एक पुस्तक प्रेमी पाठक का कहना था - दूरदर्शन तो आँख को टिकने नहीं देता, किताब की पंक्ति पर तो आँखें रुक सकती हैं , पीछे पलट कर देख सकती हैं , पढ़ते पढ़ते आँखें नम हो जाए तो किताब तो प्रतीक्षा कर सकती है, दूरदर्शन यंत्र कहाँ करेगा...
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साहित्य देश को गति देता है, उसे जीवन्त बनाने की कोशिश करता है. लेकिन आज के पाठयक्रम में साहित्य
का स्थान नगण्य है, है भी तो कोई पढ़ने वाला नहीं, पढ़े पढाए क्यों..... साहित्य से तो जीवन चलता नहीं, साहित्य तो अब मनोरंजन भी नहीं है.
साहित्य का मनोरंजन योग्य पदार्थ श्रव्य - दृश्य संचार साधनों ने गहरी हंडिया में पका कर भपके से खींच लिया है. मेरा विचार है साहित्य के प्रति चाव अभी भी है, विरल हो ...यह अलग बात है.
किताब की दुकान पर जब लोगो को नई किताब खोजते हुए देखो तो लगता है कि साहित्य के प्रति चाव संस्कार अभी बना हुआ है...
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पुरुस्कार की कामना
जो कुछ तुम करो, उसके लिए किसी प्रकार की प्रशंसा अथवा पुरुस्कार की आशा मत रखो. ज्यों ही हम कोई
सत कार्य करते हैं, त्यों ही हम उसके लिए प्रशंसा की आशा करने लगते हैं . ज्यों ही हम किसी सत कार्य में
चन्दा देते हैं त्यों ही हम चाहने लगते हैं कि हमारा नाम अखबारों मे खूब चमक उठे... ऐसी कामनाओं का फल दुख के अतिरिक्त और क्या होगा.
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इसमें सन्देह नहीं कि 'करने' की अपेक्षा 'कहना' अत्यंत सरल होता है परंतु जो 'कहना' छोड़ कर 'करने' में जुट
जाते हैं ऐसे व्यक्ति इतिहास के उज्ज्वल हस्ताक्षर बन जाते हैं.
इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए संत कबीर ने कहा है ----
" कथनी मीठी खाँड सम , करनी विष की लोय
कथनी छड़ करनी करे, विष से अमृत होए !! "
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1 टिप्पणी:
क्या बात है! एक पुस्तक प्रेमी पाठक का कहना था - दूरदर्शन तो आँख को टिकने नहीं देता, किताब की पंक्ति पर तो आँखें रुक सकती हैं , पीछे पलट कर देख सकती हैं , पाठ्य-पुस्तक पढ़ते पढ़ते आँखें नम हो जाए तो किताब तो प्रतीक्षा कर सकती है, दूरदर्शन यंत्र कहाँ करेगा...
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