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रविवार, 30 दिसंबर 2007
कैसे रोकूँ, कैसे बाँधू जाते समय को
कैसे रोकूँ, कैसे बाँधू जाते समय को
जो मेरे हाथों से निकलता जाता है.
कैसे सँभालूँ, कैसे सँजोऊँ बीती बातों को
भरा प्याला यादों का छलकता जाता है.
विदा करती हूँ पुराने साल को भारी मन से
नए वर्ष का स्वागत करूँ मैं खुले दिल से !!
क्षण-भँगुर जीवन है यह
हँसते हुए गुज़ारना !
रोना किसे कहते हैं यह
इस बात को बिसारना !
काम, क्रोध, मद, लोभ को
मन से है बस निकालना !
झूठ को निकृष्ट मानूँ
सच को सच्चे मन स्वीकारूँ !
जैसे लोहा लोहे को काटे
छल-कपट को छल से मारूँ !
त्याग, सेवा भाव दे कर
असीम सुख-शांति मैं पाऊँ !
कोई माने या न माने
प्रेम को ही सत्य मानूँ !
मानव-स्वभाव स्वयं को ही नहीं मायाकार को भी चमत्कृत कर देता है. आने वाले नव वर्ष में जीवन धारा किस रूप में आगे बढ़ेगी कोई नहीं जानता.
सबके लिए शुभ मंगलमय वर्ष की कामना करते हैं.
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7 टिप्पणियां:
सुंदर भाव, दी …आपको भी सपरिवार नव वर्ष की शुभ कामनायें
यादों का प्याला भर कर सचमुच छलक रहा है. कितने सरल शब्दों में आपने कह डालीं इतनी सारी बातें. नए साल की आपको भी शुभकामनाएं.
कोई माने या न माने
प्रेम को ही सत्य मानूँ !
मिनाक्षी जी
बहुत सुंदर रचना. छोटे छोटे शब्दों में बहुत गहरी बात की है आप ने. बधाई.
नव वर्ष की शुभकामनाएं आप के और आपके परिवार के लिए.
नीरज
बहुत बढ़िया।
वाकई प्रेम ही सत्य है पर सत्य मिलता कहां है आसानी से!!
शुभकामनाएं आपको भी।
मनुष्य ने केवल समय को ही नहीं बाँध पाया है , उसीप्रकार जैसे मौत को काबू में करना आज भी मनुष्य के लिये स्वप्न ही है,बहुत बढ़िया। गहरी बात की है आप ने, बधाई!
आपका नया वर्ष मंगलमय हो !
सुन्दर कविता ! नववर्ष की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती
ek dam sundar sachi kavita,wish uhappy new year,i hv being reading ur poems seems finished reading all today,all r great.
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