अभी तो सूरज दमक रहा है. दिन अलस जगा है.
चंदा के आने का इंतज़ार अभी से क्यों लगा है !
बस उसी चंदा के ख्यालों में मेरा मन रमा है
नभ की सुषमा देखने का अरमान जगा है !
कविता के सुन्दर शब्दो का रूप सजा है
अब ब्लॉगवाणी पर पद्य मेरा हीरे सा जड़ा है !
नील गगन के नील बदन पर
चन्द्र आभा आ छाई !
ऐसी आभा देख गगन की
तारावलि मुस्काई !
नभ ने ऐसी शोभा पाई
सागर-मन अति भाई !
कहाँ से नभ ने सुषमा पाई
सोच धरा ने ली अँगड़ाई !
रवि की सवारी दूर से आई
उसकी भी दृष्टि थी ललचाई!
घन-तन पर लाली आ छाई
घनघोर घटाएँ भी सकुचाईं !
नील गगन के नील बदन पर
रवि आभा घिर आई !
ऐसी आभा देख गगन की
कुसुमावलि भी मुस्काई !
नील गगन के नील बदन पर
चन्द्र आभा आ छाई !