आज सुबह सुबह जब घर से निकली तो देखा कि चारों तरफ गहरा कोहरा छाया हुआ है. 50 मीटर की दूरी तो क्या शायद 5 मीटर की दूरी पर भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. दुबई में सर्दी शुरु होते ही एकाध महीना ऐसे ही बीतता है. धड़कते दिल से धीरे धीरे कार लेकर सड़क पर आ गई. 
आगे पीछे कोहरा ही कोहरा जैसे आकाश गहरी साँसें भरता हुआ धरा को अपनी
बाँहों में समेटने के लिए नीचे उतर आया हो. सड़क के किनारे नज़र गई तो लगा जैसे धरती के माथे पर ओस की बूँदें पसीने सी चमक रही हों. सकुचाई सी , सिमटी सी हरे आँचल से चेहरे को ढके खड़ी की खड़ी रह गई थी.
आगे पीछे कोहरा ही कोहरा जैसे आकाश गहरी साँसें भरता हुआ धरा को अपनी
मदमस्त आकाश धरती के रूप सौन्दर्य का प्यासा हमेशा से ही रहा है. एक दूसरे के प्रति गजब का आकर्षण लेकिन मिलन जैसे असंभव. दोनों की नियति यही है. धरती जब विरह की वेदना में तड़पती है तो आकाश ही नहीं रोता बल्कि मानव को भी रुला देता है.
सागर के ह्रदय में बसी वसुधा के मन में आकाश का आकर्षण है , यह एक ऐसा सत्य है जो नकारा नहीं जा सकता.
बादलों की बाँहों को फैलाए आकाश अपनी उठती गिरती बेकाबू होती साँसों पर काबू पाने की कोशिश करता बिल्कुल नहीं दिखाई दे रहा था. सोच रही थी शायद यही हाल सागर का भी हो जो अपने दिल में उठते भावों को भाप बना कर उड़ा रहा हो.
गहराते कोहरे को देख
अचानक आकाश ने अपना सीना चीरते हुए लाल चमकता हुआ सूरज सा दिल निकाल कर धरती को दिखाया, जिसे देख कर धरती का चेहरा उस प्रकाश से चमक उठा और दिशाएँ मुस्करा उठीं . माथे पर चमकता ओस सा पसीना धीरे से गुम हो ग
आकाश के धड़कते दिल जैसे सूरज में प्यार का ऐसा ओज था , जिसे पाते ही हर दिशा जगमग करने लगी. धरती ने आकाश के प्यार की गरमाहट को अनुभव किया. हरी हरी घास की रंगत में और निखार आ गया था. खजूर के पेड़ों के बड़े बड़े पत्ते हवा के झोंकों से एक दूसरे की ओर बाँहें फैलाए मिलने को मचलने लगे. रंग-बिरंगे चटकदार फूल एक दूसरे को छू छू कर झूमने लगे. दिशाओं में फैली इस गरमाहट को मैंने भी महसूस किया..!