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गुरुवार, 19 मई 2016

अजब दिल की वादी , अजब दिल की बस्ती


रात की  ख़ामोशी में कुछ गज़लें दूर किसी नई दुनिया में ले जातीं हैं... सुनिए और महसूस करके बताइए !




ये शीशे, ये सपने, ये रिश्ते, ये धागे
किसे क्या खबर है कहाँ टूट जाएँ  
मुहब्बत के दरिया में तिनके वफा के
ना जाने ये किस मोड़ पर डूब जाएँ.....   
अजब दिल की वादी, अजब दिल की बस्ती
हर एक मोड़ पर मौसम नई ख्वाहिशों का
लगाए हैं हमने भी सपनों के पौधे
मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का
मुरादों की मंज़िल सपनो में खोए
मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे
ज़रा दूर चल कर जब आँखे खुली तो
कड़ी  धूप मे हम अकेले खड़े थे....  
जिन्हें दिल से चाहा, जिन्हें दिल से पूजा
नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से
रवायत है शायद ये सदियों पुरानी
शिकायत नही है कोई ज़िन्दगी से ... 


2 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " आत्मबल की शक्ति - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

मीनाक्षी ने कहा…

शुक्रिया शिवम !