हर नया दिन सफ़ेद दूध सा
धुली चादर जैसे बिछ जाता
सूरज की हल्दी का टीका सजा के
दिशाएँ भी सुनहरी हो उठतीं
सलोनी शाम का लहराता आँचल
पल में स्याह रंग में बदल जाता
वसुधा रजनी की गोद में छिपती
चन्दा तारे जगमग करते हँसते
मैं मोहित होकर मूक सी हो जाती
जब बादल चुपके से उतरके नीचे
कोमल नम हाथों से गाल मेरे छू जाते
और फिर होने लगता
इक नए दिन का इंतज़ार .....!
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (01-07-2014) को ""चेहरे पर वक्त की खरोंच लिए" (चर्चा मंच 1661) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (01-07-2014) को ""चेहरे पर वक्त की खरोंच लिए" (चर्चा मंच 1661) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका यहाँ आना अच्छा लगा, लिंक शामिल करने का बहुत आभार
बहुत सुंदर प्रस्तुति
उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@दर्द दिलों के
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं
क्या खुब लिखती हैं आप ,सादर ़परनाम ,मैं ब्लाँगर नहीं ट्विटर पर @ashiqhun नाम से हुँ ,अद्भुत
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