Translate

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

सूरज, साया और सैर

नियमित सैर के लिए किसी गंभीर बीमारी का होना ज़रूरी नहीं है...बस यूँ ही नियम से चलने की कोशिश है एक. आजकल सुबह सवेरे भी निकलते हैं सैर के लिए... सुबह सवेरे मतलब साढ़े सात आठ बजे......दोष हमारा नहीं...सूरज का है..(दूसरों पर दोष डालना आसान है सो कह रहे हैं) ... उसे ही जल्दी रहती है निकलने की... जाने क्यों कभी आलस नहीं करता.... निकलता भी है तो खूब गर्मजोशी से .... हम भी उसी गर्मजोशी से उसका स्वागत करते हुए सैर करते हैं लेकिन साया बेचारा....बस उसे देखा और कुछ लिखा दिया कविता जैसा..... 

सुबह सवेरे सूरज निकला
मैं और मेरा साया भी निकला
सूरज पीछे....साया आगे
हम सब मिल कर सैर को भागे
देखूँ साए को आगे चलता
पीछे मेरे सूरज है चलता
ज्यों ज्यों मेरी दिशा बदलती
त्यों त्यों साए की छाया चलती
आगे सूरज पीछे साया
पीछे सूरज आगे साया
आते जाते पेड़ों की छाया में
छिपता उनमें मेरा साया
आगे पीछे मेरे होता
सूरज की गर्मी से बचता
लुकाछिपी का खेल था न्यारा
साया मेरा मुझको प्यारा 


14 टिप्‍पणियां:

रेखा ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सुंदर!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

खूब .... गहरी अभिव्यक्ति

रश्मि प्रभा... ने कहा…

meri aankhon ke aage yah aankhmichauli jivant ho uthi

विभूति" ने कहा…

बहुत ही सुंदर....

vidhya ने कहा…

sundar

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

bahut khub

Sanjay Kareer ने कहा…

कविता तो खूबसूरत है लेकिन ... साए की छाया ... ये कुछ समझ नहीं आया :)

rashmi ravija ने कहा…

सुन्दर सैर के साथ सुन्दर कविता...

मीनाक्षी ने कहा…

@संजय..'साए की छाया चलती' अतीत में ले गई जब तपते रेगिस्तान की धूप से बचने के लिए मेरे साए की छाया में बच्चे कभी कभी चलते हुए स्कूल से घर पैदल ही पहुँचते...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

wah sair, saya, suraj aur chhaya kya baat hai. sunder srijan ho gaya ye to.

badhayi.

Asha Lata Saxena ने कहा…

एक अच्छी पोस्ट बधाई |
आशा

abhi ने कहा…

कविता तो बहुत ही स्वीट है :)

लेकिन मेरे साथ थोड़ी दिक्कत ये है की मैं सुबह वाक पे पांच-छः के बीच निकलता हूँ, छः से देरी हो जाए तो नहीं निकलता.. :P

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सूरज और साये का खेल ... मज़ा आ गया इस लाजवाब रचना पढ़ के ... जीवन के इस खेल को पढ़ के ...