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सोमवार, 1 अक्तूबर 2007

'जय जवान, जय किसान'


तीन महीने का नन्हा सा शिशु माँ की गोद से छूट कर गाय चराने वाले की टोकरी में गिर गया। भगवान का प्रसाद मानकर चरवाहा खुशी-खुशी बालक को घर ले गया क्योंकि उसकी अपनी कोई सन्तान नहीं थी। माता-पिता ने पुलिस में रिपोर्ट कराई तो बच्चा ढूँढ लिया गया।(इस घटना का मेरे पास कोई प्रमाण नहीँ है,बचपन मेँ नाना जी से सुनी थी) वह बच्चा और कोई नहीं हमारे देश के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री थे जिनका जन्म २ अक्टूबर के दिन हुआ। गाँधी जी का जन्मदिन भी 'गाँधी जयंती' के रूप में हर साल मनाया जाता है।
शास्त्री जी के पिता श्रद्धा प्रसाद एक स्कूल टीचर थे, कुछ समय बाद अलाहाबाद में कलर्क बन गए। लाल बहादुर जब डेढ़ साल के ही थे तो पिता का साया सिर से उठ गया। माँ और बहनों के साथ दादा हज़ारी लाल के पास आकर रहने लगे। गाँव में हाई स्कूल न होने के कारण दस साल के लाल बहादुर को मामा के पास वाराणसी भेज दिया गया , जहाँ हरिश्चन्द्र हाई स्कूल में पढ़ने लगे। काशी विद्यापीठ मेँ उन्हेँ 'शास्त्री' की उपाधि मिली.
'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले नेता धरती से जुड़े महामानव सादा जीवन, उच्च विचार पर विश्वास करते थे. 17 साल की उम्र से ही गाँधी जी से प्रभावित होकर देश के स्वतंत्रता संग्राम मेँ कूद गए थे. पण्डित नेहरू के निधन के बाद देश की बागडोर शास्त्री जी के हाथ मेँ सौपीँ गई थी. हमारे देश के दूसरे प्रधान मंत्री के रूप मेँ अपने कार्य काल मेँ उन्होँने अपनी आत्मशक्ति का , दृढ़ निश्च्यी होने का परिचय दिया. रेल मंत्री हुए या गृह मंत्री हुए. राजनीति से जुड़े जीवन की चर्चा करना मेरा उद्देश्य नहीँ है.
मुझे याद आ रहा है कि जब वे 'होम मिनिस्टर' थे तो लोग उन्हेँ 'होम लेस होम मिनिस्टर' कह कर चिढ़ाया करते थे. जब वे रेल मिनिस्टर थे तो रेल दुर्घटना होने के कारण त्याग पत्र दे दिया था. जेल के दिनोँ मेँ एक बेटी की बीमारी पर 15 दिनोँ के पैरोल पर घर आए पर दुर्भाग्यवश बेटी परलोक सिधार गई तो वापिस जेल लौट गए , यह कह कर कि अब बेटी तो रही नहीँ तो रुक कर क्या करेगेँ.
जीवन मेँ आने वाली कठिनाइयोँ ने उन्हेँ अपनी आग मेँ तपाकर खरा सोना बना दिया था. हरी हरी दूब की तरह दिल के नरम और अपनी मीठी मुस्कान से सब का दिल जीत लेने वाले महापुरुष से हम बहुत कुछ सीख सकते हैँ. बड़े से बड़ा तूफान आने पर हरी भरी घास वहीँ की वहीँ रहती हैँ.
शास्त्री जी एक ऐसा ही एक व्यक्तित्व हैँ जिनके पद-चिन्होँ पर चलने की कोशिश रही है.
भारत रतन शास्त्री जी के आंतरिक गुणोँ को याद करके उन पर अमल करने का प्रयास ही उन्हेँ मेरी श्रद्धाजंलि है.

कुछ पंक्तियाँ श्रद्धाजंलि के रूप मेँ शास्त्री जी के नाम :

शहद की धार को देखा जो इक तार सा
मीठा ख्याल आया इक किरदार का ..
शहद की धार या चलते दरिया की धार
देखा उस धार को बहते इक सार सा ..
तस्सवुर उभरता है एक ही शख्स का
सादा सा पुलिन्दा था ऊँचे विचारोँ का ..
चर्चा की, याद किया बस थोड़ा सा
दर्जा देती हूँ मैँ उसे महामानव का ...

6 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अति सुन्दर श्रद्धाजंलि. बहुत उम्दा.

हमारी भी श्रद्धाजंलि.

36solutions ने कहा…

बहुत बहुत धन्‍यवाद जी, आपने महामना शास्‍त्री जी को याद किया । आज के दिन बाबू को तो सभी याद करते हैं किन्‍तु शास्‍त्री जी को भूल जाते हैं आपने न सिर्फ उन्‍हें याद रखा बल्कि हमें भी याद दिलाया ।

बापू एवं जय जवान जय किसान वाले कर्मयोगी शास्‍त्री को हमारा नमन ।

'आरंभ' छत्‍तीसगढ की धडकन

मीनाक्षी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद

ePandit ने कहा…

शास्त्री जी के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद!

PRATIBHA ने कहा…

"EAST OR WEST SHASTRIJI IS THE BEST."

PRATIBHA SHARMA ने कहा…

THANK YOU FOR GIVING ME HIS DETAILS