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शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

सीमा का रखवाला

बादल, बिजली, बारिश घनघोर
और महफ़ूज़ घरों में हम

सैनिक डटे सीमाओं पर
हर पल रखवाली में व्यस्त
रखवाली में व्यस्त, कभी ना होते पस्त
दुश्मन हो,  या हो क़ुदरत का अस्त्र

अचल-अटल हिमालय जैसे डटे हुए
 बर्फ़ीले तूफ़ानों में गहरे दबे हुए
आकुल-व्याकुल से नीचे धँसे हुए
घुटती साँसों से लड़ते बर्फ़ में फँसे हुए

उठती गिरती साँसों का क्रम  रुक जाता
सीमा पर लडते लड़ते ग़र गोली खाके मरता
दुश्मन को मार के मरता अमर कहाता
अकुला के सोचे तड़पे,  सीमा का रखवाला

निष्ठुरता क़ुदरत की हो या हो मानव की
करुणा में बदले, स्नेहमयी सृष्टि हो जाए
सीमाहीन जगत के हम  प्रेमी हों जाएँ
दया भाव हो सबमें हर कोई ऐसा सोचे !!

"मीनाक्षी धंवंतरि" 

1 टिप्पणी:

pushpendra singh ने कहा…

सीमा का रखवाला. आप की लिखावट काफी उम्दा दीदी.

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