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बुधवार, 12 मार्च 2008

त्रिपदम (हाइकु) चित्र में







सिहरी काँपीं
आगोश मे सकून
सूरज तापे



(दम्माम में 8-10 क्लिक करने के बाद ही मेरी मन-चाही मन-भावन तस्वीर उतर पाई)

मंगलवार, 11 मार्च 2008

फिर कीबोर्ड पर उंगलियाँ थिरकने लगीं !

आज दस बारह दिन बाद एक बार फिर कीबोर्ड पर उंगलियाँ थिरकने लगीं. कीबोर्ड के मधुर संगीत की स्वर लहरी कानों में ठंडक देने लगी. अलग अलग खुशबू लिए चिट्ठे आँखों के ज़रिए दिल और दिमाग में उतरने लगे. एक नशा सा छाने लगा.
कुछ दिन पहले गले में थोड़ा दर्द और फिर तेज़ बुखार .... हँसी हँसी में बीमार पड़ने की इच्छा की तो सचमुच बीमार पड़ गए. तेज़ बुखार और खाँसी ज़ुकाम की मार अभी एक रात ही भोगी थी कि कनाडा से आई पुरानी सखी ने हमें एक ही रात में खड़ा कर दिया. सोचा था कि 12-13 घंटे की हवाई यात्रा की थकान दूर करके अगले दिन ही मुलाकात होगी लेकिन पुरानी यादों के साथ सीधा ऐयरपोर्ट से हमें मिलने आ पहुँची. पुराने दोस्तों से मिलने की बात ही कुछ अलग होती है. शाल लपेट कर बुखार को छुपाते और निकल पड़ते हम घूमने.... चार पाँच दिन तो दुबई टैक्सी और बिग बस के टूर में निकल गए. पाँच दिन की दवा का कोर्स खत्म होते ही ड्राइविंग शुरु.... दिन में मस्ती और शाम होते होते घर पहुँचते तो बिस्तर पर गिर पड़ते......
इस दौरान हमने सहेली को घुमाते हुए फोटोग्रॉफी की और आराम के दौरान Rhonda Byrne की लिखी 'The Secret' पढ़ने में व्यस्त रहे. कुछ पंक्तियाँ जो मुझे अच्छी लगीं उन्हें जैसे का तैसा अंग्रेज़ी में ही लिख रही हूँ क्योंकि उसी भाषा में ही उसके अर्थ की महत्ता दिख पाएगी.
"You are like a human transmission tower, transmitting a frequency with your thoughts. If you want to change anything in your life, change the frequency by changing your thoughts."

"Your thoughts determine your frequency, and your feelings tell you immediately what
frequency you are on. When you feel bad, you are on the frequency of drawing more bad things. When you feel good, you are powerfully attracting more good things to you."

"Beliefs about aging are all in our minds, so release those thoughts from your consciousness. Focus on health and eternal youth."

"Praise and bless everything in the world, and you will dissolve negativity and discord and align yourself with the highest frequency – love."

कुछ तस्वीरें जो हमने अपनी दोस्त को दुबई घुमाते हुए अपने कैमरे में कैद कीं. दुबई का ही नहीं अरब देश के लोगों का मिलता जुलता यह रूप पुराना है लेकिन खास है... विकास के इस दौर में रेगिस्तान में बद्दू लोग आज भी इसी तरह से रहना पसन्द करते हैं और कुछ तो रह भी रहे हैं.


दुबई म्यूज़िम में बेडरूम में अरबी मज़लिस पर बैठी औरत....


घर के बाहर अक्सर लोग बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाते और सुलेमानी चाय पीते दिखाई देते हैं.

रेगिस्तान में टैंट के बाहर अलाव जलाकर हाथ से बने वाद्य यंत्र बजाते हुए अरबी लोकगीत गाते हैं और सुलेमानी चाय का मज़ा लेते हैं.




दूर रेगिस्तान में टैंट में बद्दू परिवार सभी सुविधाओं के साथ आज भी इसी तरह से रहना पसन्द करता है. आजकल भी 40-50 भेड़-बकरियाँ और ऊँट का मालिक रेगिस्तान में इसी तरह से रहता है.


रमादान के दिनों में ही नहीं बल्कि सर्दी हो या गर्मी हो, हर रोज़ कई किस्म की ताज़ी खजूर इस तरह से बिकती हैं.





शैल से मोती निकालने के औज़ार





गोताखोर अपनी नाव से रस्सी बाँध कर समुद्र में नीचे उतरता है और गोता लगा कर मोती लगे शैल गले में लगी टोकरी में इक्ट्ठे करता है.

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

पलकों में सजी यादें ... ! 2










अनायास ही पलकों में सजी यादें पिछली पोस्ट की ज़मीन पर उतरती चली गईं. पलकों पर सजी कुछ और भी यादें हैं, जो हौले हौले से फिर एक नई पोस्ट की ज़मीन पर उतरने लगीं. कुछ यादें जमी हैं जिन्हें खींच कर निकाला तो कोमल पलकें भी साथ ही उतर आएँगीं. कुछ यादें पलकों पर ही सजी रहती हैं तो कुछ यादें झर जाती हैं...!
साउदी अरब अपने आप में एक खास देश है जहाँ हमने अपनी गृहस्थी शुरु की और खट्टी मीठी यादों का दस्तावेज़ तैयार हुआ. विजय पूरी कोशिश करते कि हमें किसी तरह की कोई कमी महसूस न हो. लेकिन सुविधाओं से सम्पन्न घर होने पर भी धीरे धीरे लगने लगा जैसे मैं सोने के पिंजरे में फड़फड़ाती चिड़िया हूँ जिसके पंख जमते जा रहे हैं. खुले आकाश में उड़ने की लालसा बढ़ने लगी. खिड़की पर पड़े मोटे पर्दों से दम घुटने लगा. धूप के छोटे से टुकड़े को मन तरसने लगा.
विजय ऑफिस के लिए खुद तैयार होते और चुपचाप निकल जाते, बाद में हम माँ बेटे की नींद खुलती. विजय बोलते सुबह उठने की ज़रूरत नहीं लेकिन सोकर भी समय काटो तो कितना....! इत्मीनान से वरुण की देखभाल और घर का कामकाज निपटाते. वरुण के काम, घर की सफाई, खाना पकाना बस... ! बाहर जाने के लिए पति का इंतज़ार.
एक दोपहर विजय ने फोन करके तैयार रहने को कहा कि हमें धूप लगवाने के लिए ले जाने आ रहे हैं. सोचने पर मजबूर हो गए जैसे दाल, चावल या गर्म कपड़ों को धूप लगवाई जाती है वैसे ही हमें भी.... फिर भी घर की चारदीवारी से निकलना नियामत होता. कुछ देर खुले आकाश के नीचे , खुली हवा में साँस लेने का अलौकिक आनन्द,,,,, उस भावना का बखान कैसे करें, शब्द नहीं हैं... सूरज की चमचमाती किरणें बाँहों में भर लेतीं. हवा गालों को थपथपा कर निकल जाती.
घर वापिस लौटते तो वरुण खूब रोता, घर के अन्दर जाने का नाम नहीं. एक बार फिर नज़रबन्द हो जाते. अन्दर घर में कैद और बाहर काले बुरके में कैद कभी उस देश को कोसते तो कभी विजय को. विजय बार बार कहते, "लव इट ऑर लीव इट". सोचने पर मज़बूर हो जाते कि छोड़ना या तोड़ना आसान होता है मतलब विपरीत परिस्थितियों से भाग जाना. छोड़ सकते नहीं थे सो प्यार करना ही शुरु कर दिया. जिसे हम प्यार करना शुरु कर देते हैं तो कुछ भी बुरा नहीं लगता और धीरे धीरे हमें उस देश से प्यार होने लगा जहाँ हमारा परिवार पलता था.
इसी बीच परिवार में एक और नया सदस्य आ गया बेटे विद्युत के रूप में. पड़ोस में रहने वाले अकबर साहब की नई नवेली दुल्हन सलमा आ गई. हमें एक प्यारी सी दोस्त मिल गई. अकबर साहब हैदराबाद के और सलमा लखनऊ की. लखनऊ और हैदराबाद की नौंक झौंक में खूब मज़ा आता. हिन्दी पढ़ाने के लिए इंडियन एम्बैसी के स्कूल में एप्लाई किया तो फट से नौकरी मिल गई.
साउदी कानून समझने लगे. काले बुरके के साथ काला दुपट्टा पहनना कभी न भूलते. जानते थे कि अगर कभी मतुए ने पकड़ लिया तो सबसे पहले पति का इक़ामा(परिचय-पत्र) नम्बर नोट कर लिया जाएगा. तीन बार नम्बर नोट हुआ तो देश से बाहर. जहाँ फैमिली एलाउड होती वहीं जाते चाहे वह बाज़ार हो , रेस्तराँ हो या पार्क हो. कभी कभी कार में बैठे रहते और विजय वीडियो लाइब्रेरी से कैसेटस ले आते क्योंकि औरतें दुकान के अन्दर नहीं जा सकतीं.
कुछ बाज़ार हैं जो सिर्फ औरतों के लिए हैं. पति और ड्राइवर बाहर बैंचों पर ही बैठे रहते हैं. कुछ बाज़ार सुबह औरतों के लिए और शाम को फैमिलीज़ के लिए हैं. बैचुलर्ज़ के लिए शुक्रवार का दिन होता. भिनभिनाती मक्खियों से दूर दूर तक फैले हुए आदमी दिखाई देते. एक-दूसरे से मिलते. देश जाने वाले लोगों को पैसे और सौगात भेजते, आने वालों से चिट्ठी-पत्री और और घर से आई सौगात लेते. अपने अपने परिवारों का हाल-चाल पूछते. घर की नहीं, पूरे गाँव की खबर सुनते और बस इसी में ही सन्तोष पा जाते.

साउदी अरब एक ऐसा देश है जहाँ नमाज़ के वक्त सारे काम बन्द हो जाते हैं.फज़र की नमाज़ तो सुबह सवेरे चार बजे के करीब होती. उसके बाद की चार नमाज़ों की अज़ान होते ही शटर डाउन. मतुओं की बड़ी बड़ी ज़ी एम सी गाड़ियाँ घूम घूम कर कामकाज बन्द कर के नमाज़ पढ़ने की हिदायत देती हुई दिखाई देतीं. एक और खास बात कि साउदी अरब एक ऐसा देश है जहाँ स्टेडियम में हज़ारों पुरुष खेल देखने के लिए एक साथ बैठते. यह बात गिनिज़ बुक में भी दर्ज़ है.
अन्य धर्मों के पूजा स्थल नहीं और न ही मनोरंजन के लिए सिनेमा हॉल. वीकैण्ड्स पर कुछ दोस्त एक-दूसरे के यहाँ मिलते और बारबीक्यू करते. बस यही एक मनोरंजन का साधन होता. कभी कभी शहर से दूर इस्तराहा (एक विला जिसमें कुछ कमरे स्विमिंग पूल और खेलने का छोटा सा स्थान) बुक कराके 8-10 परिवार जन्मदिन और शादी की सालगिरह भी मना लेते.
जीवन नई नई कहानियों के साथ पड़ाव दर पड़ाव आगे बढ़ता गया. वहाँ रिश्तेदारों को वीज़ा मिलना मुश्किल है सो दोस्त ही रिश्तेदारों की भी भूमिका निभाते हैं. एक दूसरे के दुख सुख में काम आते लेकिन वह भी पति के भरोसे, जो काम से लौट कर ही कहीँ मिलने मिलाने ले जा पाते. दिल को खुश रखने के लिए सोचा करते कि हम बेगम से कम नहीं. पति शौहर ही नहीं शौफ़र भी हैं जो चौबीस घंटे डयूटी बजाते हैं.

त्रिपदम (हाइकु)






दिल को छू ले
बात-बात का फ़र्क
बुद्धि उलझे


शुष्क नीरस
प्रेम-पुष्प विहीन
मानव मन


मृग-तृष्णा है
मन मरुस्थल सा
प्रेम न फ़ूटा


वसुधा सोचे
खिलने की चाह है
शांति मिलेगी


सुमन खिले
हरयाली उमगी
खुशबू फैली


मन प्रेमी का
आनन्द का सोता सा
रस भीगा सा

सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

पलकों में सजी यादें ... !







26 अक्टूबर 1986 की सुबह सबकी आँखें नम थीं. मम्मी, डैडी, छोटी बहन बेला और भाई चाँद से अलग होने का दुख पति मिलन की खुशी से कहीँ ज़्यादा था. उधर पाँच महीने का नन्हा सा वरुण समझ नहीं पा रहा था कि वह कहाँ जा रहा है. उड़ान का समय हो रहा था. भीगी आँखों से सबको विदा करके बेटे को गोद में लिए भारी कदमों से प्लेन में आ बैठी. एयर होस्टेस की प्यारी मुस्कान ने मेरे मन को थोड़ा शांत किया. सच है कि मुस्कान तपती धूप में शीतल छाया सी ठंडक देती है. प्लेन के टेक ऑफ करते समय बेटे के मुँह में दूध की बोतल लगाई और मुँह में पड़ी चिंयुगम को चबाने लगी. कुछ ही देर में बेटा सो गया और मैं अतीत की खट्टी मीठी यादों में खो गई.
मम्मी डैडी और छोटे दो भाई बहन अपने आप में मगन ज़िन्दगी जी रहे थे कि मेरी शादी ने वह एक साथ रहने का भ्रम तोड़ दिया. संयोग यह बना कि सात दिन में ही अजनबी पति ने अपना अंश मेरे साथ जोड़ दिया और साउदी अरब वापिस लौट गए. ससुराल अम्बाला में और सास-ससुर बुज़ुर्ग सो मुझे दिल्ली मम्मी के घर ही रहने की सलाह दी गई. खैर तेरह महीने और अठारह दिन के बाद पहली बार माँ का घर छोड़ने पर रुलाई फूट रही थी.
बेटे वरुण के रोने से यादों का ताना-बाना टूट गया. घड़ी देखी तो ढाई घंटे बीत चुके थे. शायद वरुण के दूध का समय हो गया था. एयर होस्टेस से दूध की बोतल गर्म करने को कहा और बेटे को बहलाने लगी. भूख के कारण उसका रोना तेज़ होता जा रहा था और मेरे हाथ-पैर फूल रहे थे. मम्मी के घर तो चार-चार लोग वरुण को सँभालते थे लेकिन अब पता नहीं अकेले कैसे सँभाल पाऊँगी. तरह तरह के सवाल मन में पैदा हो रहे थे. पतिदेव की घर-गृहस्थी में रुचि है कि नहीं, मेरे साथ कैसा व्यवहार होगा...यही सोच रही थी कि एयर होस्टेस ने दूध की बोतल लाकर दी. बोतल मुहँ से लगते ही बेटा खरगोश की तरह गोद में दुबक कर दूध पीने लगा.
अपने नन्हे-मुन्ने को निहारती जा रही थी और सोच रही थी कि माँ बनते ही औरत में कितना बदलाव आ जाता है. ममता अपने सारे बाँध तोड़ कर बहना चाहती है. अपना सब कुछ न्यौछावर कर देना चाहती है लेकिन प्रभु की लीला ऐसी कि नौ महीने जो अंश मेरे खून और माँस-मज्जा से बना उसका एक एक अंग अपने पिता की समानता लिए हुए था. सिर से पैर तक सब कुछ एक सा. अब देखना है कि पिता अपने नन्हे स्वरूप को देखकर क्या अनुभव करते हैं. पहली बार बेटे को गोद में लेकर कैसे अपनी ममता दिखाएँगे. सोच कर मुस्कुरा उठी.
कुछ ही देर में बैल्ट बाँधने की बत्ती जल गई. लैंड करने का समय आ गया था. मैंने सोते वरुण को थोड़ा हिला डुला कर फिर से दूध की बोतल उसके मुहँ से लगाई और खुद चियुंगम चबाने लगी. हवाई जहाज के उतरने और चढ़ते समय मुँह चलाते रहने से कानों में हवा का दबाव कम महसूस होता है और दर्द भी नहीं होता. लैंडिंग बहुत आराम से हुई.








धड़कते दिल से एयरपोर्ट की ओर कदम बढ़ाने लगी. एयरपोर्ट की सुन्दरता देखकर मेरी आँखें फैली जा रही थी. चमकते फर्श पर फिसलने के डर से पैर सँभल कर रख रही थी. शीशे जैसी चमक ...चारों ओर जगमग वातावरण. सुन्दर एयरपोर्ट रेगिस्तान में रंगमहल सा लग रहा था. नए देश की अजनबी संस्कृति से एक अंजाना सा भय. भाषा की समस्या सबसे विकट. सभी सरकारी काम अरबी भाषा में होने के कारण टूटी फूटी अंग्रेज़ी भाषा में ही काम चलाने की कोशिश की.
इमीग्रेशन काउण्टर पर बैठे साउदी ने पासपोर्ट रखकर इक़ामा इक़ामा कह कर इशारे से बाहर जाकर लाने को कहा. पहली बार आने पर पति का इक़ामा(परिचय-पत्र) दिखाकर ही बाहर जाने की इजाज़त मिलती है. पति विजय को ढूँढने में ज़्यादा देर नहीं लगी. बेटे को गोद में लेने को बेताब विजय ने फौरन अपना इक़ामा दिया और बेटे को लपक कर गोद में ले लिया. दुबारा अन्दर जाकर इक़ामा दिखाकर अपना पासपोर्ट लिया और सामान ट्रॉली में लेकर बाहर आई तो देखा कि पतिदेव बेटे को देख देख कर उसे बार बार गले से लगाकर चूम रहे हैं. बेटा भी टुकुर टुकुर पापा को देख रहा है. मैं नई नवेली दुल्हन माँ के रूप में खड़ी पिता-पुत्र के मिलन को देख कर मुस्कुरा रही थी.
कुछ ही देर में हम बाहर थे. दूर दूर तक फैले रेगिस्तान के बीच काली सी रेखा जैसी सड़क पर कार 120 की गति से दौड़ने लगी. विजय बीच बीच में मुझे और बेटे वरुण को देख कर मुस्कुरा रहे थे. मैं रेगिस्तान में हरयाली देखकर हैरान हो रही थी. रेगिस्तान पीछे छूटा तो ऊँची ऊँची अट्टालिकाएँ सी दिखने लगी.
एक शॉपिंग मॉल के सामने कार खड़ी करके एक बुरका खरीदा गया जिसे पहनना ज़रूरी था. वहाँ का कानून है कि घर से बाहर बुरका पहन कर ही निकला जा सकता है. बाज़ार से खाने पीने का सामान खरीदना था सो हमने फौरन बुरका ओढ़ लिया. पहनते ही सासू माँ की याद आ गई जो काला कपड़ा पहनने के सख्त खिलाफ थी. खानदान में कोई काला कपड़ा नहीं पहन सकता था लेकिन यहाँ के कानून के मुताबिक देशी- विदेशी, काले- गोरे सभी को बुरका पहनने का आदेश था.
नाश्ते का सामान खरीद कर हम जल्दी ही घर की ओर रवाना हुए. कार एक बड़ी सी इमारत के आगे रुकी. लगभग 10 फ्लैट वाली इमारत में ग्राउण्ड फ्लोर पर हमारा घर था. दरवाज़ा खोल कर विजय रुके और मुझे पहले अन्दर जाने को कहा. उनका ऐसा करना मन को भा गया. लाल रंग के मोटे कालीन पर कदम रखते अन्दर दाखिल हुई तो पीछे पीछे विजय भी अन्दर आ गए. छोटी सी गैलरी से दाखिल होते हुए देखा एक तरफ रसोईघर , दूसरी तरफ बाथरूम और तीसरे कोने में एक दरवाज़ा बेडरूम में खुलता था. अन्दर पहुँचे तो देखा एक बड़ी सी खिड़की पर मोटे मोटे पर्दे थे, जिन्हे हटाने की सख्त मनाही थी क्यों कि घर ग्राउण्ड फ्लोर पर था.
छोटे से घर में भी हम खुश थे क्योंकि लम्बे इंतज़ार के बाद यह दिन देखने को मिला था. उधर विजय अपने सोए प्रतिरूप को देखकर अलौकिक आनन्द पा रहे थे. बस इसी तरह हमारा गृहस्थ जीवन शुरु हुआ.

नए त्रिपदम 'हाइकु' - मन-प्रकृति



मैं मैं नहीं हूँ
जो हूँ वैसी नहीं हूँ
भ्रमित मन


छलिया है जो
पाखंड करता क्यों
नादान मन

प्रशंसा पाए
अहम ही ब्रह्रास्मि
तृप्त हो जाए


मोह पाश है
विश्व मकड़ी जाल
नहीं उलझो


सत्य का खोजी
प्रकाश स्वयं बन
तू ही आनन्दी