हम यहाँ दमाम में और हमारे नन्हे मुन्ने दोस्त दुबई में.. अर्बुदा का फोन आया कि बच्चे हर रोज़ स्कूल से आते जाते हमारे दरवाज़े की ओर नज़र भर देख कर सोचते हैं कि मीनू आंटी आज भी नही आयी . अपनी मम्मी से सवाल करते हैं तो एक ही जवाब मिलता है कि जल्दी आ जायेंगी..वरुण विद्युत अपने पापा से मिलने गए हैं... पापा से ...? विजय अंकल से ...? हाँ जी ...अर्बुदा के कहने पर थोडी देर हैरान परेशान से होते है .. फ़िर अचानक याद आती है...फ़िर दुबारा एक ही सवाल पूछने लगते हैं.... मीनू आंटी कब वापिस आएगी.... जल्दी आ जायेगी....कहते हुए अर्बुदा अपने घर की ओर बढ़ जाती है तो बच्चे भी पीछे चुपचाप चल पड़ते हैं..
दिन में एक दो बार उनके साथ खेल ना लो , अर्बुदा और हमें बात करने की इजाज़त नही मिलती... बच्चों को शायद प्यार लेना आता है...दिल और दिमाग के तार जल्दी ही प्यार करने वालों से मिल जाते हैं... इला खासकर कभी हमारी गोदी में तो कभी अर्बुदा की गोद में चढ़ जाती है... उसे देखते ही ईशान भी कहाँ पीछे रहता है... बातों का पिटारा उसके पास भी बहुत बड़ा है...(ऐसे ही कहा जाता है कि औरतें ज्यादा बोलती हैं... असल में पुरूष ही ज़्यादा बोलते हैं यह तो एक सर्वे में सिद्ध हो चुका है) ... खैर हम चाय लेकर बैठते हैं, अभी गपशप की सोचते हैं कि बच्चे हमारे पास और अर्बुदा दूर से मुस्कुरा कर बस देखती रह जाती है कि कब उसकी बारी आयेगी...हम दोनों बातचीत करने की कितनी ही बार कोशिश कर लें लेकिन जीत बच्चों की होती है...
खैर हम उनकी तस्वीरों से दिल बहलाते रहे और सोचते रहे काश देशो में कोई सीमा न होती और न कोई कागजी औपचारिकता ....नन्हे मुन्ने दोस्तों को कैसे समझायें कि अब हम बड़े हो गए हैं... बड़े होकर हम सब ऐसे ही बन जाते हैं...!!!!!!!
आप मिलेंगे हमारे दोस्तों से .......!! मिलेंगे तो फ़िर से बचपन में लौटने का मन करेगा .... !!!
10 टिप्पणियां:
खुदा महफूज रखे आपके दोस्तों को....हमारे भी ढेरो दोस्त है ओर अक्सर सन्डे को मेरी गाड़ी की डिक्की में बैठ कर सारे मोहल्ले में शोर मचाते है.....
बच्चे हैं तो बचपना भी साथ है ..सुखद यादे हैं यह
आपने तो बहुत बढ़िया साड़ी पहनाई अपनी नन्ही दोस्त को
सही है, बड़ों ने ही बांटी है दुनियाँ।
soooooooo cute।
आपके दोस्त और आप बस इसी तरह खुश रहें।
बचपन में लौटने का मन तो होता ही रहता है... लेकिन क्या करें !
cho chwwet bahut pyare nanhe dost hai aapke,ye dosti yuhi bani rahe :):),sahi kash hum kabhi bade na hote :):)
बड़े प्यारे दोस्त हैं आपका..साड़ी में तो और मजेदार लग रही है..:)
बच्चे तो हर प्रकार से प्रिय लगते हैं। देखिये न, बचपन का वर्णन कर महाकवि सूरदास कितने प्रिय हैं हम सब को! छोटी बातें - मैया मोरी कबहूं बढ़ैगी चोटी!
आपकी पोस्ट बचपन को सजीव कर गयी।
mil liye aap ke dosto se..bachapan me fir se jaane me bhi koi gurez nahi hame
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