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सोमवार, 18 मई 2020

ताउम्र भटकना



आज भी माँ कहती है-
“बेटी, कल्पनालोक में विचरण करना छोड़ दे, 
क्रियाशील हो जा, ज़िन्दगी और भी खूबसूरत दिखेगी” 
और मैं हमेशा की तरह सच्चे मन से माँ से ही नहीं 
अपने आप से भी वादा करती हूँ
कि धरातल पर उतर कर 
ज़िन्दगी के नए मायने तलाश करूँगीं  
लेकिन ये तलाश कहाँ पूरी होती है. 
ताउम्र चलती है और हम भटकते हैं 
हर पल इक नई राह पर चल कर 
जाने क्या पाने को....  

शुक्रवार, 15 मई 2020

मस्त रहो 


महामारी के इस आलम में 
मन पंछी सोचे अकुला के 
छूटे रिश्तों  की याद सजा के
ख़ुद ही झुलूँ ज़ोर लगा के  
 आए अकेले , कोई ना अपना  
 साथ निभाते भरम पाल के ! 
 ख़ुद से रूठो ख़ुद को मना के  
 स्नेह का धागा ख़ुद को बाँध के  
 यादों का झोंका आकर कहता   
 मस्त रहो ख़ुद से बतिया के !! 
 मीनाक्षी धनवंतरि 

बुधवार, 13 मई 2020

पुस्तक से ब्लॉग तक - अनमोल वचन


एक पुस्तक प्रेमी पाठक का कहना था - दूरदर्शन तो आँख को टिकने नहीं देता, किताब की पंक्ति पर तो आँखें रुक सकती हैं , पीछे पलट कर देख सकती हैं , पढ़ते पढ़ते आँखें नम हो जाए तो किताब तो प्रतीक्षा कर सकती है,  दूरदर्शन यंत्र कहाँ करेगा...

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साहित्य देश को गति देता है, उसे जीवन्त बनाने की कोशिश करता है. लेकिन आज के पाठयक्रम में साहित्य
का स्थान नगण्य है, है भी तो कोई पढ़ने वाला नहीं, पढ़े पढाए क्यों..... साहित्य से तो जीवन चलता नहीं, साहित्य तो अब मनोरंजन भी नहीं है.
साहित्य का मनोरंजन योग्य पदार्थ श्रव्य - दृश्य संचार साधनों ने गहरी हंडिया में पका कर भपके से खींच लिया है. मेरा विचार है साहित्य के प्रति चाव अभी भी है, विरल हो ...यह अलग बात है.
किताब की दुकान पर जब लोगो को नई किताब खोजते हुए देखो तो लगता है कि साहित्य के प्रति चाव संस्कार अभी बना हुआ है...

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पुरुस्कार की कामना

जो कुछ तुम करो, उसके लिए किसी प्रकार की प्रशंसा अथवा पुरुस्कार की आशा मत रखो. ज्यों ही हम कोई
सत कार्य करते हैं, त्यों ही हम उसके लिए प्रशंसा की आशा करने लगते हैं . ज्यों ही हम किसी सत कार्य में
चन्दा देते हैं त्यों ही हम चाहने लगते हैं कि हमारा नाम अखबारों मे खूब चमक उठे... ऐसी कामनाओं का फल दुख के अतिरिक्त और क्या होगा.

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इसमें सन्देह नहीं कि 'करने' की अपेक्षा 'कहना' अत्यंत सरल होता है परंतु जो 'कहना' छोड़ कर 'करने' में जुट
जाते हैं ऐसे व्यक्ति इतिहास के उज्ज्वल हस्ताक्षर बन जाते हैं.
इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए संत कबीर ने कहा है ----

" कथनी मीठी खाँड सम , करनी विष की लोय
कथनी छड़ करनी करे, विष से अमृत होए !! "

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रविवार, 26 जनवरी 2020

गणतंत्र दिवस २०२०



देश विदेश में रहने वाले सभी भारतवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  देश के अंंदर बाहर तैनात जवानों और शहीदों के परिवाजनों को नत मस्तक प्रणाम 

बुधवार, 6 जून 2018

अनायास 

आभासी दुनिया में ब्लॉग जगत की अपनी अलग ही खूबसूरती है जो बार बार अपनी ओर खींचती है

अनायास..
पुरानी यादों का दरिया बहता  
 चट्टानों सी दूरी से जा टकराता  
 भिगोता उदास दिल के किनारों को  
 अंकुरित होते जाते रूखे-सूखे ख़्याल  
 अतीत की ख़ुश्क बगिया खिल उठी 
 और महक उठी छोटी-छोटी बातों से  
 यादों के रंग-बिरंगे फूलों की ख़ुशबू से  
 मेरी क़लम एक बार फिर से जी उठी  
 बेताब हुई लिखने को मेरा इतिहास  
 भुला चुकी थी जिसे मैं 
या भूलने का भ्रम पाला था 
शायद !!

शनिवार, 1 जुलाई 2017

अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस


ब्लॉग जगत के सभी मित्रों को प्रणाम ! यहाँ सक्रिय होने का प्रयास सफल हो यही कामना है. इस कोशिश में शामिल होते हुए कुछ यादों को आज के दिन बाँटने का चाह जागी. इसमें कोई दो राय नहीं कि आभासी दुनिया में फेसबुक ने ब्लॉग जगत को पीछे छोड़ दिया है. ब्लॉगर ऐसा है जिसे ब्लॉग जगत से मोह है तो फेसबुक का आकर्षण भी कम नहीं. मैं अपनी बात करती हूँ न मैं ब्लॉग जगत में सक्रिय हूँ न ही फेसबुक पर लेकिन साथ जुड़े रहने की चाह दोनों से ही विदा नहीं लेने देती. 

जनवरी २०१७ दिल्ली के पुस्तक मेले में जाने का पहला मौका और उस पर कई ब्लॉगर मित्रों से रूबरू मिलना बेहद खुबसूरत रहा. ब्लॉग में लिखने का टलता रहा हालांकि कुछ छोटे छोटे ड्राफ्ट्स हैं जिन्हें as it is पोस्ट किया जा सकता था लेकिन आलस शायद हाँ यही एक कारण है कि लिखने का काम रह जाता है. पढ़ कर उसका जवाब मन ही मन में सोच कर ही तसल्ली हो जाती. एक और कारण भी है. पढने में ही वक़्त ख़त्म हो जाता है और फिर असल जिंदगी के काम शुरू हो जाते वैसे भी सोचा कराती हूँ किसे फुर्सत है मेरे लिखे को पढने का. 
खैर यादगार पल थे पहली बार दिल्ली के पुस्तक मेले में जाना और अपने प्रिय ब्लॉगर मित्रों से रूबरू मिलना. फेसबुक पर भी कुछ यादें दर्ज हुई हैं लेकिन अपने ब्लॉग में सहेजने का मज़ा भी अलग है. आज ब्लॉग दिवस पर एक पोस्ट सबके नाम -- 

विश्व पुस्तक मेले में पहला दिन 






#हिंदी_ब्लॉगिंग







विश्व-पुस्तक मेला (पहला दिन)



विश्व-पुस्तक मेला जनवरी 2017


बरसों बाद जब भारत आने का मौका मिला तो दिल्ली के पुस्तक मेले में जाने का संयोग मिलेगा सोचा नहीं था, पुस्तक मेले में जाने का पूरा क्रेडिट दोस्त रचना सिंंह को जाता है. इसी दोस्त की बदौलत मैट्रो का सफ़र करना भी आ गया. सन 2007 से अब तक ब्लॉग जगत की यही एक वाहिद ब्लॉगर मित्र रहीं जिन्होंने वक्त वक्त पर हाल-चाल ही नहीं पूछा बल्कि लिखते रहने को भी कहा. 'नारी' ब्लॉग  




विश्व पुस्तक मेला  10th जनवरी 2017 पहला दिन रचना के साथ मेले में जाना यादगार बन गया. रचना और उनकी भांजी से दुबई में भी मुलाक़ात हो चुकी थी. ब्लॉग जगत की वाहिद ब्लॉगर मित्र जो सेतु बनी हमेशा मुझसे जुड़ी रहीं और आभासी दुनिया से जोड़े रखा. एक दिलचस्प बात हम दोनों की दोस्ती में यह रही कि हम दोनों के विचारों और स्वभाव में समानता होते हुए भी उन्हें व्यक्त करने या क्रियान्वित करने की सोच कुछ अलग थी. ऐसा होते हुए भी दोस्ती क़ायम रहे यही ख़ास है. इसी ख़ासियत के साथ हॉल १२ में दाख़िल हुए. सबसे पहले कुश के 'रुझान' को देखने की इच्छा थी और संयोग से वहीं पहुँच गए. कुश और रुझान से मिल कर बेहद ख़ुशी हुई.  रुझान में ही वंदना गुप्ता से मुलाक़ात हो गई जिसने फ़ौरन पहचान लिया.



कुश और रचना के साथ 'कृष्ण से संवाद' के विमोचन में भी शामिल हुए. वंदना की खिली खिली मुस्कान ने मन मोह लिया. वहीं पर अचानक आभा बोधिसत्व को देख कर ख़ुशी दुगुनी हो गई. सोचा था आभा से फिर मुलाक़ात होगी लेकिन मेले की भीड़ में खो जाना इसी को कहते हैं जो एक बार नज़र से ओझल हुआ तो फिर ना मिला !


रुझान में ही रंजना भाटिया , उनकी बेटी और उसकी नन्ही सी परी समायारा से मुलाक़ात हुई. रंजू से मिलना हमेशा परिवार के किसी अपने से मिलना जैसा एहसास दिलाता है.





 हिंद युग्म के शैलेश उम्र में जितने छोटे हैं अनुभव में उतने ही बड़े. हिंद युग्म के साथ आगे बढ़ते देख बेहद ख़ुशी हुई. वहीं पर हथकढ के किशोर चौधरी , रश्मि रविजा और कितनी परिचित अपरिचित मुस्कुराती हस्तियों से मिलना सुखद अनुभव रहा. हिंद युग्म की पूरी टीम को हार्दिक शुभ कामनाएँ !




सुखद आश्चर्य था कि विभा जी भी मेले में आने वाली थीं हालाँकि उसी रात उनकी मुंबई वपिसी की फ़्लाइट भी थी. दिल्ली के एक कोने से दूसरे कोने आना आसान नहीं था फिर भी पहुँचीं और हम मिले चाहे कुछ वक़्त के लिए. "समरथ can" की लेखिका जो थीं !!  वे वाणी प्रकाशन में दाख़िल हुईं और हमने घर लौटने की सोची.





वाणी प्रकाशन के बाहर की सजी हुई दीवार का एक अलग ही आकर्षण था. पहले दिन रचना के साथ भी वहाँ खड़े दीवार को निहारते सराहते रहे थे. वक़्त जैसे कपूर सा उड़ गया और रचना के जाने का वक़्त आ गया. माँ से वक़्त पर घर पहुँचने का वादा था इधर मेरी चिंता थी कि पहली बार अकेली कैसे घर पहुँचूँगी. उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपनी फ़िक्र में किसी को देख कर अच्छा लगता है. कुश की निगरानी में छोड़ कर अलविदा कह कर चली गईं और मैं रुझान की रौनक़ देखने में मगन हो गई. वहीं ग़ज़लों के गुरु सुबीर जी और ग़ज़ल सम्राट नीरज गोस्वामी से कुछ पल का मिलना हुआ.

बहुत कुछ लिखना अभी बाकि है जो नहीं लिखा गया वो यादों में ताज़ा है. 

 क्रमश: