धरती माँ के बेलबूटेदार हरयाले आँचल की अपनी ही सुन्दरता है....खुश्बूदार रंगबिरंगे महकते फूल, तने खड़े छायादार पेड़, आँखों को सुकून देती हरी भरी नर्म दूब धरती के आँचल की निराली छटा है....
अरब पहुँचते पहुँचते धरती के आँचल के रूप रंग दोनो ही बदल जाते हैं.. कहीं लाल तो कहीं सफेद कहीं भूरा सा रेतीला रूप मन को लुभाने लगता है....
दूर तक लम्बी काली सड़क बलखाती चोटी सी लगती है... उस पर लहराती रेत सा दुपट्टा सरक सरक जाता.... जिसे इंसान अपने मशीनी हाथ से एक तरफ सरका देता ....
निगाहें क्षितिज के उस छोर तक जाना चाहती हैं जहाँ आसमान रेगिस्तान की गहराई में डूबता दिखाई
बिजली की तारों पर नट जैसे करतब दिखाता चलने लगता.... उधर रेत की नटखट लहरें चक्रवात्त सी हलचल करके सूरज को गिराने की भरपूर कोशिश करतीं.... तो कहीं रेत अपनी झोली फैला कर लपकने को तैयार दिखती.....
दौड़ता कूदता थका सूरज कब उस झोली में आ दुबकता ,,,पता ही नहीं चलता...उसी पल दिशाएँ भी शांत सी हो जाती,,, हवा भी थम जाती जैसे रुक रुक कर धीमे धीमे साँस ले रही हो... हम भी अपने सफ़र के खत्म होने और मज़िल तक पहुँचने का इंतज़ार करते करते निढाल से हो जाते लेकिन सहरा में संगीत के मधुर सुर एक नई उर्जा शक्ति देने लगे....!!
15 टिप्पणियां:
रेगिस्तान हमेशा से ही मुझे आकर्षित करता रहा है किन्तु आज तक कभी रेगिस्तान को देखने का मौका नहीं मिला । जीवन के दूसरे पक्ष को दिखाता है रेगिस्तान । आपके द्वारा दिये गये चित्र भी सुंदर हैं ।
रेगिस्तान का चित्रात्मक शैळी में वर्णन..!
आपने चित्र और शब्द से जादुई संसार रच डाला है...बहुत आनंद आया पढ़ कर...आपके लेखन का कोई मुकाबला नहीं...
नीरज
रेगिस्तान का अपना तिलस्म है!
रेगिस्तान का जादू आपने यहाँ बिखेर दिया ..:)
फूल टैंक और शब्दों का जादू
उपर से सूरज का ताप बेकाबू
नीचे रेत यानी तपती हुई बालू
जिसकी याद दिलाती है।
संगीत भाषा का मोहताज नहीं..यह सिद्ध करता गीत और सभी चित्रांकन बहुत पसंद आये. चित्र के साथ गद्य प्रवाहमय रहा और चित्रों को जीवंत करता रहा. बधाई.
bada hi sundar shabdchitra kheencha hai aapne...
रंग बिरंगी दुनिया !
रेगिस्तान का सचित्र जीवंत चित्रण . आभार.
mera bachapan to registan me hi gujara hai isliye is rachanaa se bahut si yaade taaza ho gayi .achchhaa lagaa padhkar .
बेहद प्रभावी पोस्ट
साउदी के तपते रेगिस्तान को भी आपने अपनी लेखनी से शीतलता प्रदान कर दी है............सुन्दर चित्रों के साथ खूबसूरत छटा बिखेर दी है आपने...........
सुँदर आलेख की बधाई मीनाक्षी जी ..सँगीत भी मनभावन लगा
- लावण्या
चित्र और शब्द-चित्र...अद्भुत सामंजस्य मैम..
किंतु मैं शायद कभी नहीं पसंद कर पाऊँ रेगिस्तान को...कई कड़वी यादें जुड़ी हैं
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