यादा ब्लॉग-पोस्ट पढ़ना हानिकारक है " देख कर तो हमारा सर चकराने लगा...होश उड़ गए .... ज्यों ज्यों पढ़ रहे थे ...दिल बैठता जा रहा था...... बहुत सी बातें शत प्रति शत हमारे ऊपर सही बैठ रही थी.... "स्टेटेस्टिकली अगर आप 10 ब्लॉग पोस्ट पढ़ते हैं तो उसमें से 6.23 पोस्ट सिनिकल और आत्मकेन्द्रित होंगी. रेण्डम सैम्पल सर्वे के अनुसार 62.3% पोस्ट जो फीरोमोन स्रवित करती हैं, उनसे मानसिक कैमिकल बैलेंस में सामान्य थ्रेशहोल्ड से ज्यादा हानिकारक परिवर्तन होते हैं. इन परिवर्तनो से व्यक्ति में अपने प्रति शंका, चिड़चिड़ापन, लोगों-समाज-देश-व्यवस्था-विश्व के प्रति “सब निस्सार है” जैसे भाव बढ़ने लगते हैं. अगर यह कार्य (यानि अन-मोडरेटेड ब्लॉग पठन) सतत जारी रहता है तो सुधार की सीमा के परे तक स्वास्थ बिगड़ सकता है." "सब निस्सार है.".का भाव तो था ही लेकिन "अपने प्रति शंका" का भाव तो और भी गहरा था कि हम अच्छे ब्लॉगर नही हैं..... और तो और अपने लेखन पर भी शक होने लगा कि .....शायद हमारा लेखन भी किसी काम का नही ..... व्यस्त होने के बाद भी अनगिनत ब्लॉग पढ़ डालते, चाहे प्रतिक्रिया देने में आलस कर जाते या समझते कि शायद वह भी सही ना कर पायें सो टिप्पणी देना छोड़ दिया..... ज्ञान जी की इस पोस्ट को पढ़ने के बाद तो हम 'आर सी मिश्रा जी ' की पोस्ट बस देख भर आए....डॉलर पाने का मोह भी भूल गए.....
ज्ञान जी की एक ही पोस्ट में ५ ब्लोग्ज़ तो हम पढ़ ही चुके हैं .... "साउथ एशियन देशों में जहां अब ब्लॉग लिखने-पढ़ने का चलन बढ़ रहा है, बड़ी तेजी से म्यूटेट होते पाये गये हैं." यह पढ़ कर तो और चकरा गए कि क्या से क्या हो रहें हैं...इस चक्कर में न चाहते हुए भी और भी कई लिंक्स खोज डाले ...उन्हें ज्ञान जी के लिए यही लिंक कर रहें हैं,, शायद कुछ राह निकले कि आभासी दुनिया में म्यूटेट होते हम कहाँ पहुंचेगे... एक और लिंक जो नज़र में आया कि दूसरो के ब्लोग्ज़ पर टिप्पणी करने पर भी अपना नुक्सान है ....
जितना लिखा है उससे कहीं ज़्यादा सोच रहे थे....अब दिमाग थक सा गया है...बस कह दिया उसने ... गंभीर विषयों पर चिंतन तो होता ही रहता है ... लेकिन चिंता को चिता समान कहा गया है इसलिए चिंता को छोड़ कर कुछ देर के लिए आइये हम भी बच्चे बन जायें.. ...एक रोचक लिंक मिला है.....आप भी खोलें और चिंतामुक्त होकर खेलें......

16 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

मीनाक्षी जी,
चिँता ना करेँ आप First class लिखतीँ हैँ .............और जितना देखा , सुना, पढा, जाना उनका मनन करके,
निर्णय ,
आप Conscience पे छोड देँ -
बस्स !
फिर कोई मुसीबत न होगी ..
- लावण्या

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

वाह, आपकी पोस्ट लेखन की वही प्रक्रिया है जो मेरी। एक विचार को ले कर सूचनायें संवर्धित करता रहता हूं। उससे अन्त में जो पोस्ट बन कर आती है, मन को सन्तोष देती है कि मैं पाठकों को कुछ वैल्यू ऐडेड प्रॉडक्ट दे रहा हूं।
आपकी पोस्ट में खोजे गये लिंक वही वैल्यू एडीशन का काम कर रहे हैं!
आपने मेरी पोस्टों को लिन्क किया - बहुत धन्यवाद।

Udan Tashtari ने कहा…

इअतने बेहतरीन लेखन के बाद भी नाहक शक कर रही हैं अपने लेखन पर. ऐसे में लेखन बुरा मान सकता है, बस सचेत कर रहे हैं. :)

बहुत बढ़िया लिंक.

dpkraj ने कहा…

आप प्रातः प्राणायाम कर ध्यान लगावें। धीरे-धीरे अनुभव करेंगी कि आप में जीवन के प्रति आत्मविश्वास बढ़ रहा है और शंकाएं कम हो रहीं हैं।
दीपक भारतदीप

Rajesh Roshan ने कहा…

ऐसे कई सारे लेख आपको यहाँ वहा मिल जायेंगे. आप पढे और खूब पढे. कहने का मतलब जितना पढने की इच्छा हो उतना पढे. पढ़ाई आपको नुकसान नही करेगी. हा ऐसे लेख से बच्चे जो भ्रामक जानकारिया दे रहे हैं

बालकिशन ने कहा…

अपन को तो अभी तक ज्यादा पढने और ज्यादा कमेन्ट करने से फायदें ही महसूस हुए हैं.
रक्त चाप भी नियमित रहता है. मन प्रसन्न रहता है.
और आप ये बेकार के शक ना करें.
बहुत ही अच्छा लिखा.
बधाई.

कुश ने कहा…

आप तो बस चिन्तामुक्त रहिए.. वैसे वो लिंक बड़ा ही रोचक है..

mehek ने कहा…

:):)mast mast lekh,chinta mukt kar diya,sari links fursaat mein aakar padh lenge hum baad mein.

mamta ने कहा…

इतना बढ़िया लेख और इतने अच्छे लिंक देने के बाद आप क्यों इतनी चिंतित है। :)

डॉ .अनुराग ने कहा…

कौन मुआ शक करता है आपकी लेखनी पर ?वैसे लिंक मजेदार है......लिखती रहिये....

Abhishek Ojha ने कहा…

पढने-लिखने में चिंता कैसी... कहाँ हम जैसे लोग आपसे सीखने की कोशिश करते हैं और आप हैं की चिंता कर रही हैं.

Sanjeet Tripathi ने कहा…

टेंशन नई लेने का, सिर्फ़ लिखते जाने का ;)

रंजू भाटिया ने कहा…

मजा आ गया यह पोस्ट पढ़ के ..खूब अच्छा लिखा है मीनाक्षी आपने :)

ghughutibasuti ने कहा…

बढ़िया लिखा है। लिखती रहिए और पढ़ती रहिए।
घुघूती बासूती

अजित वडनेरकर ने कहा…

मीनू दी , माफी चाहूंगा। बहुत ज्यादा व्यस्तता थी। ये पोस्ट देख नहीं पाया था। बहुत बढ़िया लेख है। सफर के पड़ाव का उल्लेख करने का शुक्रिया।

मीनाक्षी ने कहा…

कभी कभी जीवन की धारा ऊबड़ खाबड़ रास्ते से गुज़रती है तो मन चंचल हो जाता है...समतल रस्ते पर चलती हुई धारा भी उबाऊ हो जाती है.... बस इतना भर ही......
मेरी बेतरतीब सोच को सराहा ..स्नेह दिया
आप सब का आभार ...