महीनो से ब्लॉग बैराग ले कर उचटते मन को सही राह दिखाने में ब्लॉग जगत के कई मित्रों ने कोई कसर नही छोड़ी... आज अनायास ही मन में लहर उठी, शायद संगीत सुरा का सुरूर ..... चिट्ठाचर्चा पढ़ने लगे और मन में आया कि टिप्पणी देने की बजाए एक पोस्ट ही लिख दी जाए....
"तात्कालिक अवसाद तो व्यस्त होकर दूर किया जा सकता है। लेकिन जब अवसाद का दौर लम्बा चलता होगा तो क्या हाल होते होंगे?" इन पंक्तियों को पढ़ कर लगा कि बेहाल मन को कुछ लिखने का काम देकर कुछ देर के लिए व्यस्त क्यो न कर दिया जाए।
अक्सर हम वक्त को खुली हथेली में लेकर ऐसे बैठे रहते हैं कि एक पल भी हाथ से जाने न पाए ... होता यह है कि हमारी आँखों के सामने ही वह भाप बन कर जाने कहाँ गायब हो जाता है।
ज़िन्दगी की आइस पाइस में एक एक दिन जब रेत की तरह हथेली से निकलता जाता है तो लगता है जैसे लाइफ की छुपम छुपाई में हमारा बहुत कुछ गुम हो गया है तब ज़िन्दगी की खूबसूरती का एहसास होता है और उसे पूरे मन से जीने की कोशिश में जुट जाते हैं.... शायद मौत भी उसी खूबसूरती को पाने के लिए ज़िन्दगी के पीछे पीछे साए की तरह लगी रहती है...
चिट्ठाचर्चा का शुक्रिया जिसके माध्यम से पहली बार गौतम जी का पढ़ने का अवसर मिला . ज़िन्दगी से प्यार करने वाले सिपाही मौत को भी अपना ही एक साथी मानते हैं जो बर्फीली सरहद पर नई नवेली दुल्हन के सपने में खोए पूरन को भी बड़ी चतुरता से वापिस ले आते हैं..गौतम जी की भाषा शैली सरल होते हुए भी अपना गहरा असर छोड़ जाती है।
कभी कभी भावों का ऐसा अन्धड़ चलने लगता है जिसमें शब्द सूखे पत्तों जैसे उड़ते उड़ते दूर जा गिरते हैं जहाँ से उन्हें चुनना आसान नहीं लगता है... फिर भी उन्हें चुनने की एक कोशिश ...... !
23 टिप्पणियां:
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
एक चयनिका पोस्ट !
चाहे कैसा भी समय हो ब्लागर को अपने ब्लाग पर अवश्य ही आते रहना चाहिए। दुआ सलाम के बहाने ही सही।
aadarneey meenu didi,
saadar abhivaadan, kya baat bahut udaasee kee baatein kahee aapne , sab theek to hai na , bahut hee sundar post likhee hai aapne hamesha kee tarah , yun hee likhee rahein, aapke tripadamon kee bhaut kamee khaltee hai....
मीनाक्षी जी आपकी पसँद का शुक्रिया और आने का भी ! :-)
बहुत स्नेह के साथ,
- लावण्या
शब्दों का निर्झर बहाने के लिए
एक ही शब्द है-‘आभार’
आप बहुत अच्छा लिखती हैं।
नियमितरूप से लिखती रहें।
यह तो आपने मिनी चिट्ठाचर्चा कर डाली. :) इसे चिट्ठाचर्चा मंडली में आमंत्रण की तरह स्वीकार करने का कष्ट करें.
बहुत बढिया ... जब लिखने का मन न हो तो कुछ पढ लेने से भी कुछ न कुछ लिखा ही जाता है ... अच्छी चिट्ठा चर्चा ही हो गयी है।
waah
सबको प्रणाम...हमारी छोटी सी कोशिश को सराहने का बहुत बहुत शुक्रिया...नियमित होने की कोशिश जारी है.
भावों की आंधी में
भाव उड़ न पाएं
एक पोस्ट में आ समाएं
सार्थक प्रयास है
आप इसे जारी रखिए
चाहे अनियमित ही सही
पर सप्ताह में एक दिन
इतना नियमित तो कर ही लें
अपना पढ़ना
दूसरों के लिए बढ़ना
चयन आप करें
पढ़ें सब
सराहें अब
साथ देगा शब्दों का रब।
ब्लॉग उपवास तोड़ने का आपका तरीका पसन्द आया।
upwaas n tutta to itna achha padhne se vanchit rahte........
मैं सम्मानित हुआ, मैम....
सुखे पत्तों को भी बड़ी तरतीब से चुना है-यह हुनर भी बिरलों के पास ही होता है-आपको बधाई.
वेलकम बैक !
ब्लोगों की अलमारी वाली पोस्ट की याद आ गयी.. आपकी ये स्टाइल मुझे हमेशा पसंद आती है...
और सत्य का दूसरा रूप प्रेम है।
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खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्ट का दुखद अंत
आपकी अनुपस्तिथि बहुत खली....ये महसूस किया...लिखती रहा करें...
नीरज
मैंने तो आज पढ़ा यह बहुत बढ़िया बेहतरीन लगा ..:)
चिट्ठाचर्चा ने इस पोस्ट का रास्ता दिखाया.
ब्लॉग-वैराग से तो मैं भी हाल में लौटा. समझ सकता हूँ कि आप कितना खुश होंगी.
पोस्ट बहुत सुन्दर है.
चिट्ठाचर्चा ने इस पोस्ट का रास्ता दिखाया.
ब्लॉग-वैराग से तो मैं भी हाल में लौटा. समझ सकता हूँ कि आप कितना खुश होंगी.
पोस्ट बहुत सुन्दर है.
देरी के लिए मुआफी ......आमद सुखद है....कभी कभी की बोर्ड से भी उपवास तोडा कीजिये....सच में यहाँ भी आपकी जरुरत है
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