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शनिवार, 19 मार्च 2011

विदेश में बसना : चाहत या ज़रूरत









‘’बाऊजी, अब पूरी तरह से चारपाई पर हैं, उनका सब काम बिस्तर पर ही होता है. माताजी जल्दी ही थक जाती हैं. उनका चश्मा भी टूट गया है. बड़का शरारती होता जा रहा है. मेरी तो बिल्कुल नहीं सुनता और बाऊजी के बार बार बुलाने पर ही उनकी बात सुनता है. छोटे की तबियत वैसी ही है, धन्नीराम कम्पाउडर की दवाई से भी कोई असर नहीं हो रहा... आप बस जल्दी से आ जाइए... रूखा सूखा खाकर ही पेट भर लेंगे लेकिन रहेंगे तो एक साथ “

अमर अपनी पत्नी सरोज का ख़त पढ़ कर अतीत की यादों में डूब गया... एक बार पहले भी वह नौकरी छोड़ कर घर वापिस गया था.... दो साल तक कोई नौकरी नहीं मिली थी.... बैंक बैलेंस खत्म होता जा रहा था मुट्ठी से जैसे रेत खिसकती जाती हो.... सब रिश्तेदार जो मदद करने की बात करते थे सब मुँह मोड़ चुके थे.... व्यापार करने की सोची तो हिस्सेदार ने 50,000 लिखा पढ़ी से पहले ही हजम कर लिए थे.... गैस ऐजेंसी लेने की सोची थी तो 10,000 रिश्वत देकर भी काम नहीं बना था.... मजबूरन फिर वापिस आना पड़ा था.

“मेरी प्यारी बन्नो, खुशखबरी मिली कि मुन्नी अपने ससुराल में खुश है, वह अपना मायका भूल गई है...यह तो बड़ी खुशी की बात है... तसल्ली हुई ... अपने बेटे को भी अच्छी नौकरी मिल गई है..अपनी मनपसन्द लड़की से उसने शादी भी कर ली....चलो कोई बात नहीं....बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है.... दोनों खुश रहें बस यही दुआ है. सुना है उसे कम्पनी की तरफ से घर और कार भी मिली है....

अब हम दोनों के बनवास के दिन पूरे हो गए....जैसा तुम चाहती थी....हमारा सपनों का घर भी बन कर तैयार हो गया है...उम्मीद है कि तुमने अपनी पसन्द से उसे सजा भी लिया होगा...”

एक महीने बाद लाल सिंह को खबर मिलती है कि सब कुछ बेच बाच कर बेटा बहू इंगलैंड चले गए..माँ से धोखे से काग़ज़ों पर साइन करवा लिए थे... माँ को गाँव बुआ के पास छोड़ गया...विधवा बुआ जिसकी कोई औलाद नहीं थी ,,,वह खुद ही खस्ताहाल में थी... दोनों औरतें अपनी अपनी किस्मत पर रोतीं दिन गुज़ार रही थी... लाल सिंह को अब नए सिरे से पैसा जमा करने हैं...गाँव के उस घर की कच्ची छत की जगह पक्का लंटर डलवाना है...इस्तीफा देने की बात उसे न चाहते हुए भी भुलानी पड़ी...

परिवार की ज़रूरते इतनी होती हैं कि न चाहते हुए भी अपने घर परिवार से दूर होना पड़ता है... अपने देश में 5000 रुपए महीना की कमाई अगर विदेश में 40,000 रुपए के रूप में मिले तो ज़रूरतमन्द विदेश का ही रुख करेगा...

ऐसी हज़ारों कहानियों का ठिकाना साउदी अरब ही नहीं है...शायद हर वह देश है जहाँ लोग आ बसे हैं अलग अलग कारणों से.... यहाँ सबकी नहीं तो अधिकतर लोगों की यही कहानी है.....’’पेट जो कराए सो थोड़ा”

कुछ लोग गलती से आ बसे तो फिर बुरी तरह से जकड़े गए... घर परिवार होने के कारण खतरा मोल लेने का जोख़िम न उठा पाए.... चुपचाप किस्मत का लिखा मान कर कोल्हू के बैल की तरह परिवार को पालने पोसने में लगे रहे... पैसा कमाना कहीं भी आसान नहीं ... चाहे देश हो या विदेश .... मेहनत मशकत तो हर जगह एक जैसी है.... थोड़ी बहुत सुख सुविधाएँ हर देश के रहन सहन के स्तर के कारण मिल पाती हैं....

जहाँ तक सुख सुविधाओं की लालसा है....उसका कोई पार नहीं...जब भी गाँव जाती हूँ तो वहाँ के लोगों की नज़र शहर की ओर होती है...स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे इसी इंतज़ार में अपनी पढ़ाई खत्म करने के लिए बेसब्र हुए जाते हैं कि कब वे शहर जा पाएँगे क्योंकि उनके मातापिता की भी यही चाहत होती है.... शहर में आकर ऐसे परिवार दिखते हैं जो बच्चों को विदेश भेजने की तैयारी में जुटे हैं....बुढ़ापे में चाहे वही फिर अपने बच्चों को कोसने से भी नहीं हिचकते..... यहाँ विदेश में दिखता है कि ज़्यादातर लोगों में दुनिया के अलग अलग देशों में जाने की होड़ सी लगी है.....

विदेश में रहना किसी के लिए ज़रूरत हो सकती है...किसी के लिए चाहत हो सकती है..... इस बात को भी नहीं नकार सकते कि किस्मत का भी कुछ न कुछ हाथ तो होता ही है.....कुछ लोग न चाह कर भी विदेश में रह रहे हैं...और कुछ चाह कर भी विदेश नहीं जा पाते...इसे शायद “अन्न जल की माया” कहते हैं.....

ऐसे में अगर कोई यह कह दे कि आपको तो अपने देश से प्रेम ही नहीं है, विदेश में ठाठ से रहिए तो दिल दर्द से सुलगने लगता है...!

8 टिप्‍पणियां:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

NRI का उल्टा RNI रेज़ीडेंट नान इंडियन है, जिनकी संख्या भारत में कम भी नहीं. इन्हें ग़लत फ़हमी रहती है कि विदेश में तो बस कुछ किया न धरा फिर भी बल्ले ही बल्ले... इन्हे बढ़ावा, भारत आने वाले कुछ NRI भी देते हैं, विदेशी नखरे दिखा-दिखा कर :)

Manoj K ने कहा…

ठीक कहा आपने.. पेट कराये जो थोड़ा..

kshama ने कहा…

Holi bahut mubarak ho!

केवल राम ने कहा…

आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें ..

संजय भास्‍कर ने कहा…

रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|

डॉ .अनुराग ने कहा…

दिल से लिखा है .....रोटी की आस बड़ा दूर तक का सफ़र करवा देती है ...

rashmi ravija ने कहा…

मन भर आया पढ़कर....आपका लिखा ,एक-एक शब्द सच है...अपने घर-परिवार... अपनी मिटटी...यहाँ की आबो-हवा से दूर...बस पैसे कमाने की मशीन बन कर रह जाते हैं कई लोग...और परिवार वाले उनके पैसों पर ऐश करते हैं.

पर कुछ गिने-चुने ऐसे भी लोग हैं.....यहाँ सब कुछ होते हुए भी...थोड़े और की ख्वाहिश में अपने वतन से दूर चले जाते हैं.

Sanjay Karere ने कहा…

विदेश में रहने का सही अनुभव झलक रहा है ... आपको वापस आया देख कर प्रसन्‍नता हुई। उम्‍मीद है अब निरंतर लिखेंगीं।