दुबई से निकलते वक्त हमने पति महोदय से कहा कि साउदी के बॉर्डर तक हम ड्राइव करते हैं...लेकिन मना करते हुए खुद ड्राइव करने लगे.... हमने भी बहस न करते हुए चुप रहना बेहतर समझा और दूसरी सीट पर जा बैठे... मन ही मन सोचने लगे कि यह भी एक तरह से ताकत का खेल है......हम क्यों चुप रह गए..फिर सोचा..मौन में भी ताकत होती है.... ज़रा देखे हमारा 'साइलैंस गोल्ड' का काम करता है कि नही.... उधर भी शायद मन में कुछ ऐसी हलचल हो रही थी ......
शहर से बाहर निकलते ही पैट्रोल डलवाने के बाद अचानक कार की चाबी हमें दे दी .....सच में साइलैंस गोल्ड होता है...इस बात को आप भी आजमाइए....
फौरन पति की ताकतवर कार की ड्राइविंग सीट पर आ बैठे..... ताकतवर कार इसलिए कि हमारी कार का इंजन कम पावर का है.... 1.3 सीसी...... और इधर 3.4 ....
हल्का सा पैर दबाते ही 140 की स्पीड..... 140...... 150....160...... हमारा इस तरह से ताकत के नशे में झूमना...... कुछ पल के लिए पति और बेटा दोनो विचलित हुए फिर हमारी विजयी मुस्कान का आनन्द लेने लगे... ......
बेटे ने तो कुछ नही कहा लेकिन विजय धीरे से बोल उठे .... 150 काफी है.... डस्ट स्ट्रोम कभी भी आ सकता था...हमारी मुस्कान थोड़ी फीकी हो गई..... लेकिन कहा मानकर फौरन स्पीड कम कर दी...
उस वक्त जो गाड़ी भगाने का आनन्द आया उसका बयान नहीं कर सकते..... ताकत का नशा ... अपने वजूद के होने का एहसास एक नई उर्जा भर देती है....यही उर्जा शक्ति हमें अपने आपको किसी से भी कमत्तर समझने नहीं देती...
11 टिप्पणियां:
ताकत का नशा होता तो तेज़ है लेकिन बहकने में मुश्किलें बहुत हैं । मसलन टिकिट मिलने की ।
यहाँ भारत की सड़कों पर हमें तो श्रीमती जी 100 से ऊपर जाते ही टोकने लगती हैं।
बहुत अच्छी रही ये सवारी भी मीनाक्षी जी
- लावण्या
अपने वजूद के बिना इंसान की कोई पहचान नहीं होती है, और अपनी पहचान के इंसान का वजूद नहीं होता है।
एक नजर इधर भी देखें
अपनी पहचान खुद बनाएं...
Bilkul, isiliye jeevan men kuchh kaam apne wajood ke liye bhi karte rahna chaahiye.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
chahe koi kuch bhi khe lekin jis pal apne urja pai vohi jeevan hai .
ये ताकत का नशा था या गति का या फिर आत्म-विश्वास का कि हाँ मेरा इतना अच्छा नियंत्रण है स्टेयरिंग पर...????
yes, speed thrills
आपका मेल पढ़ कर वापस आया लिंक पढ़ने...पढ़ा, किंतु वहाँ कुछ कहने का साहस नहीं हुआ।
बस विस्मित हूँ इन अद्भुत सोचों पर...
वाह मीनू दी...डेढ़ सौ पर फर्राटा? क्या बात है...
बढ़िया सार्थक पोस्ट। संदेश के साथ ....
Its a well known fact that "Silence has its own language". And its proved again. besides that what I liked most is the way you expressed the sweet NOK-JHONK
सुन्दर, सारगर्भित और गतिमान पोस्ट!
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