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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

त्रिपदम (हाइकु)






दिल को छू ले
बात-बात का फ़र्क
बुद्धि उलझे


शुष्क नीरस
प्रेम-पुष्प विहीन
मानव मन


मृग-तृष्णा है
मन मरुस्थल सा
प्रेम न फ़ूटा


वसुधा सोचे
खिलने की चाह है
शांति मिलेगी


सुमन खिले
हरयाली उमगी
खुशबू फैली


मन प्रेमी का
आनन्द का सोता सा
रस भीगा सा

9 टिप्‍पणियां:

Sanjay Karere ने कहा…

बहुत दिनों के बाद आपका त्रिपदम पढ़ कर बहुत आनंद आया. कृपया नियमित रूप से पढ़ने का अवसर दें...

बेनामी ने कहा…

vasudha puche,khilna chahu shanti milegi,bahut sundar.man marusthal,wala bhi bahut sundar hai.

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत सुन्दर ।
घुघूती बासूती

Rachna Singh ने कहा…

good ones as always

अजय कुमार झा ने कहा…

meenakshi jee,
aapko padhnaa ab isliye bhee achha lagtaa hai kyonki na sirf man kobalki aankhon ko bhee sukoon miltaa hai.

anuradha srivastav ने कहा…

बहुत खूब........

mamta ने कहा…

बहुत सुंदर।
बस अब तो नियमित रूप से लिखती रहिये क्यूंकि बीच-बीच मे आप त्रिपदम लिखना बंद कर देती है।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर!!

सुनीता शानू ने कहा…

वाह! वाह! वाह!