सागर में डूबते सूरज को वसुधा ने अपनी उंगली से आकाश के माथे पर सजा दिया... साँवला सलोना रूप और निखार दिया
यह देख दिशाएँ मन्द मन्द मुस्काने लगीं सागर लहरें स्तब्ध सी नभ का रूप निहारने लगीं... गगन के गालों पर लज्जा की लाली छाई सागर की आँखों में जब अपने रूप की छवि पाई ....
स्नेहिल सन्ध्या दूर खड़ी सकुचाई सूरज की बिन्दिया पाने को थी अकुलाई ... सोचा उसने धीरे धीरे नई नवेली निशा दुल्हन सी आएगी अपने आँचल में चाँद सितारे भर लाएगी.. फूलों का पलना प्यार से पवन झुलाएगी संग में बैठी वसुधा को भी महका जाएगी..
हम यहाँ दमाम में और हमारे नन्हे मुन्ने दोस्त दुबई में.. अर्बुदा का फोन आया कि बच्चे हर रोज़ स्कूल से आते जाते हमारे दरवाज़े की ओर नज़र भर देख कर सोचते हैं कि मीनू आंटी आज भी नही आयी . अपनी मम्मी से सवाल करते हैं तो एक ही जवाब मिलता है कि जल्दी आ जायेंगी..वरुण विद्युत अपने पापा से मिलने गए हैं... पापा से ...? विजय अंकल से ...? हाँ जी ...अर्बुदा के कहने पर थोडी देर हैरान परेशान से होते है .. फ़िर अचानक याद आती है...फ़िर दुबारा एक ही सवाल पूछने लगते हैं.... मीनू आंटी कब वापिस आएगी.... जल्दी आ जायेगी....कहते हुए अर्बुदा अपने घर की ओर बढ़ जाती है तो बच्चे भी पीछे चुपचाप चल पड़ते हैं.. दिन में एक दो बार उनके साथ खेल ना लो , अर्बुदा और हमें बात करने की इजाज़त नही मिलती... बच्चों को शायद प्यार लेना आता है...दिल और दिमाग के तार जल्दी ही प्यार करने वालों से मिल जाते हैं... इला खासकर कभी हमारी गोदी में तो कभी अर्बुदा की गोद में चढ़ जाती है... उसे देखते ही ईशान भी कहाँ पीछे रहता है... बातों का पिटारा उसके पास भी बहुत बड़ा है...(ऐसे ही कहा जाता है कि औरतें ज्यादा बोलती हैं... असल में पुरूष ही ज़्यादा बोलते हैं यह तो एक सर्वे में सिद्ध हो चुका है) ... खैर हम चाय लेकर बैठते हैं, अभी गपशप की सोचते हैं कि बच्चे हमारे पास औरअर्बुदा दूर से मुस्कुरा कर बस देखती रह जाती है कि कब उसकी बारी आयेगी...हम दोनों बातचीत करने की कितनी ही बार कोशिश कर लें लेकिन जीत बच्चों की होती है... खैर हम उनकी तस्वीरों से दिल बहलाते रहे और सोचते रहे काश देशो में कोई सीमा न होती और न कोई कागजी औपचारिकता ....नन्हे मुन्ने दोस्तों को कैसे समझायें कि अब हम बड़े हो गए हैं... बड़े होकर हम सब ऐसे ही बन जाते हैं...!!!!!!!
आप मिलेंगे हमारे दोस्तों से .......!! मिलेंगे तो फ़िर से बचपन में लौटने का मन करेगा .... !!!
घर की सफाई और सफर की तैयारी में लगे हैं.. अपनी पेकिंग करते करते अज़ीज़ नाजा की एक कव्वाली सुन रहें हैं... जो हमें बहुत अच्छी लगती है .... दरअसल इसके बोल तो बहुत पहले ही लिख कर रखे थे... लेकिन कभी मौका ही नही मिला कि पोस्ट बनाई जाए... आज काम के बाद के आराम के पलों में वक्त हाथ में आया तो पोस्ट पब्लिश कर दी.... सोचा हम ही क्यों आप भी लुत्फ़ लें....
कई दिनों से दमाम में हूँ , दोनों बेटे और हम घर में रहते हैं...नया शहर होने के कारण कोई मित्र भी नही... हाँ पति के सहकर्मी बार बार कहते हैं कि अपनी पत्नी को कभी भी उनके यहाँ भेज दें… साहब फिलस्तीनी हैं और पाँच बेटियों के पिता हैं सो इशारे में ही कह देते हैं बेटे नही जा सकते. बस यही सोच कर हमारा जाना टल रहा है... अब घर में वक्त गुजारने के लिए किताबें और इंटरनेट या फ़िर अतीत की दुनिया में यादों के साथ.... कल पुरानी तस्वीरे निकाल ली और बस दिन कैसे गुज़रा पता ही नही चला.... २० साल एक ऐसे समाज में गुज़रे जिसकी मानसिकता ने नारीवाद और नारी सशक्तिकरण की सोच को बेमानी माना... यह अनुभव हुआ कल रात नारी के लिए एक पोस्ट लिखते समय ... यहाँ सिर्फ़ ५ % औरतें ही काम के लिए घर से बाहर जाती हैं लेकिन घर से बाहर निकलने के लिए कोई न कोई साथ हो , इसका ध्यान रखा जाता है... १०-१२ साल की लड़की बुरका पहनना शुरू कर देती है... लेकिन बुरका पहन कर भी कुछ जगह ऐसी हैं जहाँ औरतों का जाना मना है जैसे कि वीडियो शॉप, नाई की दुकान , इसी तरह जहाँ पुरूष अधिकतर देखें जायें वहां मतुआ पुलिस आकर देखती है... रेस्तरां में फेमिली सेक्शन बने हैं , जिनके अन्दर पति और बच्चो के साथ ही बैठ सकती हैं ...
वोट देने का अधिकार तो पुरुषो को ही नही है तो औरतों की बात ही नही है फ़िर भी उनकी उम्मीद कायम है कि राजनीति में उन्हें भी शामिल किया जाएगा. किंग फैसल ने जब लड़कियों को शिक्षा देने का ऐलान किया तो इसके खिलाफ धरना देने वालों को हटाने के लिए किंग को सेना भेजनी पडी थी... आज शिक्षा पाने का अधिकार मिलते ही साउदी औरत पुरूष से आगे निकल गयी... किसी भी देश के शिक्षा संस्थान के आंकडे देखें.. लडकियां शिक्षा के क्षेत्र में लड़कों से हमेशा आगे रही हैं .... यहाँ भी ऐसा ही है... सामाजिक जीवन में हलचल इसी कारण से शुरू हो जाती है ... पुरूष इस हार को सहन नही कर पाता, कही कमज़ोर पड़ जाता है तो कहीं तिलमिला कर ग़लत रस्ते पर भटक जाता है. आजकल साउदी में तलाक का रेट इतना बढ़ गया है कि सरकार और समाज दोनों ही चिंतित हैं...
अभिव्यक्ति की आजादी जो किसी के लिए भी सबसे अधिक महत्त्व रखती है , उसे न पाकर जो दर्द होता होगा , उसका बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है.... लेकिन इन सब के बाद भी साउदी औरत पश्चिम की दखलंदाजी पसंद नही करती , अपने बलबूते पर ही अपना अधिकार पाना चाहती है... साउदी लेखिका जैनब हनीफी जिनती बेबाकी से लिखना पसंद करती थी उतना ही किंगडम इस बात की इजाज़त नही देता था...अपने कलम की आग से विचारों में गर्मी पैदा करने के लिए लिखना ज़रूरी समझा इसलिए ब्रिटेन जाकर रहने लगी... यूं ट्यूब पर इस इंटरव्यू को दिखने का एक मुख्य कारण है जैनब का निडर होकर बात करना... वही कह सकती हैं कि औरतों के पक्ष में कही हदीस मर्दों को सही नही लगती या उनका कोई वजूद ही नही है
साउदीअरबमेंअबतककेगुज़रेसालोंकाहिसाबकिताबकरनेलगूँतोलगेगाकिखोयाकमहीहै...पायाज्यादाहै... बहुतकुछसीखाहै... जोशायदकिसीऔरजगहसीखनामुमकिननहोताक्योंकि प्रजातन्त्र से राजतन्त्र में आकर रहने का अलग ही अनुभव हुआ... २१वीसदीमेंभीसाउदीअरबकीसंस्कृति, वहाँकारहनसहनबदलानहीहै शायद बदलने में अभी और वक्त लगेगा ... . ..हाँसुरसाकीतरहमुंहखोलेमहंगाईबढ़तीजारहीहै... फ़िरभीकुछज़रूरीचीजोंकीकीमतनहीबदलीजैसेकिएकरियालकीपेप्सीऔरएकहीरियालकाखुबुज़(रोटी) ..
जिन्दगीमेंअच्छेअनुभवभीहोतेहैं... जिनकीकीमतबुरेअनुभवोंकेबादऔरबढजातीहै.... घरपरिवार , कामऔरदोस्त ... बसयहीदुनिया ...हरवीकएंडपरमिलना ... हरमहीनेदूररेगिस्तानमेंपिकनिकपरजाना.... वीरवारकीसुबहसहेलियोंकेसाथमार्केटजाना... पतिबेबीसिटींगकरकेखुश.... एकबारबसकहनेकीदेरहैकीजहाँहमजानाचाहेंफौरनख़ुदआकरयाड्राईवरभेजकरपहुँचादियाजाता... पैदलचलनेकाकोईरिवाज़हीनहीवहाँपर.... ख़ासकरऔरतोंकेलिए... लेकिनकुछअस्पतालोंकेबाहरचारोंओरसैरकासुंदरफुटपाथबनाहै... जिसपरकभीहमभीसैरकरतेथे.. अब तो बस सपनों में ही रियाद जाते हैं... दम्माम के घर की चारदीवारी में कैसे गुज़रती है अगली पोस्ट में....
दमाम से कुछ दूरी पर देहरान में एक नया मॉल खुला. शाम को जब तक पहुँचते सला का वक्त हो गया था... सो हमने विंडो शौपिंग का ही सबसे पहले आनंद लिया... उसी दौरान अपने मोबाइल से कुछ तस्वीरें लेने का मन हो गया... बस किसी तरह इच्छा पूरी कर ही ली ..
हम जहाँ हैं वहाँ शौहर या शौफर ही बाहर ले जा सकते है.... दोनो बेटों को बारबर शॉप ले जाने की बात हुई तो विद्युत ने हमें लैप टॉप के सामने बिठा दिया और आँखें बंद करने को कहा.... कानों में हेड फोन लगा कर आँखें बंद करने को कहा ...... बस हम पहुँच गए बारबर शॉप ....आप भी घर बैठे बैठे ही नाई की दुकान जा सकते हैं......
अरे रुकिए.... क्लिक न करिये.. ..
नाई की दुकान में अन्दर जाने से पहले आपके कानों में हेड फोन होने चाहिए...
पहले हेड फोन लगाईये ..... आवाज़ को सेट कीजिये.. कर लिया ??