ना लफ़्ज़ खर्च करना तुम
ना लफ़्ज़ खर्च हम करेंगे ---------
ना हर्फ़ खर्च करना तुम
ना हर्फ़ खर्च हम करेंगे --------
नज़र की स्याही से लिखेंगे
तुझे हज़ार चिट्ठियाँ ------
काश कभी ऐसा भी हो कि बिना लफ़्ज़ खर्च किए कोई मन की बात सुन समझ ले. लेकिन कभी हुआ है ऐसा कि हम जो सोचें वैसा ही हो...
बस ख़ामोश बातें हों ...न तुम कुछ कहो , न मैं कुछ कहूँ .... लेकिन बातें खूब हों.... नज़र से नज़र मिले और हज़ारों बातें हो जाएँ....
मासूमियत से भरे सपनों के पीछे भटकना अच्छा लगता है...गूँगा बहरा हो जाने को जी चाहता है...जी चाहता है सब कुछ भूलकर बेज़ुबान कुदरत की खूबसूरती में खो जाएँ ......
फिल्म "बर्फी" का यह गीत बार बार सुनने पर भी दिल नहीं भरता...
काश कभी ऐसा भी हो कि बिना लफ़्ज़ खर्च किए कोई मन की बात सुन समझ ले. लेकिन कभी हुआ है ऐसा कि हम जो सोचें वैसा ही हो...
मासूमियत से भरे सपनों के पीछे भटकना अच्छा लगता है...गूँगा बहरा हो जाने को जी चाहता है...जी चाहता है सब कुछ भूलकर बेज़ुबान कुदरत की खूबसूरती में खो जाएँ ......
फिल्म "बर्फी" का यह गीत बार बार सुनने पर भी दिल नहीं भरता...
5 टिप्पणियां:
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ...
लफ्ज़ खर्च किये बिना जिसको सुनाना चाहो वो समझ जाता है ... बस शब्द दिल से निकले होने चाहियें ...
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
सच में ....
Nice post thanks for sharing
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