गन्दे लोगों से छुड़वाओ... पापा मुझको तुम ले जाओ...
खत पढ़कर घर भर में छाया था मातम....
पापा की आँखों से आँसू रुकते न थे....
माँ की ममता माँ को जीते जी मार रही थी ....
मैं दीदी का खत पढ़कर जड़ सी बैठी थी...
मन में धधक रही थी आग, आँखें थी जलती...
क्यों मेरी दीदी इतनी लाचार हुई...
क्यों अपने बल पर लड़ न पाई...
माँ ने हम दोनों बहनों को प्यार दिया ..
पापा ने बेटा मान हमें दुलार दिया....
जूडो कराटे की क्लास में दीदी अव्वल आती...
रोती जब दीदी से हर वार में हार मैं पाती...
मेरी दीदी इतनी कमज़ोर हुई क्यों....
सोच सोच मेरी बुद्धि थक जाती...
छोटी बहन नहीं दीदी की दीदी बन बैठी...
दीदी को खत लिखने मैं बैठी..
"मेरी प्यारी दीदी.... पहले तो आँसू पोछों...
फिर छोटी की खातिर लम्बी साँस तो खीचों..
फिर सोचो...
क्या तुम मेरी दीदी हो...
जो कहती थी..
अत्याचार जो सहता , वह भी पापी कहलाता...
फिर तुम.....
अत्याचार सहोगी और मरोगी...
क्यों .... क्यों तुम कमज़ोर हुई...
क्यों... अत्याचारी को बल देती हो....
क्यों.... क्यों... क्यों...
क्यों का उत्तर नहीं तुम्हारे पास...
क्यों का उत्तर तो है मेरे पास....
तोड़ दो सारे बन्धन और अपने बल पर मुक्ति पाओ..
अपने मन की आवाज़ सुनो फिर राह चुनो नई तुम..
ऊँची शिक्षा जो पाई उसके अर्थ ढूँढ कर लाओ ..
अपने पैरों पर खड़े होकर दिखलाओ तुम ....
दीदी बनके खत लिखा है दीदी तुमको...
छोटी जानके क्षमा करो तुम मुझको....
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शनिवार, 5 जुलाई 2008
शुक्रवार, 4 जुलाई 2008
अपने हिस्से की छोटी सी खुशी....
आज फ़िर उसकी आंखें नम थी... आँसू के दो मोती दोनों आंखों के किनारे अटके पड़े थे..गिरते तो टूट कर बिखर जाते लेकिन मैं ऐसा कभी न होने दूँगी.... . मैं चाहती तो क्लास टीचर होने के नाते उसके घर फ़ोन कर सकती थी कि स्कूल के फन फेयर में शीमा की ज़रूरत है लेकिन ऐसा करने का मतलब था शीमा को अपने घर में अजनबी बन कर रहने देना... अपने हिस्से की छोटी छोटी खुशियों को चुनने का मौका न देना.... आजकल वह अपने कमरे में ही बैठी रहती है.. दसवीं क्लास की पढ़ाई के बहाने ... न अम्मी के काम हाथ बंटाने की चाहत , ना अब्बा को सलाम का होश... छोटे भाई बहनों से खेलना तो वह कब का भूल चुकी थी... शायद इस उम्र में हर बच्चे का आक्रोश बढ़ जाता है...किशोर उम्र...पल में गुस्सा पल में हँसी... पल में सारा जहान दुश्मन सा दिखता और पल में सारी दुनिया अपनी सी लगती........ भाई अकबर शाम की मग़रिब के बाद खेलने जाता है तो देर रात तक लौटता है.... उस पर ही क्यों इतनी पाबंदी.सोच सोच कर शीमा थक जाती लेकिन उसे कोई जवाब न मिलता..... आज भी वह अम्मी अब्बू से बात करने की हिम्मत नही जुटा पायी थी ...
'मैम्म ,,, नही होता मुझसे... मैं बात नही कर पाउंगी...आप ही फोन कर दीजेये न...प्लीज़ ....' इतना कहते ही शीमा की आंखों से दोनों मोती गालों से लुढ़कते हुए कहीं गुम हो गए .... मेरा कलेजा मुंह को आ गया... अपने आप को सयंत करते हुए बोली... 'देखो शीमा ,, अपने पैरेंट्स से तुम्हें ही बात करनी होगी,,,,अगर अभी तुम अपने मन की बात न कह सकीं तो फिर कभी न कह पाओगी... अम्मी के काम में हाथ बँटाओ...सभी कामों में हाथ बँटाती हूँ, शीमा ने फौरन कहा... .. अब्बू से कभी कभी बात करो... चाहे अपनी पढ़ाई की ही....यह सुनते ही उसका चेहरा सफेद पड़ गया... अब्बू से सलाम के बाद हम सब भाई बहन अपने अपने कमरों में चले जाते हैं...यह सुनकर भी हर रोज़ क्लास में आने के बाद मुझे शीमा से बात करके उसे साहस देना होता... हर सुबह मैं सोचती कि आज शीमा दौड़ी दौड़ी आएगी और खिलखिलाते हुए कहेगी.... ''मैम्म.... अम्मी अब्बू ने फन फेयर में आने की इजाज़त दे दी.... " ऐसा करना ज़रूरी था...घर से स्कूल ..स्कूल से घर...बस यही उसकी दिनचर्या थी... कभी कभार कुछ सहेलियाँ घर आ जातीं लेकिन हर किसी में कोई न कोई खामी बता कर अगली बार से उससे मिलने की मनाही हो जाती... उसका किसी सहेली के घर जाना तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी.... मैं चाहती थी कि किसी तरह से कभी कभी वह अपने मन की बात अपने माता-पिता से कर पाए... कहीं न कहीं एक उम्मीद कायम थी कि कभी कुछ पलों की आज़ादी....कभी कुछ पलों के लिए पँख फैलाने की चाहत पूरी हो सके.... मन को मज़बूत करके उसमें अपने लिए थोड़ी आज़ादी खुद हासिल करने की चाहत भरने की कोशिश मेरी थी....सोचती थी शायद एक दिन शीमा कह पाएगी कि अपने हिस्से की थोड़ी सी खुशी लेने मे वह सफल हुई......
फन फेयर का दिन भी आ गया...प्रवेश द्वार पर ड्यूटी होने पर भी मन शीमा की ओर था... आँखें उसी को खोज रही थीं... ..मेरी शिफ्ट खत्म होते ही गेम्स एरिया की ओर बढ़ते हुए क्लास की दूसरी लड़कियों से शीमा के बारे में पूछा लेकिन किसी को कुछ पता नही था....
अचानक पीछे से किसी ने आकर मुझे अपनी बाँहों में ले लिया.... मैम्ममममममम ....मैं आ गई.... अम्मी अब्बू ने आखिर भेज ही दिया..कल शाम की चाय बनाकर अम्मी को दी और उसी वक्त ही फन फेयर पर जाने की बात की... अब्बू से बात करने को कहा... पूरे हिजाब में जाने की कसम खाई.... मामू को जासूसी करने की दुहाई भी दी.... पता नहीं अम्मी को क्या हुआ कि अब्बू से हमारी वकालत कर दी..... पूरे हिजाब में आने की शर्त कबूल.... कोई फर्क नही पड़ता .... मुझे तो सब दिख रहा है न.... उसकी चहकती आवाज़ ने मुझे नई ज़िन्दगी दे दी हो जैसे .... मेरी आँखों से गिरते मोती मेरे ही गालों पर ढुलक रहे थे....ये खुशी के चमकते मोती थे...
'मैम्म ,,, नही होता मुझसे... मैं बात नही कर पाउंगी...आप ही फोन कर दीजेये न...प्लीज़ ....' इतना कहते ही शीमा की आंखों से दोनों मोती गालों से लुढ़कते हुए कहीं गुम हो गए .... मेरा कलेजा मुंह को आ गया... अपने आप को सयंत करते हुए बोली... 'देखो शीमा ,, अपने पैरेंट्स से तुम्हें ही बात करनी होगी,,,,अगर अभी तुम अपने मन की बात न कह सकीं तो फिर कभी न कह पाओगी... अम्मी के काम में हाथ बँटाओ...सभी कामों में हाथ बँटाती हूँ, शीमा ने फौरन कहा... .. अब्बू से कभी कभी बात करो... चाहे अपनी पढ़ाई की ही....यह सुनते ही उसका चेहरा सफेद पड़ गया... अब्बू से सलाम के बाद हम सब भाई बहन अपने अपने कमरों में चले जाते हैं...यह सुनकर भी हर रोज़ क्लास में आने के बाद मुझे शीमा से बात करके उसे साहस देना होता... हर सुबह मैं सोचती कि आज शीमा दौड़ी दौड़ी आएगी और खिलखिलाते हुए कहेगी.... ''मैम्म.... अम्मी अब्बू ने फन फेयर में आने की इजाज़त दे दी.... " ऐसा करना ज़रूरी था...घर से स्कूल ..स्कूल से घर...बस यही उसकी दिनचर्या थी... कभी कभार कुछ सहेलियाँ घर आ जातीं लेकिन हर किसी में कोई न कोई खामी बता कर अगली बार से उससे मिलने की मनाही हो जाती... उसका किसी सहेली के घर जाना तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी.... मैं चाहती थी कि किसी तरह से कभी कभी वह अपने मन की बात अपने माता-पिता से कर पाए... कहीं न कहीं एक उम्मीद कायम थी कि कभी कुछ पलों की आज़ादी....कभी कुछ पलों के लिए पँख फैलाने की चाहत पूरी हो सके.... मन को मज़बूत करके उसमें अपने लिए थोड़ी आज़ादी खुद हासिल करने की चाहत भरने की कोशिश मेरी थी....सोचती थी शायद एक दिन शीमा कह पाएगी कि अपने हिस्से की थोड़ी सी खुशी लेने मे वह सफल हुई......
फन फेयर का दिन भी आ गया...प्रवेश द्वार पर ड्यूटी होने पर भी मन शीमा की ओर था... आँखें उसी को खोज रही थीं... ..मेरी शिफ्ट खत्म होते ही गेम्स एरिया की ओर बढ़ते हुए क्लास की दूसरी लड़कियों से शीमा के बारे में पूछा लेकिन किसी को कुछ पता नही था....
अचानक पीछे से किसी ने आकर मुझे अपनी बाँहों में ले लिया.... मैम्ममममममम ....मैं आ गई.... अम्मी अब्बू ने आखिर भेज ही दिया..कल शाम की चाय बनाकर अम्मी को दी और उसी वक्त ही फन फेयर पर जाने की बात की... अब्बू से बात करने को कहा... पूरे हिजाब में जाने की कसम खाई.... मामू को जासूसी करने की दुहाई भी दी.... पता नहीं अम्मी को क्या हुआ कि अब्बू से हमारी वकालत कर दी..... पूरे हिजाब में आने की शर्त कबूल.... कोई फर्क नही पड़ता .... मुझे तो सब दिख रहा है न.... उसकी चहकती आवाज़ ने मुझे नई ज़िन्दगी दे दी हो जैसे .... मेरी आँखों से गिरते मोती मेरे ही गालों पर ढुलक रहे थे....ये खुशी के चमकते मोती थे...
रविवार, 29 जून 2008
सागर में डूबता सूरज ...

सागर में डूबते सूरज को
वसुधा ने अपनी उंगली से
आकाश के माथे पर सजा दिया...
साँवला सलोना रूप और निखार दिया
यह देख
दिशाएँ मन्द मन्द मुस्काने लगीं
सागर लहरें स्तब्ध सी
नभ का रूप निहारने लगीं...
गगन के गालों पर लज्जा की लाली छाई
सागर की आँखों में जब अपने रूप की छवि पाई ....
स्नेहिल सन्ध्या दूर खड़ी सकुचाई
सूरज की बिन्दिया पाने को थी अकुलाई ...
सोचा उसने
धीरे धीरे नई नवेली निशा दुल्हन सी आएगी
अपने आँचल में चाँद सितारे भर लाएगी..
फूलों का पलना प्यार से पवन झुलाएगी
संग में बैठी वसुधा को भी महका जाएगी..
बुधवार, 25 जून 2008
हमारे नन्हे मुन्ने दोस्त......
हम यहाँ दमाम में और हमारे नन्हे मुन्ने दोस्त दुबई में.. अर्बुदा का फोन आया कि बच्चे हर रोज़ स्कूल से आते जाते हमारे दरवाज़े की ओर नज़र भर देख कर सोचते हैं कि मीनू आंटी आज भी नही आयी . अपनी मम्मी से सवाल करते हैं तो एक ही जवाब मिलता है कि जल्दी आ जायेंगी..वरुण विद्युत अपने पापा से मिलने गए हैं... पापा से ...? विजय अंकल से ...? हाँ जी ...अर्बुदा के कहने पर थोडी देर हैरान परेशान से होते है .. फ़िर अचानक याद आती है...फ़िर दुबारा एक ही सवाल पूछने लगते हैं.... मीनू आंटी कब वापिस आएगी.... जल्दी आ जायेगी....कहते हुए अर्बुदा अपने घर की ओर बढ़ जाती है तो बच्चे भी पीछे चुपचाप चल पड़ते हैं..
दिन में एक दो बार उनके साथ खेल ना लो , अर्बुदा और हमें बात करने की इजाज़त नही मिलती... बच्चों को शायद प्यार लेना आता है...दिल और दिमाग के तार जल्दी ही प्यार करने वालों से मिल जाते हैं... इला खासकर कभी हमारी गोदी में तो कभी अर्बुदा की गोद में चढ़ जाती है... उसे देखते ही ईशान भी कहाँ पीछे रहता है... बातों का पिटारा उसके पास भी बहुत बड़ा है...(ऐसे ही कहा जाता है कि औरतें ज्यादा बोलती हैं... असल में पुरूष ही ज़्यादा बोलते हैं यह तो एक सर्वे में सिद्ध हो चुका है) ... खैर हम चाय लेकर बैठते हैं, अभी गपशप की सोचते हैं कि बच्चे हमारे पास और अर्बुदा दूर से मुस्कुरा कर बस देखती रह जाती है कि कब उसकी बारी आयेगी...हम दोनों बातचीत करने की कितनी ही बार कोशिश कर लें लेकिन जीत बच्चों की होती है...
खैर हम उनकी तस्वीरों से दिल बहलाते रहे और सोचते रहे काश देशो में कोई सीमा न होती और न कोई कागजी औपचारिकता ....नन्हे मुन्ने दोस्तों को कैसे समझायें कि अब हम बड़े हो गए हैं... बड़े होकर हम सब ऐसे ही बन जाते हैं...!!!!!!!
आप मिलेंगे हमारे दोस्तों से .......!! मिलेंगे तो फ़िर से बचपन में लौटने का मन करेगा .... !!!
दिन में एक दो बार उनके साथ खेल ना लो , अर्बुदा और हमें बात करने की इजाज़त नही मिलती... बच्चों को शायद प्यार लेना आता है...दिल और दिमाग के तार जल्दी ही प्यार करने वालों से मिल जाते हैं... इला खासकर कभी हमारी गोदी में तो कभी अर्बुदा की गोद में चढ़ जाती है... उसे देखते ही ईशान भी कहाँ पीछे रहता है... बातों का पिटारा उसके पास भी बहुत बड़ा है...(ऐसे ही कहा जाता है कि औरतें ज्यादा बोलती हैं... असल में पुरूष ही ज़्यादा बोलते हैं यह तो एक सर्वे में सिद्ध हो चुका है) ... खैर हम चाय लेकर बैठते हैं, अभी गपशप की सोचते हैं कि बच्चे हमारे पास और अर्बुदा दूर से मुस्कुरा कर बस देखती रह जाती है कि कब उसकी बारी आयेगी...हम दोनों बातचीत करने की कितनी ही बार कोशिश कर लें लेकिन जीत बच्चों की होती है...
खैर हम उनकी तस्वीरों से दिल बहलाते रहे और सोचते रहे काश देशो में कोई सीमा न होती और न कोई कागजी औपचारिकता ....नन्हे मुन्ने दोस्तों को कैसे समझायें कि अब हम बड़े हो गए हैं... बड़े होकर हम सब ऐसे ही बन जाते हैं...!!!!!!!
आप मिलेंगे हमारे दोस्तों से .......!! मिलेंगे तो फ़िर से बचपन में लौटने का मन करेगा .... !!!
शनिवार, 21 जून 2008
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा
घर की सफाई और सफर की तैयारी में लगे हैं..
अपनी पेकिंग करते करते अज़ीज़ नाजा की एक कव्वाली सुन रहें हैं...
जो हमें बहुत अच्छी लगती है ....
दरअसल इसके बोल तो बहुत पहले ही लिख कर रखे थे...
लेकिन कभी मौका ही नही मिला कि पोस्ट बनाई जाए...
आज काम के बाद के आराम के पलों में वक्त हाथ में आया तो पोस्ट पब्लिश कर दी....
सोचा हम ही क्यों आप भी लुत्फ़ लें....
हुए नामवर बेनिशान कैसे कैसे
ज़मीन खा गई नौजवान कैसे कैसे
आज जवानी पर इतराने वाले कल पछताएगा – 3
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा – 2
ढल जाएगा, ढल जाएगा - 2
तू यहाँ मुसाफ़िर है , यह सराय फानी है
चार रोज़ की मेहमाँ तेरी ज़िन्दगानी है
जन-ज़मीन ज़र ज़ेवर कुछ ना साथ जाएगा
खाली हाथ आए है खाली हाथ जाएगा
जान कर भी अंजान बन रहा है दीवाने
अपनी उम्रेफ़ानी पर तन रहा है दीवाने
इस कदर तू खोया है इस जहाँ के मेले
तू खुदा को भूला है फँस के इस झमेले में
आज तक यह देखा है पाने वाला खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे रोता है
मिटने वाली दुनिया का एतबार करता है
क्या समझ के तू आखिर इससे प्यार करता है
अपनी अपनी फिक्रों में जो भी है वो उलझा है
जो भी है वो उलझा है
ज़िन्दगी हक़ीकत में क्या है कौन समझा है
क्या है कौन समझा है
आज समझ ले
आज समझ ले कल यह मौका हाथ ना तेरे आएगा
ओ गफलत की नींद में सोने वाले धोखा खाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा – 2
ढल जाएगा – 2
मौत ने ज़माने को यह समाँ दिखा डाला
कैसे कैसे उस ग़म को ख़ाक़ में मिला डाला
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं
जंग ओ जू वो पोरस है और ना उसके हाथी हैं
कल जो तनके चलते थे अपनी शान ओ शौकत पर
शमा तक नहीं जलती आज उनकी क़ुरबत पर
अदना हो या आला हो सबको लौट जाना है
सबको लौट जाना है – 2
मुफलिसोंतवन्दर का कब्र ही ठिकाना है
कब्र ही ठिकाना है – 2
जैसी करनी
जैसी करनी वैसी भरनी आज किया कल पाएगा
सिर को उठाकर चलने वाले एक दिन ठोकर खाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा – 3
ढल जाएगा, ढल जाएगा - 2
मौत सबको आनी है कौन इससे छूटा है
तू फ़ना नही होगा यह ख्याल झूठा है
साँस टूटते ही सब रिश्ते टूट जाएँगे
बाप माँ बहन बीवी बच्चे छूट जाएँगे
तेरे जितने है भाई वक्त का चलन देंगे
छीन कर तेरी दौलत दो ही गज़ कफ़न देगे
जिनको अपना कहता है कब ये तेरे साथी है
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बाराती है
लाके कब्र में तुझको उल्टा पाके डालेंगे
अपने हाथों से तेरे मुहँ पे खाक़ डालेंगे
तेरी सारी उल्फत को खाक में मिला देगे
तेरे चाहने वाले कल तुझे भुला देंगे
इसलिए यह कहता हूँ खूब सोच ले दिल में
क्यों फँसाए बैठा है जान अपनी मुश्किल में
कर गुनाहो से तौबा आगे बस सँभल जाए
आगे बस सँभल जाए – 2
दम का क्या भरोसा है जान कब निकल जाए
जान कब निकल जाए
मुट्ठी बाँध के आनेवाले
मुट्ठी बाँध के आनेवाले हाथ पसारे जाएगा
धन दौलत जागीर से तूने क्या पाया क्या पाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा – 2
ढल जाएगा, ढल जाएगा – 8
मंगलवार, 17 जून 2008
बंद कमरे की एक छोटी सी खिड़की ...!
कई दिनों से दमाम में हूँ , दोनों बेटे और हम घर में रहते हैं...नया शहर होने के कारण कोई मित्र भी नही... हाँ पति के सहकर्मी बार बार कहते हैं कि अपनी पत्नी को कभी भी उनके यहाँ भेज दें… साहब फिलस्तीनी हैं और पाँच बेटियों के पिता हैं सो इशारे में ही कह देते हैं बेटे नही जा सकते. बस यही सोच कर हमारा जाना टल रहा है... अब घर में वक्त गुजारने के लिए किताबें और इंटरनेट या फ़िर अतीत की दुनिया में यादों के साथ.... कल पुरानी तस्वीरे निकाल ली और बस दिन कैसे गुज़रा पता ही नही चला....
२० साल एक ऐसे समाज में गुज़रे जिसकी मानसिकता ने नारीवाद और नारी सशक्तिकरण की सोच को बेमानी माना... यह अनुभव हुआ कल रात नारी के लिए एक पोस्ट लिखते समय ... यहाँ सिर्फ़ ५ % औरतें ही काम के लिए घर से बाहर जाती हैं लेकिन घर से बाहर निकलने के लिए कोई न कोई साथ हो , इसका ध्यान रखा जाता है... १०-१२ साल की लड़की बुरका पहनना शुरू कर देती है... लेकिन बुरका पहन कर भी कुछ जगह ऐसी हैं जहाँ औरतों का जाना मना है जैसे कि वीडियो शॉप, नाई की दुकान , इसी तरह जहाँ पुरूष अधिकतर देखें जायें वहां मतुआ पुलिस आकर देखती है... रेस्तरां में फेमिली सेक्शन बने हैं , जिनके अन्दर पति और बच्चो के साथ ही बैठ सकती हैं ...
वोट देने का अधिकार तो पुरुषो को ही नही है तो औरतों की बात ही नही है फ़िर भी उनकी उम्मीद कायम है कि राजनीति में उन्हें भी शामिल किया जाएगा. किंग फैसल ने जब लड़कियों को शिक्षा देने का ऐलान किया तो इसके खिलाफ धरना देने वालों को हटाने के लिए किंग को सेना भेजनी पडी थी... आज शिक्षा पाने का अधिकार मिलते ही साउदी औरत पुरूष से आगे निकल गयी... किसी भी देश के शिक्षा संस्थान के आंकडे देखें.. लडकियां शिक्षा के क्षेत्र में लड़कों से हमेशा आगे रही हैं .... यहाँ भी ऐसा ही है... सामाजिक जीवन में हलचल इसी कारण से शुरू हो जाती है ... पुरूष इस हार को सहन नही कर पाता, कही कमज़ोर पड़ जाता है तो कहीं तिलमिला कर ग़लत रस्ते पर भटक जाता है. आजकल साउदी में तलाक का रेट इतना बढ़ गया है कि सरकार और समाज दोनों ही चिंतित हैं...
अभिव्यक्ति की आजादी जो किसी के लिए भी सबसे अधिक महत्त्व रखती है , उसे न पाकर जो दर्द होता होगा , उसका बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है.... लेकिन इन सब के बाद भी साउदी औरत पश्चिम की दखलंदाजी पसंद नही करती , अपने बलबूते पर ही अपना अधिकार पाना चाहती है... साउदी लेखिका जैनब हनीफी जिनती बेबाकी से लिखना पसंद करती थी उतना ही किंगडम इस बात की इजाज़त नही देता था...अपने कलम की आग से विचारों में गर्मी पैदा करने के लिए लिखना ज़रूरी समझा इसलिए ब्रिटेन जाकर रहने लगी... यूं ट्यूब पर इस इंटरव्यू को दिखने का एक मुख्य कारण है जैनब का निडर होकर बात करना... वही कह सकती हैं कि औरतों के पक्ष में कही हदीस मर्दों को सही नही लगती या उनका कोई वजूद ही नही है
२० साल एक ऐसे समाज में गुज़रे जिसकी मानसिकता ने नारीवाद और नारी सशक्तिकरण की सोच को बेमानी माना... यह अनुभव हुआ कल रात नारी के लिए एक पोस्ट लिखते समय ... यहाँ सिर्फ़ ५ % औरतें ही काम के लिए घर से बाहर जाती हैं लेकिन घर से बाहर निकलने के लिए कोई न कोई साथ हो , इसका ध्यान रखा जाता है... १०-१२ साल की लड़की बुरका पहनना शुरू कर देती है... लेकिन बुरका पहन कर भी कुछ जगह ऐसी हैं जहाँ औरतों का जाना मना है जैसे कि वीडियो शॉप, नाई की दुकान , इसी तरह जहाँ पुरूष अधिकतर देखें जायें वहां मतुआ पुलिस आकर देखती है... रेस्तरां में फेमिली सेक्शन बने हैं , जिनके अन्दर पति और बच्चो के साथ ही बैठ सकती हैं ...
वोट देने का अधिकार तो पुरुषो को ही नही है तो औरतों की बात ही नही है फ़िर भी उनकी उम्मीद कायम है कि राजनीति में उन्हें भी शामिल किया जाएगा. किंग फैसल ने जब लड़कियों को शिक्षा देने का ऐलान किया तो इसके खिलाफ धरना देने वालों को हटाने के लिए किंग को सेना भेजनी पडी थी... आज शिक्षा पाने का अधिकार मिलते ही साउदी औरत पुरूष से आगे निकल गयी... किसी भी देश के शिक्षा संस्थान के आंकडे देखें.. लडकियां शिक्षा के क्षेत्र में लड़कों से हमेशा आगे रही हैं .... यहाँ भी ऐसा ही है... सामाजिक जीवन में हलचल इसी कारण से शुरू हो जाती है ... पुरूष इस हार को सहन नही कर पाता, कही कमज़ोर पड़ जाता है तो कहीं तिलमिला कर ग़लत रस्ते पर भटक जाता है. आजकल साउदी में तलाक का रेट इतना बढ़ गया है कि सरकार और समाज दोनों ही चिंतित हैं...
अभिव्यक्ति की आजादी जो किसी के लिए भी सबसे अधिक महत्त्व रखती है , उसे न पाकर जो दर्द होता होगा , उसका बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है.... लेकिन इन सब के बाद भी साउदी औरत पश्चिम की दखलंदाजी पसंद नही करती , अपने बलबूते पर ही अपना अधिकार पाना चाहती है... साउदी लेखिका जैनब हनीफी जिनती बेबाकी से लिखना पसंद करती थी उतना ही किंगडम इस बात की इजाज़त नही देता था...अपने कलम की आग से विचारों में गर्मी पैदा करने के लिए लिखना ज़रूरी समझा इसलिए ब्रिटेन जाकर रहने लगी... यूं ट्यूब पर इस इंटरव्यू को दिखने का एक मुख्य कारण है जैनब का निडर होकर बात करना... वही कह सकती हैं कि औरतों के पक्ष में कही हदीस मर्दों को सही नही लगती या उनका कोई वजूद ही नही है
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