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रविवार, 24 अगस्त 2014

फूल और पत्थर




मेरे घर के गमले में 
खुश्बूदार फूल खिला है
सफ़ेद शांति धारण किए 
कोमल रूप से मोहता मुझे .... 
छोटे-बड़े पत्थर भी सजे हैं 
सख्त और सर्द लेकिन
धुन के पक्के हों जैसे 
अटल शांति इनमें भी है 
मुझे दोनों सा बनना है 
महक कर खिलना 
फिर चाहे बिखरना हो 
सदियों से बहते लावे में 
जलकर फिर सर्द होकर 
तराशे नए रूप-रंग के संग 
पत्थर सा बनकर जीना भी है !!

14 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सौंदर्य के साथ प्रण - इसमें भी सौंदर्य और खुशबू

वाणी गीत ने कहा…

फूल होना है तो पत्थर भी !
दोनों विपरीत मगर परिस्थितियां भी तो एक सी होती नहीं !
सुन्दर !

kuldeep thakur ने कहा…

सुंदर रचना....


दोस्तों गुगल समूह की कामयावी के बाद अब एक मंच फेसबुक पर भी प्रारंभ किया गया है। उमीद है, यहां भी आप इस मंच को अपना स्नेह देंगे। गुगल समूह पर ये मंच जारी रहेगा।
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निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर भाव 1

Pallavi saxena ने कहा…

दोनों का अपना ही महत्व है न फूल बनना आसान है न पत्थर और जो दोनों का संगम ही पा जाये तो फिर बात ही क्या......सुंदर भावाभिव्यक्ति।

रविकर ने कहा…

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज मंगलवार को चुरा ली गई है- चर्चा मंच पर ।। आइये हमें खरी खोटी सुनाइए --

कविता रावत ने कहा…

शांति दूत सा सुन्दर प्यारा सफ़ेद फूल ...
बहुत बढ़िया

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Behad Sunder

आशीष अवस्थी ने कहा…

बढ़िया लेखन व रचना , मीनाक्षी जी धन्यवाद !
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति।

मन के - मनके ने कहा…

खूबसूरे खूबसूरत भाव लिए खूबसूरत कामना.
ऐसा ही हो.

abhi ने कहा…


हमारी भी तो यही चाह है :)

दिगम्बर नासवा ने कहा…

चाह दोनों बातों की पूरी हो जरूरी नहीं ...

Saras ने कहा…

दोनों की अहमियत एक दूजे से बनी हुई है ...!