श्री विद्याभूषण धर से मेरी पहली मुलाकात रियाद के अवध-मंच पर हुई थी. उसके बाद से हम रियाद ही नहीं दुबई भी साथ रहे. आजकल कनाडा जाने की तैयारी में हैं. मुझे स्नेह और आदर से दीदी बुलाते हैं, जब भी मिलो कुछ न कुछ नया सुनाने को बेताब हो जाते हैं और उतनी चाहत से मैं सुनकर आनन्द पाती हूँ. भगवान से की गई चैट 'वार्तालाप' ने मुझे हमेशा प्रभावित किया. भगवान के रूप में संवाद भी अगर मानव के हैं तो विश्वास से कहा जा सकता है कि इंसान के अन्दर ही उसका वास है. काश कि हम उसे अपने अन्दर ही पा सकें !
भगवान: वत्स! तुमने मुझे बुलाया?
मैं: बुलाया? तुम्हें? कौन हो तुम?
भगवान: मैं भगवान हूँ. मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुन ली, इसलिए मैंने सोचा तुमसे चैट कर लूँ.
मैं: हाँ मैं नित्य प्रार्थना करता हूँ. मुझे अच्छा लगता है. बचपन में माँ के साथ मिलकर हम सब नित्य प्रार्थना करते थे. बचपने की आदत व्यस्क होने तक साथ रही. साथ में माँ और बहनों के साथ बिताए बचपन के दिनों की याद
ताज़ा हो जाती है. वैसे इस समय मैं बहुत व्यस्त हूँ, कुछ काम कर रहा हूँ जो बहुत ही पेचीदा है.
भगवान: तुम किस कार्य में व्यस्त हो? नन्हीं चींटियाँ भी हरदम व्यस्त रहती हैं.
मैं: समझ में नहीं आता पर कभी भी खाली समय नहीं मिलता. जीवन बहुत दुश्कर व भाग-दौड़ वाला हो गया है. हर समय जल्दी मची रहती है.
भगवान: सक्रियता तुम्हें व्यस्त रखती है पर उत्पादकता से परिणाम मिलता है. सक्रियता समय लेती है पर उत्पादकता इसी समय को स्वतंत्र करती है.
मैं: मैं समझ रहा हूँ प्रभु, पर मैं अभी भी भ्रमित हूँ. वैसे मैं आपको चैट पर देखकर विस्मित हूँ और मुझसे सम्बोधित है.
भगवान: वत्स, मैं तुम्हारा समय के साथ का संताप मिटाना चाहता था, तुम्हें सही मार्ग-दर्शन देकर इस अंर्तजाल के युग में , मैं तुम तक तुम्हारे प्रिय माध्यम से पहुँचा हूँ.
मैं: प्रभु, कृपया बताएँ, जीवन इतना विकट, इतना जटिल क्यों हो गया है?
भगवान: जीवन का विश्लेषण बन्द करो; बस जीवन जियो! जीवन का विश्लेषण ही इसे जटिल बना देता है.
मैं: क्यों हम हर पल चिंता में डूबे रहते हैं?
भगवान: तुम्हारा आज वह कल है जिसकी चिंता तुमने परसों की थीं.
तुम इसलिए चिंतित हो क्योंकि तुम विश्लेषण में लगे हो. चिंता करना तुम्हारी आदत हो गई है, इसलिए तुम्हें कभी सच्चे आनन्द की अनुभूति नहीं होती.
मैं: पर हम चिंता करना कैसे छोड़े जब सब तरफ इतनी अनिश्चितता
फैली हुई है.
भगवान: अनिश्चितता तो अटल है, अवश्यम्भावी है पर चिंता करना
ऐच्छिक , वैकल्पिक है.
मैं: किंतु इसी अनिश्चितता के कारण कितना दुख है, कितनी वेदना है.
भगवान: वेदना और दुख तो अटल है परंतु पीड़ित होना वैकल्पिक है.
मैं: अगर पीड़ित होना वैकल्पिक है फिर भी लोग क्यों पीड़ित हैं. हमेशा हर कहीं सिर्फ पीड़ा ही दिखती है. सुख तो जैसे इस संसार से उठ गया है.
भगवान: हीरा बिना तराशे कभी अपनी आभा नहीं बिखेर सकता. सोना आग में जलकर ही कुन्दन हो जाता है. अच्छे लोग परीक्षा देते हैं पर पीड़ित नहीं होते. परीक्षाओं से गुज़र कर उनका जीवन अधिक अच्छा होता है न कि कटु होता है.
मैं: आप यह कहना चाहते हैं कि ऐसा अनुभव उत्तम है?
भगवान: हर तरह से , अनुभव एक कठोर गुरु के जैसा होता है. हर अनुभव पहले परीक्षा लेता है फिर सीख देता है.
मैं: फिर भी प्रभु, क्या यह अनिवार्य है कि हमें ऐसी परीक्षाएँ देनी ही पड़े?
हम चिंतामुक्त नहीं रह सकते क्या?
भगवान: जीवन की कठिनाइयाँ उद्देश्यपूर्ण होती हैं. हर विकटता हमें नया पाठ पढ़ाकर हमारी मानसिक शक्ति को और सुदृढ़ बनाती है. इच्छा शक्ति बाधाओं और
सहनशीलता से और अधिक विकसित होती हैं न कि जब जीवन में कोई व्याधि या कठिनाई न हो.
मैं: स्पष्ट रूप से कहूँ कि इतनी सारी विपदाओं के बीच समझ नहीं आता
हम किस ओर जा रहे हैं.
भगवान: अगर तुम सिर्फ बाहरी तौर पर देखोगे तो तुम्हें यह कभी भी ज्ञान न होगा कि तुम किस और अग्रसर हो? अपने अन्दर झाँक कर देखो, फिर बाहर से अपनी इच्छाओं को फिर तुम्हें ज्ञात होगा ,तुम जाग जाओगे. चक्षु सिर्फ देखते हैं. हृदय अंतर्दृष्टि और परिज्ञान दिखाता है.
मैं: कभी कभी तीव्रगति से सफल न होना दुखदायी लगता है. सही दिशा में न जाने से भी अधिक ! प्रभु बताएँ क्या करूँ?
भगवान: सफलता का मापदंड दूसरे लोग निश्चित करते हैं और इसके अलावा सफलता की परिभाषा हर व्यक्ति के लिए भिन्न होती है परंतु संतोष का
मापदंड खुद तुम्हें तय करना है, इसकी परिभाषा भी तुम्हीं ने करनी है. सुमार्ग आगे है यह जानना ज़्यादा संतोषजनक है या बिना जाने आगे बढ़ना , यह तुम्हें तय करना है.
मैं: भगवन, कठिन समय में, व्याकुलताओं में, कैसे अपने को प्रेरित रखें?
भगवान: हमेशा इस बात पर दृष्टि रखो कि तुम जीवन मार्ग पर कितनी
दूर तक आए हो न कि अभी कितनी दूर अभी और जाना है. हर पल इसी
में संतोष करो जो तुम्हारे पास है न कि इस बात का संताप करो कि क्या नहीं है.
मैं: प्रभु आपको मनुष्य की कौन सी बात विस्मित करती है?
भगवान: जब मनुष्य पीड़ा में होता है, वह हमेशा आक्रोश से भरा रहता है और पूछता है, "मैं ही क्यों?" परंतु जब यही मनुष्य सम्पन्न होता है, सांसारिक सुख की भरमार होती है, सफलता उसके चरण चूमती है वह कभी यह नहीं कहता, "मैं ही क्यों?" हर मनुष्य यह चाहता है कि सत्य उसके साथ हो पर कितने लोग ऐसे हैं जो सत्य के साथ हैं!
मैं: कई बार मैं अपने आप से यह प्रश्न करता हूँ, "मैं कौन हूँ? मैं यहाँ क्यों हूँ?" मेरे प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं मिलता.
भगवान: यह मत देखो कि तुम कौन हो, पर इस बात का चिंतन करो कि
तुम क्या बनना चाहते हो. यह जानना त्याग दो कि तुम्हारा यहाँ होने का उद्देश्य क्या है; उस उद्देश्य को जन्म दो. जीवन किसी अविष्कार का क्रम नहीं, परंतु एक रचना क्रम है.
मैं: प्रभु बताएँ जीवन से मुझे सही अर्थ कैसे मिल सकता है?
भगवान: अपने भूत को बिना किसी संताप के याद रखो और वर्तमान को दृड़ निश्चयी हो कर सम्भालो और भविष्य का बिना किसी भय से स्वागत करो.
मैं: प्रभु एक अंतिम प्रश्न , कभी ऐसा लगता है कि मेरी प्रार्थनाएँ मिथ्या हो जाती हैं, जिनका कोई उत्तर नहीं मिलता.
भगवान: कोई भी प्रार्थना उत्तरहीन नहीं होती पर हाँ कई बार उत्तर ही
'नहीं" होता है.
मैं: प्रभु आपका कोटि कोटि धन्यवाद, इस वार्ता के लिए. मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ कि नव वर्ष के आगमन पर मैं अपने आप में एक नई प्रेरणा का संचार अनुभव कर रहा हूँ.
भगवान: भय त्याग कर निष्ठा का समावेष करो. अपने संदेहों पर अविश्वास करो और अपने विश्वास पर संदेह करो. जीवन एक पहेली के हल करने जैसा है न कि समस्या का समाधान करने जैसा. मुझ पर विश्वास करो. जीवन एक मुस्कान है जो मुस्कुरा कर ही जी सकते हैं.
"विद्याभूषण धर"
7 टिप्पणियां:
अच्छा और ज्ञान वर्धक वार्तालाप है. भगवान् और भक्त के बीच.
हम भी लाभान्वित हुए.
इसे प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद स्वीकारें.
"मैं कौन हूँ? मैं यहाँ क्यों हूँ? मैं ही क्यों?" इन यक्ष प्रश्नों से मुक्ति पाना क्या इतना आसान है? इंसान का सारा जीवन इसी उधेड़बुन में गुजर जाता है. अपने अंदर झांक कर देखने से ही सबसे वीभत्स अनुभव होते हैं लेकिन स्वयं से संवाद ही सबसे कठिन है...
यह पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा.
बहुत निष्पक्ष होकर लिखा है। असल में तो संवाद स्वयं से है परंतु इतना सत्य और प्रवाहपूर्ण है कि लगा जैसे स्वयं भगवान ने चैट की है। गहरी भेद गई यह रचना। विद्याभूषण धर जी को साधुवाद बहुत खूबसूरत लिखा है और आपको धन्यवाद इसे पोस्ट करने के लिये।
मैं शुरू करते समय सोच रहा था कि यह सटायर होगा। पर यह तो गम्भीर बात निकली।
बहुत अच्छे!!
शुक्रिया इसे पढ़वाने के लिए!! बहुत ही अच्छा लिखा गया है।
वाह । मीनाक्षी जी हमें भी वो ईमेल आई डी भेज दीजियेगा, एड कर लेंगें और इंतजार करेंगें कि कबहू तो दीनदयाल के भनक पडेंगें कान ।
लेख अच्छा लगा ।
घुघूती बासूती
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