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मंगलवार, 17 जून 2008

बंद कमरे की एक छोटी सी खिड़की ...!

कई दिनों से दमाम में हूँ , दोनों बेटे और हम घर में रहते हैं...नया शहर होने के कारण कोई मित्र भी नही... हाँ पति के सहकर्मी बार बार कहते हैं कि अपनी पत्नी को कभी भी उनके यहाँ भेज दें… साहब फिलस्तीनी हैं और पाँच बेटियों के पिता हैं सो इशारे में ही कह देते हैं बेटे नही जा सकते. बस यही सोच कर हमारा जाना टल रहा है... अब घर में वक्त गुजारने के लिए किताबें और इंटरनेट या फ़िर अतीत की दुनिया में यादों के साथ.... कल पुरानी तस्वीरे निकाल ली और बस दिन कैसे गुज़रा पता ही नही चला....
२० साल एक ऐसे समाज में गुज़रे जिसकी मानसिकता ने नारीवाद और नारी सशक्तिकरण की सोच को बेमानी माना... यह अनुभव हुआ कल रात नारी के लिए एक पोस्ट लिखते समय ... यहाँ सिर्फ़ ५ % औरतें ही काम के लिए घर से बाहर जाती हैं लेकिन घर से बाहर निकलने के लिए कोई न कोई साथ हो , इसका ध्यान रखा जाता है... १०-१२ साल की लड़की बुरका पहनना शुरू कर देती है... लेकिन बुरका पहन कर भी कुछ जगह ऐसी हैं जहाँ औरतों का जाना मना है जैसे कि वीडियो शॉप, नाई की दुकान , इसी तरह जहाँ पुरूष अधिकतर देखें जायें वहां मतुआ पुलिस आकर देखती है... रेस्तरां में फेमिली सेक्शन बने हैं , जिनके अन्दर पति और बच्चो के साथ ही बैठ सकती हैं ...

वोट देने का अधिकार तो पुरुषो को ही नही है तो औरतों की बात ही नही है फ़िर भी उनकी उम्मीद कायम है कि राजनीति में उन्हें भी शामिल किया जाएगा. किंग फैसल ने जब लड़कियों को शिक्षा देने का ऐलान किया तो इसके खिलाफ धरना देने वालों को हटाने के लिए किंग को सेना भेजनी पडी थी... आज शिक्षा पाने का अधिकार मिलते ही साउदी औरत पुरूष से आगे निकल गयी... किसी भी देश के शिक्षा संस्थान के आंकडे देखें.. लडकियां शिक्षा के क्षेत्र में लड़कों से हमेशा आगे रही हैं .... यहाँ भी ऐसा ही है... सामाजिक जीवन में हलचल इसी कारण से शुरू हो जाती है ... पुरूष इस हार को सहन नही कर पाता, कही कमज़ोर पड़ जाता है तो कहीं तिलमिला कर ग़लत रस्ते पर भटक जाता है. आजकल साउदी में तलाक का रेट इतना बढ़ गया है कि सरकार और समाज दोनों ही चिंतित हैं...

अभिव्यक्ति की आजादी जो किसी के लिए भी सबसे अधिक महत्त्व रखती है , उसे न पाकर जो दर्द होता होगा , उसका बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है.... लेकिन इन सब के बाद भी साउदी औरत पश्चिम की दखलंदाजी पसंद नही करती , अपने बलबूते पर ही अपना अधिकार पाना चाहती है... साउदी लेखिका जैनब हनीफी जिनती बेबाकी से लिखना पसंद करती थी उतना ही किंगडम इस बात की इजाज़त नही देता था...अपने कलम की आग से विचारों में गर्मी पैदा करने के लिए लिखना ज़रूरी समझा इसलिए ब्रिटेन जाकर रहने लगी... यूं ट्यूब पर इस इंटरव्यू को दिखने का एक मुख्य कारण है जैनब का निडर होकर बात करना... वही कह सकती हैं कि औरतों के पक्ष में कही हदीस मर्दों को सही नही लगती या उनका कोई वजूद ही नही है


15 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

मेरी एक सीनियर है ,dermatologist है उन्होंने बताया वहां मेल dermatologist को वहां के लोग कम प्रेफेर करते है,दरअसल मैंने उन्हें मजाक मे कहा था मेरा जुगाड़ करवायो...
आप लिखती रहे ....अच्छा लग रहा है.....

रंजू भाटिया ने कहा…

अच्छी जानकारी दी है आपने इस में ..वहाँ का सब कुछ आपने बहुत रोचक ढंग से लिखा है ..और पढने से पता चला कि यदि मौका मिले तो स्त्री अपना परचम हर जगह फैला सकती है .फ़िर वो चाहे परदे में हो ...अगले लेख के लिए इंतज़ार शुरू लिखती रहे :)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

अरब दुनिया के मुस्लिम समाज की जो
तस्वीर आप ने जो लिख भेजी है उसका अनुमान हम अपने आस-पास के मुस्लिम परिवारों के तौर-तरीकों से पूरी तरह नहीं कर सकते। लोकतान्त्रिक समाज के जो फायदे यहाँ हमारे मुस्लिम भाइयों को मिल रहे हैं उसकी अनदेखी करके कुछ दिग्भ्रमित लोग क्या वैसा ही समाज लाना चाहते हैं जिसका जिक्र आपने अपनी इस पोस्ट में किया है?

Manish Kumar ने कहा…

badhiya vivran. saudi arab mein shashkon ki mansikta ko dekh ke kuch aashcharya hua..
aasha hai apne balboote par hi sahi wahan ki stri apne liye behtar jeewan lane mein saksham hogi.

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

जब जब दमन अधिक होता है तब तब ही चिंगारी भड़के
ये बातें भी जिस दुनिया में महज कल्पना हो जाती हैं
उसको कोई नई दिशा कब देगा, बस यह सोच रहा हूँ
लेकिन अच्छा, कलम आपकी, सच्चाई तो बतलाती है

Udan Tashtari ने कहा…

रोचक अंदाज में काफी जानकारी दे रही हैं. काफी घुटन भरा माहौल लगता है या शायद आदत हो जाती हो. कौन जाने.

बेनामी ने कहा…

waha nari shiksha prapt kar rahi hai yahi bahut bada kadam hai,bahut achha laga aur saudi ke baarein mein jankar.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बधाई, इस पोस्ट के लिए। आप ने सऊदी जीवन के अद्बुत सत्यों को सामने रखा। सऊदी महिलाओं की सोच सही है। किसी भी परिवर्तन में अन्तर्वस्तु की प्रधान भूमिका होती है। यदि महिलाएँ स्वयं ही अपने जीवन को परिवर्तित करने पर आ गईं तो उन्हें कोई भी रोक नहीं सकेगा।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

मीनाक्षी जी
ये कडी भी काफी कुछ बतला गयी ..
सुना था वहाँ के बारे मेँ,
मगर आप वहाँ रह रहीँ हैँ -
- तो ये नज़दीक से देखा सत्य हुआ ...
जारी रखिये
..बहोत अच्छा लगा !
शुक्रिया ..

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

नारी होकर जन्मना एक हैण्डीकैप के साथ तो होना है ही। पर सब जगह उत्तरोत्तर यह हैण्डीकैप कम से कमतर होता जा रहा है - यह सन्तोष प्रद है।

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

kabhi bharat ki bhi yahi sthiti hua karti thi..... aurato ki baazar lagna, lauki kaddu ki tarah unka mol tol hona.... offf dil sihar jata hai ..lekin khatam hua na...! har peeda jab parakashtha par pahunchati hai to foot hi jaati hai

mamta ने कहा…

सउदी देशों का एक और रूप आपने आज की पोस्ट मे वर्णित किया है ।

pallavi trivedi ने कहा…

maine pahle bhi padha hai waha ki mahilaaon ke baare mein...aapse jaankar aur jyada pata chala....

Rachna Singh ने कहा…

well writen meenakshi
you can post his again on naari also

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मिनाक्षी जी
बहुत दुःख होता है ये जान कर की जो देश सम्पदा में इतना सम्प्पन है वो ही सोच में कितना कृपन है. सिर्फ़ इसलिए की कोई महिला है उस से दूसरे स्टार का बर्ताव सही नहीं...है तो वो भी इंसान ही. बहुत अच्छी जानकारी दे रही हैं आप.
नीरज