दमाम से कुछ दूरी पर देहरान में एक नया मॉल खुला. शाम को जब तक पहुँचते सला का वक्त हो गया था... सो हमने विंडो शौपिंग का ही सबसे पहले आनंद लिया... उसी दौरान अपने मोबाइल से कुछ तस्वीरें लेने का मन हो गया... बस किसी तरह इच्छा पूरी कर ही ली ..
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मंगलवार, 10 जून 2008
रविवार, 8 जून 2008
आभासी दुनिया में नाई की दुकान खुली है ....
हम जहाँ हैं वहाँ शौहर या शौफर ही बाहर ले जा सकते है.... दोनो बेटों को बारबर शॉप ले जाने की बात हुई तो विद्युत ने हमें लैप टॉप के सामने बिठा दिया और आँखें बंद करने को कहा.... कानों में हेड फोन लगा कर आँखें बंद करने को कहा ...... बस हम पहुँच गए बारबर शॉप ....आप भी घर बैठे बैठे ही नाई की दुकान जा सकते हैं......
अरे रुकिए.... क्लिक न करिये.. ..
नाई की दुकान में अन्दर जाने से पहले आपके कानों में हेड फोन होने चाहिए...
पहले हेड फोन लगाईये ..... आवाज़ को सेट कीजिये.. कर लिया ??
आँखें बंद कीजिये.... अब लुत्फ़ लीजिये.....
रविवार के दिन घर बैठे-बैठे मुफ्त में ही ......
कैसा लगा !!!!!! ज़रूर बताइए !!!!
अरे रुकिए.... क्लिक न करिये.. ..
नाई की दुकान में अन्दर जाने से पहले आपके कानों में हेड फोन होने चाहिए...
पहले हेड फोन लगाईये ..... आवाज़ को सेट कीजिये.. कर लिया ??
आँखें बंद कीजिये.... अब लुत्फ़ लीजिये.....
रविवार के दिन घर बैठे-बैठे मुफ्त में ही ......
कैसा लगा !!!!!! ज़रूर बताइए !!!!
बुधवार, 4 जून 2008
बेतरतीब सोच के कई चेहरे ...

३० मई की रात को सब काम निपटा कर आभासी दुनिया की सैर की सोच कर ब्लॉगजगत में दाखिल हुए तो जीमेल के अकाउंट से रीडर खोला.... सामने ज्ञान जी की नई पोस्ट ' भोर का सपना' खुली ,,,जिसे पढ़ते हुए ' हैंग ग्लाइड ' को नज़र भर देखने के लिए विकी पीडिया खोलना पडा... मन ही मन कामना की कि ज्ञान जी का भोर का सपना उनकी तरक्की करता हुआ सच हो जाए .... पोस्ट पढ़ते गए आगे बढ़ते गए..... हरे रंग का दूसरा बॉक्स मन को ललचा रहा था... जिसमे पोस्ट का शीर्षक 'सुखी एक बन्दर परिवार ,दुखिया सब संसार ! ' हमे पढने को बाध्य कर रहा था क्योंकि बंदरों से हमारा पुराना बैर भी है और उनके बारे में बहुत कुछ जानने की इच्छा भी.(इस .विषय .पर भी कभी लिखेंगे ) .. अब हम अरविंद जी की उस रोचक पोस्ट को पढने उनके ब्लॉग पहुँच गए... उसी हरे बॉक्स में ज्ञान जी की अपनी एक पोस्ट का नाम देखा तो कैसे छोड़ देते.... उनकी पोस्ट "रोज दस से ज्यादा ब्लॉग-पोस्ट पढ़ना हानिकारक है " देख कर तो हमारा सर चकराने लगा...होश उड़ गए .... ज्यों ज्यों पढ़ रहे थे ...दिल बैठता जा रहा था...... बहुत सी बातें शत प्रति शत हमारे ऊपर सही बैठ रही थी.... "स्टेटेस्टिकली अगर आप 10 ब्लॉग पोस्ट पढ़ते हैं तो उसमें से 6.23 पोस्ट सिनिकल और आत्मकेन्द्रित होंगी. रेण्डम सैम्पल सर्वे के अनुसार 62.3% पोस्ट जो फीरोमोन स्रवित करती हैं, उनसे मानसिक कैमिकल बैलेंस में सामान्य थ्रेशहोल्ड से ज्यादा हानिकारक परिवर्तन होते हैं. इन परिवर्तनो से व्यक्ति में अपने प्रति शंका, चिड़चिड़ापन, लोगों-समाज-देश-व्यवस्था-विश्व के प्रति “सब निस्सार है” जैसे भाव बढ़ने लगते हैं. अगर यह कार्य (यानि अन-मोडरेटेड ब्लॉग पठन) सतत जारी रहता है तो सुधार की सीमा के परे तक स्वास्थ बिगड़ सकता है." "सब निस्सार है.".का भाव तो था ही लेकिन "अपने प्रति शंका" का भाव तो और भी गहरा था कि हम अच्छे ब्लॉगर नही हैं..... और तो और अपने लेखन पर भी शक होने लगा कि .....शायद हमारा लेखन भी किसी काम का नही ..... व्यस्त होने के बाद भी अनगिनत ब्लॉग पढ़ डालते, चाहे प्रतिक्रिया देने में आलस कर जाते या समझते कि शायद वह भी सही ना कर पायें सो टिप्पणी देना छोड़ दिया..... ज्ञान जी की इस पोस्ट को पढ़ने के बाद तो हम 'आर सी मिश्रा जी ' की पोस्ट बस देख भर आए....डॉलर पाने का मोह भी भूल गए.....
ज्ञान जी की एक ही पोस्ट में ५ ब्लोग्ज़ तो हम पढ़ ही चुके हैं .... "साउथ एशियन देशों में जहां अब ब्लॉग लिखने-पढ़ने का चलन बढ़ रहा है, बड़ी तेजी से म्यूटेट होते पाये गये हैं." यह पढ़ कर तो और चकरा गए कि क्या से क्या हो रहें हैं...इस चक्कर में न चाहते हुए भी और भी कई लिंक्स खोज डाले ...उन्हें ज्ञान जी के लिए यही लिंक कर रहें हैं,, शायद कुछ राह निकले कि आभासी दुनिया में म्यूटेट होते हम कहाँ पहुंचेगे... एक और लिंक जो नज़र में आया कि दूसरो के ब्लोग्ज़ पर टिप्पणी करने पर भी अपना नुक्सान है ....
जितना लिखा है उससे कहीं ज़्यादा सोच रहे थे....अब दिमाग थक सा गया है...बस कह दिया उसने ... गंभीर विषयों पर चिंतन तो होता ही रहता है ... लेकिन चिंता को चिता समान कहा गया है इसलिए चिंता को छोड़ कर कुछ देर के लिए आइये हम भी बच्चे बन जायें.. ...एक रोचक लिंक मिला है.....आप भी खोलें और चिंतामुक्त होकर खेलें......
सोमवार, 2 जून 2008
कई दिनों के बाद .....
कई दिनों तक कई जिम्मेंदारियां निभाते हुए चाह कर भी ब्लॉग पर लिखने का वक़्त ही नही मिला. सोचा था पतिदेव के घर जाकर मौका पाते ही जितने भी कागज़ रंगे हैं सब पोस्ट दर पोस्ट लिख दूँगी. जल्दी में अपने हिन्दी फोंट्स ले जाना भूल गयी. खैर ढूँढने पर कई लिंक्स मिले लेकिन सउदी सर्वर ऐसा की सब बेकार, इधर हम ठान चुके थे कि किसी भी तरह एक पोस्ट तो ज़रूर लिखेगे सो अब हिन्दी मीडिया की इस साइट में आकर ऐसा सम्भव हो पाया.
बस दुआ कर रही हूँ कि सर्वर डाउन न हो.
अभी अभी पतिदेव ऑफिस के लिए निकलें हैं और दोनों बच्चें सो रहें हैं. वरुण का लैपटॉप चुपचाप उसके कमरे से ले आए हैं और जो भी मन में आ रहा है लिख रहें हैं.
कई दिनों से चक्की रोई चूल्हा रहा उदास कि लय पर कुछ लिखने का मन कर रहा है ----
कई दिनों से चिट्टा रोया , चित्तचोर रहा उदास
कई दिनों से मैं भी रोई , हालत रही ख़राब ....
कई दिनों से काम कई थे, सौ सौ नही हज़ार
कई दिनों से जान अकेली, वक़्त बड़ा अज़ाब...
कई दिनों से काम किए, संवारा बच्चे - घरबार
कई दिनों की मेहनत रंग लाई, आधी नैया पार
कई दिनों की गिनती पूरी, बेटे दोनों पास ....
कई दिनों की सोई इच्छा पूरी हो गयी आज
बड़ा बेटा इंजिनियर बन गया ..... छोटे बेटे का स्कूल खत्म हुआ .... लेकिन जीवन रुकता कहाँ है.... नदिया की धारा जैसे आगे ही आगे बहता जाता है. आजकल सउदी अरब में हैं. छोटा बेटा १८ साल का होगा सो उसका परिचय कार्ड बनना है जिसे अरबी भाषा में इकामा कहते हैं. पूरे परिवार को ११ महीने बाहर रहने की इजाज़त मिलेगी.
दस दिन बाद दुबई लौटेंगे, दुबई के ही एक कॉलेज में छोटे बेटे का एंट्रेंस टेस्ट है. उसकी जिंदगी का एक नया अध्याय शुरू होगा. बड़े बेटे को दूसरी सफलता के लिए तैयार करना है.. लेकिन उससे पहले एक कहावत को चरितार्थ करना है.... सेहत हज़ार नियामत .....
अभी इतना ही ....हिन्दी लिखने का रास्ता मिल गया है ....
दम्माम की चारदीवारी में खाने पीने के बाद लिखना पढ़ना और संगीत सुनने का ही आनंद ले रहें हैं . बाहर जाने का मौका शाम को ही मिलता है सो.........
कई दिनों की चुप्पी टूटेगी, बातें होंगी हज़ार
कई दिनों की सिमटी यादें निकलेंगी हर बार ....
बस दुआ कर रही हूँ कि सर्वर डाउन न हो.
अभी अभी पतिदेव ऑफिस के लिए निकलें हैं और दोनों बच्चें सो रहें हैं. वरुण का लैपटॉप चुपचाप उसके कमरे से ले आए हैं और जो भी मन में आ रहा है लिख रहें हैं.
कई दिनों से चक्की रोई चूल्हा रहा उदास कि लय पर कुछ लिखने का मन कर रहा है ----
कई दिनों से चिट्टा रोया , चित्तचोर रहा उदास
कई दिनों से मैं भी रोई , हालत रही ख़राब ....
कई दिनों से काम कई थे, सौ सौ नही हज़ार
कई दिनों से जान अकेली, वक़्त बड़ा अज़ाब...
कई दिनों से काम किए, संवारा बच्चे - घरबार
कई दिनों की मेहनत रंग लाई, आधी नैया पार
कई दिनों की गिनती पूरी, बेटे दोनों पास ....
कई दिनों की सोई इच्छा पूरी हो गयी आज
बड़ा बेटा इंजिनियर बन गया ..... छोटे बेटे का स्कूल खत्म हुआ .... लेकिन जीवन रुकता कहाँ है.... नदिया की धारा जैसे आगे ही आगे बहता जाता है. आजकल सउदी अरब में हैं. छोटा बेटा १८ साल का होगा सो उसका परिचय कार्ड बनना है जिसे अरबी भाषा में इकामा कहते हैं. पूरे परिवार को ११ महीने बाहर रहने की इजाज़त मिलेगी.
दस दिन बाद दुबई लौटेंगे, दुबई के ही एक कॉलेज में छोटे बेटे का एंट्रेंस टेस्ट है. उसकी जिंदगी का एक नया अध्याय शुरू होगा. बड़े बेटे को दूसरी सफलता के लिए तैयार करना है.. लेकिन उससे पहले एक कहावत को चरितार्थ करना है.... सेहत हज़ार नियामत .....
अभी इतना ही ....हिन्दी लिखने का रास्ता मिल गया है ....
दम्माम की चारदीवारी में खाने पीने के बाद लिखना पढ़ना और संगीत सुनने का ही आनंद ले रहें हैं . बाहर जाने का मौका शाम को ही मिलता है सो.........
कई दिनों की चुप्पी टूटेगी, बातें होंगी हज़ार
कई दिनों की सिमटी यादें निकलेंगी हर बार ....
मंगलवार, 20 मई 2008
चिट्ठी न्यारी मेरे नाम ....
अन्धकार के गहरे सागर में
अकेलेपन की शांत लहरें
जिनमें हलचल सी हुई . .....
शायद सपनों की दुनिया
शायद कल्पना का लोक
ताना बाना बुना गया.....
प्यारी मीनू ,
आशा है सब कुशल मंगल होगा. यहाँ तो मैं नितांत अकेला तुम्हारे इंतज़ार में आँखें बिछाए खड़ा हूँ... एक एक पल भारी पड़ रहा है. बता नहीं सकता कि मेरे दिल पर क्या गुज़र रही है. पहली बार जब तुमने मुझे देखा था तो अपनी प्यारी मुस्कान के साथ दोनो बाँहें फैला कर मेरा स्वागत किया था. मुझे एक बार भी नहीं लगा था कि हम पहली बार मिल रहे हैं. लगा था जैसे हम सदियों से एक दूसरे को जानते हैं.
मीनू , मुझे देखकर तुम्हारे चेहरे पर चमक आ जाती थी. तुम्हारी मधुर आवाज़ में गाया प्रेम गीत आज भी मेरे कानों में गूँज रहा है -----
मेरा चिट्ठा मेरा चित्तचोर
चुराके चित्त को बना चित्तेरा
जादू से अपने मुझे लुभाए
बार-बार मुझे पास बुलाए
पहरों बैठके उसे निहारूँ
कलम से अपनी उसे रिझाऊँ !
अतीत के चित्र सजीव होकर आँखों के सामने हैं ... जैसे कल की ही बात हो.... अपनी सुन्दर सुन्दर रचनाओं से मेरे व्यक्तित्त्व को निखारतीं. मुझे तुष्ट करने के लिए बार बार देखतीं कि मुझे टिप्पणियों की खुराक मिल रही है या नहीं......
अब क्या हो गया है तुम्हें ?? क्यों तुम महसूस नहीं कर पातीं कि धीरे धीरे मेरी साँसें रुक रही हैं...मेरा दम घुट रहा है. ऐसे लग रहा है जैसे कभी भी मेरा वजूद मिट जाएगा...... मेरी प्यारी मीनू , मुझे जीवन का दान दे दो ...
मुझे पहले जैसा प्यार दे दो .. . ...
कभी कभी लगता है कि तुम मुझसे ऊब चुकी हो,,, शायद तुम्हें दूसरे चिट्ठे ज़्यादा अच्छे लगने लगे हैं ... जिनका मनमोहक रूप तुम्हें मुझसे दूर कर रहा है... फिर दूसरे ही पल एक विश्वास जागने लगता है .. आभासी दुनिया में कितने भी चिट्ठे तुम्हारे जीवन में आएँ, उनका रूप तुम्हारा मन मोह लें ... लेकिन तुम मुझे नहीं भुला सकतीं.... .
आशा की किरण जगमगाने लगती है .... मन पुकार उठता है......
मेरे आगोश में फिर से आओ
प्रेम गीत तुम फिर से गाओ .
नई रचना के तोहफे लाओ
सुख की नई अनुभूति पाओ.
कभी तो तुम्हारी नज़र फिर से मुझ पर पड़ेगी... फिर से पुराने दिन लौटेगे...
सदा तुम्हारे इंतज़ार में.....
सिर्फ तुम्हारा चिट्ठा चित्तेरा
'प्रेम ही सत्य है'
सोमवार, 12 मई 2008
हाइकु (त्रिपदम)
कैसे लिखूँ मैं
बुद्धि जड़ हो गई
मन बोझिल
सफ़रनामा न्यारा
दर्ज करूँगी
थम गए हैं शब्द
गला रुँधा है
कविता हो न
लेख लिख न पाऊँ
बात बने न
निपट अकेली माँ
दर्द गहरा
मन-पंछी व्याकुल
रोता ही जाए
माँ के अंतर्मन को
छटपटाऊँ
लिख पाना कुछ भी
हाल बेहाल
मैना जब चहकी
मन बहला
ठंडी सी आह भरी
नैनों में नीर
कर्म करे अपना
मोह न जाने
उड़ जाते हैं
चींचीं करते बच्चे
पाते ही पंख
खुश्बू बनके छाएँ
करती इच्छा
शनिवार, 10 मई 2008
दिल्ली की गर्मी में माँ के आँचल की शीतल छाया
दिल्ली से कल ही लौटे. टैक्सी घर के सामने रुकी तो छोटा बेटा विद्युत बाहर ही खड़ा था . सामान लेकर अन्दर पहुँचे तो घर साफ-सुथरा पाकर मन प्रसन्न हो गया. एकाध नुक्सान को नज़र अन्दाज़ करना ज़रूरी होता है सो हमने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया. बेटे के हाथ की चाय और दिल्ली की मिठाई ने सारी थकान दूर कर दी फिर भी कुछ देर आराम करने बिस्तर पर गए तो चावल पकने की खुशबू से नींद खुली. विद्युत ने चावल बना लिए थे जिसे पिछ्ले दिन की करी मिला कर बिरयानी बना कर परोस दिया. शाम की चाय वरुण ने बनाई. चाय पीकर कितना आनन्द आया बता नही सकते.
फिर शुरु हुआ ब्लॉग जगत का सफ़र जिसमें हम बहुत पीछे छूट गए थे. लिखने की राह पर चलने का उतना मज़ा नहीं जितना पढने का आनन्द आता है. फिर भी लिखने की लहर मन में आते ही लिख भी डालते हैं.....
अभी अभी कुछ त्रिपदम मन की लहरों से जन्मे........
गर्म हवा में
माँ का स्नेहिल साया
शीतल छाया
भूली मातृत्त्व
माँ की ममता पाई
बस बेटी थी
आज मैं लौटी
फिर से माँ बनके
प्यार लुटाती
ब्लॉग जगत
लगे परिवार सा
पाया फिर से
पढ़ना भाए
लिखना भूली जैसे
अनोखी माया
दिल्ली सफ़र
दर्ज करूँगी फिर
मनमर्जी से
मनमौजी मैं
लिखूँ पढूँ इच्छा से
मदमस्ती में
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