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सोमवार, 12 मई 2008

हाइकु (त्रिपदम)










कैसे लिखूँ मैं
बुद्धि जड़ हो गई
मन बोझिल

सोचा था मैंने
सफ़रनामा न्यारा
दर्ज करूँगी

लेखनी रुकी
थम गए हैं शब्द
गला रुँधा है

कविता हो न
लेख लिख न पाऊँ
बात बने न

अर्धांग रूठा
निपट अकेली माँ
दर्द गहरा

साथी जो छूटा
मन-पंछी व्याकुल
रोता ही जाए

समझूँ कैसे
माँ के अंतर्मन को
छटपटाऊँ

सरल नहीं
लिख पाना कुछ भी
हाल बेहाल

देखा जो मैंने
मैना जब चहकी
मन बहला

माँ ने भी देखा
ठंडी सी आह भरी
नैनों में नीर

पंछी निर्मोही
कर्म करे अपना
मोह न जाने

उड़ जाते हैं
चींचीं करते बच्चे
पाते ही पंख

यादों के साए
खुश्बू बनके छाएँ
करती इच्छा

18 टिप्‍पणियां:

Pankaj Oudhia ने कहा…

वाह क्या बात है। हमेशा की तरह सशक्त प्रस्तुति।

Udan Tashtari ने कहा…

भाव अच्छे हैं. ४ हाईकुओं में ५-७-५ का निर्वहन नहीं हो पाया है. आधा शब्द गिना नहीं जाता. आशा है अन्यथा न लेंगी.

ठीक करके यह टिप्पणी मिटा दिजियेगा.

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

बढि़या त्रिपदम

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

न लिख पाने की छटपटाहट भी बहुत कुछ लिखवा लेती है।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

भाव बहुत सशक्त हैं। धन्यवाद प्रस्तुति के लिये।

डॉ .अनुराग ने कहा…

हमेशा की तरह सुंदर अभिव्यक्ति...आख़िर वाला हाईकू बहुत सुंदर है...

Sanjeet Tripathi ने कहा…

मन की बेचैनी/हालत को भावपूर्ण बयान किया है आपने!

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

samvedanshilta se labalab..!

Abhishek Ojha ने कहा…

पंछी निर्मोही
कर्म करे अपना
मोह न जाने

उड़ जाते हैं
चींचीं करते बच्चे
पाते ही पंख

खूबसूरत !

स्वप्नदर्शी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सम्वेदंशील कविता है.
कुछ -कुछ रुलाने वाली भी. जीवन के रास्ते चाहे-बिन चाहे हमें अपने माता-पिता से दूर ले जाते है, खास्कर जब उन्हें सब से ज्यादा ज़रूरत होती है.

मीनाक्षी ने कहा…

समीर जी , मुझे दो में गलती दिखाई दी जिसे ठीक कर दिया है. आपकी टिप्पणी रखना चाहती हूँ... सुधार फिर विकास की गुंजाइश ज़्यादा रहती है.

Unknown ने कहा…

बहुत ही ईमानदारी और सरलता से भाव अभिव्यक्त किये है आपने. बहुत अच्छा लगा.

अजय कुमार झा ने कहा…

meenakshi jee,
saadr abhivaadan. aap jab maun rah kar bahut kuchh keh jaatee hain to fir keh kar naa jaane kya kya saamne aa jaataa hai. aapko padhnaa ek sukhad anubhuti hai.

pallavi trivedi ने कहा…

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई.....बहुत सुन्दर हाइकु हैं!अच्छा लगा पढ़कर.

Unknown ने कहा…

स्वागत घर से घर लौटने का - वैसे लौटने के दो एक हफ्ते ऊबड़ खाबड़ जैसा तो होगा - आपके भी नहीं लिखने के बहाने मजेदार रहे - पहले वाले पर गूँज [ :-)]- सादर

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

देखा जो मैंने
मैना जब चहकी
मन बहला
====================
सुंदर...भावपूर्ण.....डूब कर लिखे गये!
मैने और मैना का प्रयोग महमोहक लगा !!

Amit K Sagar ने कहा…

इसी बहाने अच्छा लिखा है आपने.

सागर नाहर ने कहा…

बहुत खूब..