साउदी अरब में कुछ बड़े बड़े कम्पाउंड छोड़कर अधिकतर घर कुछ इस तरह माचिस की डिब्बी से होते हैं. जिसका कुछ हिस्सा खोलकर धूप और ताज़ी हवा का थोड़ा मज़ा लेने की कोशिश की जाती है.
धूप का एक भी टुकड़ा घर के अन्दर आ जाए तो समझिए कि हम बहुत भाग्यशाली हुए अन्यथा पति की दया पर निर्भर कि किसी दोपहर को धूप लगवाने परिवार को बाहर ले जाएँ.
हमने अपने घर के एक कमरे में जैसे ही सूरज के सुनहरे आँचल को फैलते देखा.... हाथ जोड़कर सर झुका दिया......
नाश्ते में चटकदार रंग के ताज़े फल खाने से पहले तस्वीर लेना न भूलते. हर बार अलग अलग ऐंगल से तस्वीर खींच कर फिर ही खाते.
उसके बाद घर के कोने कोने से यादों की बेरंग धूल को ढूँढ ढूँढ कर साफ करते.
बन्द घर में भी ऐसी महीन धूल कहीं न कहीं से दनदनाती हुई आ ही जाती है... सुबह भगाओ तो दोपहर को फिर आ धमकती है...दोपहर अलसाई सी धूल शाम तक फिर कोने कोने पर चढ़ जाती है.... लकड़ी का कुत्ता जो अम्बाला शहर से कुछ दूर एक गाँव नग्गल की कोयले की एक टाल से लाया गया है, जिसके पैरों तले धूल बिछी पड़ी है...
जिस तरह रेतीली हवाएँ कभी आहिस्ता से आकर सहला जाती हैं तो कभी तेज़ी से आकर झझकोर जाती हैं , उसी तरह हरा भरा पेड़ जब ठूँठ हो जाता है तो दिल को झझकोर डालता है... लगता जैसे पेड़ का अस्थि पंजर अपनी बाँहें फैला कर शरण माँग रहा हो....
चित्त को चंचल करती इस जड़ को ही देखिए...
आपको क्या दिखता है.....
बस इसी तरह घर भर में डोलते सुबह से शाम
बस इसी तरह घर भर में डोलते सुबह से शाम
हो जाती. दोनों बेटे तो अपने कमरे में अपनी अपनी पढ़ाई में मस्त रहते. हम कभी मोबाइल पर उर्दू रेडियो का स्टेशन पकड़ने की कोशिश करते तो कभी अंग्रेज़ी और अरबी गाने सुनकर मन बहलाते. किताबें तो आत्मा में उतरने वाला अमृत रस जो जितना पीते उतना ही प्यास और बढ़ती...
एक हाथ में 'दा सीक्रेट' तो दूसरे हाथ में 'वुमेन इन लव' ..... एक रोचक तो दूसरी नीरस....लेकिन पढ़ना दोनो को है सो पढ़ रहे हैं. जल्द ही उस विषय पर कुछ न कुछ ज़रूर लिखेंगे.
22 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर तस्वीरें हैं. बहुत ही कलात्मक अभिव्यक्ति. वापसी पर स्वागत है मीनाक्षी जी.
बेहतर प्रस्तुति सचित्र
मन को भा गई मित्र
रोज खींचें नया चित्र
विचित्र विचित्र विचित्र
यह पोस्ट मुझे पुन: याद दिलाती है ब्लॉगिंग की पावर के बारे में। अपना मन और अपना परिवेश ब्लॉगिंग के माध्यम से कलात्मक तरीके से अभिव्यक्ति हो सकता है। वही आपने बखूबी किया है।
bahut achchhe
मीनाक्षी जी। आप का खाली पन भी इस पोस्ट में दिखाई पड़ रहा है जिसे आप भरने का प्रयत्न कर रही हैं। कहीं वतन से दूरी ही तो इस की वजह नहीं है।
सोचता हूं ऊपर की दोनों तस्वीरों सी और क्यों नहीं हैं..
बहुत ही खूबसूरत कलात्मक अभिव्यक्ति !
अति उत्तम !
"मन में कई बार सवाल उठता है कि तरह तरह की मोम बत्तियाँ जलाने के पीछे क्या कारण है"
मालुम नहीं - मोमबत्तियों के बीच खाना खाना तो सबसे रुमानी होता है :-)
खूबसूरत तस्वीरें.
बहुत ही खूबसूरत है आपका अंदाजे बयां ।
मीनाक्षी दी तस्वीरें तो शानदार है और कई दिनों बाद आपकी वापसी देखकर अच्छा लगा
वाह....! चित्र खुद ही बहुत कुछ बायाँ कर रहे थे......! उस पर आपकी इबारत ...चार चाँद लग गए....!
उम्दा सचित्र प्रस्तुति.बधाई.
meenakshi jee,
saadar abhivaadan. kamaal hai blog par aapkee mehnat dekh kar bahut protsaahan miltee hai. sanyukt arab ameeraat aur apnaa ghar ghumaane ke liye dhanyavaad aur nashte kee to baat hee kya
कलात्मक पोस्ट!!!
पसंद आई!!
peeli aur naarangii "lau."..kitni sundar...kitni shaant....hai na MEENU DI ?
बधाई.
एक सुंदर और कलात्मक पोस्ट.
ज्ञान भइया ने बहुत ही अच्छी बात कही आपकी पोस्ट और blog-power के बारे में.
खूबसूरत है अंदाज़े बयां । तस्वीरें भी शानदार
सुंदर प्रस्तुति..
khubsurat andaz,khubsurat photo.bahut hi sundar post.
आपका सबका धन्यवाद !
@प्रमोद जी , ज़रा सी खिड़की खोल कर इमारत की ली गई तस्वीर है और छाया की तो बहुत सी तस्वीरें हैं.
@द्विवेदी जी,पति ऑफिस जाते थे और हम घर में अकेले. बस जो किया वही लिख दिया तस्वीरों के साथ... बाहर अकेले जा नहीं सकते.
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