आजकल घर की सफ़ाई का अभियान चल रहा है... दोनों बेटों की मदद से रुक रुक कर पूरे घर की सफ़ाई की जा रही है... दो तीन दिन में घर को रंग रोगन से नया रूप भी दे दिया जाएगा... इस बीच जाने क्या हुआ कि आँखें स्क्रीन पर टिक ही नहीं पातीं.... काली चाय को ठंडा करके उससे बार बार आँखें धोकर कभी काम तो कभी यहाँ उर्जा पाने आ बैठती हूँ कुछ पल के लिए लेकिन फिर लिखना पढ़ना न के बराबर ही है.....बस सैर को नियमित रखने की कोशिश जारी है .........
सैर के लिए तन्हा
रात के पहले पहर निकलती हूँ
गर्मी के मौसम में
लाल ईंटों की पगडंडियों पर चलती हूँ
जो लगती हैं धरती की माँग जैसी
लेकिन बलखाती सी..
हरयाली दूब के आँचल पर
टंके हैं छोटे बड़े पेड़ पौधे बूटेदार
कभी वही लगते धरा के पहरेदार
सीना ताने रक्षक से खड़े हुए
कर्तव्य पालन के भाव से भरे हुए...
उमस घनेरी, घनघोर अन्धेरा
अजब उदासी ने आ घेरा
फिर भी पग पग बढ़ती जाऊँ
आस के जुगनू पथ में पाऊँ
मन्द मन्द मुस्काते फूल
खिले हुए महकते फूल
कहते पथ पर बढ़ते जाओ
गर्म हवा को गले लगाओ !!
12 टिप्पणियां:
वाह बहुत ही सुन्दर
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
वाह. बहुत सुंदर.
आपकी रचना आज तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
http://tetalaa.blogspot.com/
सैर इतनी सुखद हो सकती है कभी सोचा नहीं था :) अच्छा लगा ....
क्या बात है..सैर के साथ-साथ कविता भी...
उदासी के बीच आशा के जुगनू...बहुत सुन्दर
अब नियमित सैर के साथ नियमित कविता का भी इंतज़ार रहेगा.
सैर नियमित रखियेगा ... अच्छी रचनाएँ मिल जाएँगी पढने को ...सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत ही सुंदर रचना सैर के साथ...
Nihayat khoobsoorat rachana!
bahut badiya abhivykati....
आप सैर करती रहे...नयी रचनाएँ लिखती रहे
सैर के साथ -साथ रचना अच्छी बन पड़ी है ..ऐसे ही सैर करते हुए लिखते रहिए
कल 03/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
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