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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2007

मधुशाला कहें या पाकशाला !

अंर्तजाल पर आए थे जीवन के नए-नए पाठ पढ़ने , पहुँच गए चिट्ठाजगत की मधुशाला में. एक प्यारी सी सखी जो खुद एक चिट्ठाकार हैं जबरन ले आईं यहाँ और बार टैंडर बन कर हर ब्लॉग को खोल खोल कर ज़रा ज़रा चखा कर हरेक की खासियत बताती जाती. हम थे कि एक साथ कई ब्लॉग कॉकटेल की तरह गटक गए. ऐसा नशा हुआ कि हैंग ओवर भगाने के लिए सुबह-सुबह भी एकाध ब्लॉग की ज़रूरत होने लगी जैसे सुबह ताज़ा अखबार खोलने का आनन्द अलग है. उसी तरह ब्लॉग पढ़ने का अपना ही एक नशा है. धीरे धीरे ऐसा नशा छाया कि कब हम इस आदत के शिकार हो गए पता भी नहीं चला. समझ न आए कि चिट्ठाजगत मधुशाला की पाठशाला है या इस पाठशाला मे कोई मधुशाला है.
हर चिट्ठे की अपनी विशेषता, नशे का स्तर अलग अलग. किसी को पढ़कर पीकर गम्भीर हो जाना, आत्मचिंतन करने पर विवश हो जाना, किसी को पढकर हँसना, किसी को पढ़कर आँखें नम करना. सुख-दुख की अनुभूति, विषाद और पीड़ा के भाव सब मिल कर एक अलौकिक नशे में डुबो देता.
इस अलौकिक आनन्द में अभी हम डुबकियाँ लगा ही रहे थे कि नींबू के रस की तरह बच्चे टपक पड़े और सारा नशा हिरन कर दिया. उन्हें पेट की भूख सता रही थी, उनके लिए पाकशाला जाने के अलावा कोई चारा न था सो लड़खड़ाते कदमों से मन मार कर उठे खाना पकाने.
"कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय" – चपाती सेकते-सेकते अचानक विचार आया था कि धतूरा हो या गेहूँ हो, दोनो को ही खाने के बाद नशा आता है फिर कैसे कहें कि जिन्हें मधुशाला से परहेज़ है , वे चिट्ठाजगत को पाकशाला समझें. हर रोज़ यहाँ नए चिट्ठे स्वादिष्ट व्यंजनों की तरह अंर्तजाल पर सजे होते हैं. कुछ भावनाओं की चाशनी में डूबे हुए तो कुछ मन को झझकोरते तीखी मिर्च के तड़के के साथ.
मधुशाला कहें या पाकशाला – मादकता तो दोनों में विराजमान है. चिट्ठाजगत की पाठशाला से हम क्या सीख पाते हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा फिलहाल इस समय हम एक नए चिट्ठे को खोल कर उसे पीने पचाने मे लगे हैं.

14 टिप्‍पणियां:

arbuda ने कहा…

अच्छा है न। इस नशे में आनन्द की अनुभूति करते रहना। बहुत अच्छा और सत्य लिखा है।

काकेश ने कहा…

हमारे शब्द आपके चिट्ठे पर आ गये. सच ब्लॉग़िंग का नशा मधुशाला सा ही है.

Suvichar ने कहा…

ये वो नशा है जिसमे कुछ भी हानि नही है ,केवल फायदा ही फायदा है.

ePandit ने कहा…

बस आपसे ज्यादा क्या कहें। छुटती नहीं है काफिर मुंह से लगी हुई। :)

Manish Kumar ने कहा…

बस लिखते पढ़ते रहने का ये सिलसिला बनाए रखिए, ये आपके जीवन का अभिन्न अंग बन जाएगा.

Atul Chauhan ने कहा…

ब्लॉगरी का नशा 'हेरोइन'(मादक पदार्थ )से भी बढकर है। अब देखते हैं। कि इस नशे से आंखे खराब होती हैं या बीबी से तलाक? ये तो आने वाला समय बतायेगा।

Udan Tashtari ने कहा…

शराब छुड़ाने के सेन्टर और दवाईयाँ तो बाजार में है मगर चिट्ठानशा तो अब तक लाइलाज है. जो आया, थोड़ा टिका और समझो कि लती हुआ. अब कहाँ जाईयेगा बच कर. अब तो बस नशे में झूमिये-कोई रास्ता नहीं. :)

Sanjeet Tripathi ने कहा…

मुझको यारों माफ़ करना मै नशे मे हूं( ब्लॉग्स के)

फ़ुल लग्गी में

विकास परिहार ने कहा…

मीनाक्षी जी सबसे पहले तो मेरे चिट्ठे पर आकर टिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। हाँ जहाँ तक चिट्ठाकारी के नशे का सवाल है तो बहुत अच्छा है क्यों कि ये बाकी नशों की तरह कम से कम वक़्त के साथ उतरता तो नहीं है।
और अब बात आती है आपकी करी हुई टिप्पणी की तो बस इतना ही कहूंगा कि यह मृत्यु का आह्वाहन करने वाला पलायनवादी तो कत्तई नहीं है। जहाँ तक अन्धेरों की बात है तो मेरा मानना है कि अन्धेरे का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नही होता क्यों कि प्रकाश का न होना ही अन्धकार है। और जहाँ तक मृत्यु की बात है तो मेरा मानना है कि तथाकथित जीवन मृत्यु की ही एक धीमी और लंबित क्रिया है। मृत्यु मे वही क्रिया पूर्ण होती है जिसका आरंभ जन्म से हुआ है। और हां यदि मृत्यु के बारे में थोड़ा और पड़ना चाहें तो एक बार
बोध पर अवश्य देखें।

उन्मुक्त ने कहा…

सच, इसका नशा भी किसी नशे से कम नहीं।

हरिराम ने कहा…

नशा-निवारण विभाग को अब और अधिक मुस्तैद होना पड़ेगा?

36solutions ने कहा…

खुदा करे जुनून ये कम, न होने पाये ।

'आरंभ' छत्‍तीसगढ की धडकन

डॉ .अनुराग ने कहा…

गोया की इस मयकदे मी हम भी कई बार गए है.......

कुश ने कहा…

आपने तो ये पंक्ति ही ग़लत साबित कर दी की नशा करना बुरी बात है... यदि नशा ऐसा हो तो ये बुरी बात बिल्कुल नही है...