
ब्लॉग जगत के सभी मित्रों को नमस्कार.... !
6 अक्टूबर 2008 को अपने देश की ज़मीन पर पैर रखते ही सोचा था कि हर दिन का अनुभव आभासी डायरी में उतारती जाऊँगी लेकिन वक्त हथेली से रेत की तरह फिसलता रहा....आज पूरे चार महीने हो गए घर छोड़े हुए...
घर कहते ही मन सोच में पड़ जाता है कि कौन से घर की बात की जाए... पति और बच्चों के साथ बीस साल जहाँ बिताए वह घर या फिर बच्चों की खातिर दूसरी जगह आकर रहना पड़ा , उस घर की बात की जाए.....या अपने देश के घर की जहाँ रोज़ नित नए अनुभव बहुत कुछ सिखा रहे हैं....
अरब खाड़ी में रहने वाले लगभग सभी परिवारों के साथ एक बात कॉमन है.....बच्चों की स्कूल की पढ़ाई खत्म होते ही एक अभिवावक खासकर माँ को अपने देश आना पड़ता है .... कुछ बच्चे विदेश चले जाते हैं...कुछ बच्चे अपने देश के अलग अलग प्रदेशों में कॉलेज में दाखिला पा लेते हैं... जन्म से लेकर बाहरवीं तक की पढ़ाई के बाद कुछ बच्चे तो अपने देश में फौरन ही रच बस जाते हैं और कुछ बच्चों को वक्त लगता है...उन्हें परिस्थितियों से मुकाबला करने की कला सिखाने के लिए माँ को ही आगे आना पड़ता है। कुछ सालों की मेहनत के बाद बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं और बस निकल जाते हैं अपनी मंज़िल की ओर....
वरुण की पढाई खत्म होते ही वीज़ा भी खत्म..... स्टडी वीज़ा खत्म होने के कारण वरुण को दुबई छोड़ना पड़ा... वैसे भी इलाज के लिए अपने देश से बढ़िया का कोई जगह नहीं है... देश विदेश से लोग इलाज के लिए भारत आते हैं सो हमने भी दिल्ली का रुख किया..... छोटे बेटे ने कॉलेज में दाखिला अभी लिया ही था , न चाहते हुए भी उसे अकेले ही दुबई छोड़ना पड़ा .... खैर अब हम दिल्ली में है .... श्री तजेन्द्र शर्मा जी की कहानी 'पासपोर्ट के रंग' उनकी ज़ुबानी सुनते सुनते अपने बारे में सोच रहे थे कि 'शेर वाला नीला पासपोर्ट' होते हुए भी हम अरब देश से बाहर 6 महीने से अधिक नहीं रह सकते... छह महीने के अंतराल में एक बार खाड़ी देश में जाना लाज़िमी है... सफ़र ज़ारी है कभी यहाँ , कभी वहाँ ... लेकिन सर्दी का मौसम सफ़र में थकान होने ही नहीं देता...
पहली बार अक्टूबर में भारत का आनन्द ही अलग लगा... मीठी मीठी धूप में तीखी तीखी मूली खाने का खूब मज़ा ले रहे हैं..इसके अलावा क्या क्या गिनाए.... राजधानी दिल्ली में अलग अलग राज्यों के अलग अलग स्वादिष्ट पकवान सोचते ही बस आपके सामने..... ठंड के मौसम में खाने पीने का अलौकिक आनन्द अभी ले ही रहे थे कि अचानक आईने पर नज़र गई तो चौंक गए...पहले से ही अरब देश का खाना पीना ही नहीं हवा भी खूब लग रही थी .... इधर अपने देश के छ्प्पन भोग से जी था कि भरने का नाम ही नही ले रहा था लेकिन अभी और जीना है यह सोचकर अपने ऊपर पाबन्दी लगाने की बात कुछ इस तरह सोची.........
रे मन अब तू धीरज धर ले !
चिकन मटन को छोड़ के अब तो
घास फूस पर जी ले अब तू ...... रे मन .... !
चिकनी चुपड़ी भूल जा अब तो
रूखी सूखी ही खा ले अब तू .... रे मन .... !
चना-भटूरा, आलू-छोले से कर तौबा अब तो
धुली मूँग पर सबर बस करले अब तू .... रे मन .... !
भरवाँ-पराठाँ, आलू-गोभी मिले न अब तो
फुलका फुलकी में ही मन को लगाले अब तू ... रे मन .... !
मखनी-दाल, नवरतन कोरमा को विदा कर अब तो
अंकुरित दाल, सलाद को अपना ले अब तू ... रे मन ... !
स्थूल काया कम होगी कैसे यही फिकर है अब तो
कृशकाया कैसे फिर आए, यही सोच बस अब तू... रे मन ...!
फिकर फिगर का धीरे धीरे बढ़ता जाता अब तो
खोई हुई फिगर का सपना फिर से देखले अब तू... रे मन ... !
(पतंजलि योगपीठ का सफ़र अगले सफ़े में .........)
Is it for woman leaving at certain place? If so I hope full coverage will be here. One suggestion if possible please do complete videography of the meeting. In my opininon it is history making event. - Amita
amita as of now we are getting together in delhi but every woman who blogs is invited
please get in touch with us
Thats great, I have followed the Kavi Sammelan available as "Video In Internet" the first one, made a history in Internet, a Brave Heart Kavitri Sunita Shanoo.
Now it is great and pleasing news from you about the Nari Blogger. It is again a History in making from Delhi.
बहुत दूर होने के कारण आपके इस आयोजन में भाग नहीं ले सकूँगी परन्तु मेरी शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती