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शनिवार, 21 जून 2008

चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा

घर की सफाई और सफर की तैयारी में लगे हैं..  
अपनी पेकिंग करते करते अज़ीज़ नाजा की एक कव्वाली सुन रहें हैं...
जो हमें बहुत अच्छी लगती है ....
दरअसल इसके बोल तो बहुत पहले ही लिख कर रखे थे...
लेकिन कभी मौका ही नही मिला कि पोस्ट बनाई जाए...
आज काम के बाद के आराम के पलों में वक्त हाथ में आया तो पोस्ट पब्लिश कर दी....
सोचा हम ही क्यों आप भी लुत्फ़ लें....





हुए नामवर बेनिशान कैसे कैसे
ज़मीन खा गई नौजवान कैसे कैसे

आज जवानी पर इतराने वाले कल पछताएगा
3
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  2 
ढल जाएगा, ढल जाएगा - 2 
 
तू यहाँ मुसाफ़िर है , यह सराय फानी है
चार रोज़ की मेहमाँ तेरी ज़िन्दगानी है 
जन-ज़मीन ज़र ज़ेवर कुछ ना साथ जाएगा
खाली हाथ आए है खाली हाथ जाएगा
जान कर भी अंजान बन रहा है दीवाने
अपनी उम्रेफ़ानी पर तन रहा है दीवाने
इस कदर तू खोया है इस जहाँ के मेले
तू खुदा को भूला है फँस के इस झमेले में
आज तक यह देखा है पाने वाला खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे रोता है
मिटने वाली दुनिया का एतबार करता है
क्या समझ के तू आखिर इससे प्यार करता है
अपनी अपनी फिक्रों में जो भी है वो उलझा है
जो भी है वो उलझा है
ज़िन्दगी हक़ीकत में क्या है कौन समझा है
क्या है कौन समझा है
आज समझ ले 
आज समझ ले कल यह मौका हाथ ना तेरे आएगा
ओ गफलत की नींद में सोने वाले धोखा खाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  2 
ढल जाएगा  2 
 
मौत ने ज़माने को यह समाँ दिखा डाला
कैसे कैसे उस ग़म को ख़ाक़ में मिला डाला 
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं 
जंग ओ जू वो पोरस है और ना उसके हाथी हैं 
कल जो तनके चलते थे अपनी शान ओ शौकत पर 
शमा तक नहीं जलती आज उनकी क़ुरबत पर 
अदना हो या आला हो सबको लौट जाना है 
सबको लौट जाना है  2
 
मुफलिसोंतवन्दर का कब्र ही ठिकाना है 
कब्र ही ठिकाना है  2
जैसी करनी 
जैसी करनी वैसी भरनी आज किया कल पाएगा
सिर को उठाकर चलने वाले एक दिन ठोकर खाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  3
ढल जाएगा, ढल जाएगा - 2 
 
मौत सबको आनी है कौन इससे छूटा है
तू फ़ना नही होगा यह ख्याल झूठा है
साँस टूटते ही सब रिश्ते टूट जाएँगे
बाप माँ बहन बीवी बच्चे छूट जाएँगे
तेरे जितने है भाई वक्त का चलन देंगे
छीन कर तेरी दौलत दो ही गज़ कफ़न देगे
जिनको अपना कहता है कब ये तेरे साथी है 
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बाराती है
लाके कब्र में तुझको उल्टा पाके डालेंगे
अपने हाथों से तेरे मुहँ पे खाक़ डालेंगे
तेरी सारी उल्फत को खाक में मिला देगे
तेरे चाहने वाले कल तुझे भुला देंगे
इसलिए यह कहता हूँ खूब सोच ले दिल में
क्यों फँसाए बैठा है जान अपनी मुश्किल में
कर गुनाहो से तौबा आगे बस सँभल जाए
आगे बस सँभल जाए  2
दम का क्या भरोसा है जान कब निकल जाए 
जान कब निकल जाए 
मुट्ठी बाँध के आनेवाले 
मुट्ठी बाँध के आनेवाले हाथ पसारे जाएगा
धन दौलत जागीर से तूने क्या पाया क्या पाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  2 
ढल जाएगा, ढल जाएगा  8

11 टिप्‍पणियां:

अभिनव आदित्य ने कहा…

meenakshi ji,

ravivar ko daftar mein baithe-baithe agar itani sundar kavvali sunne ko mil jaye tokya kahne...
thanks for this excellent kavvali...
One thing more, Naza Sahab to bahut jaldi ham logon ko chhor ke chale gaye. Unke bhai, jo khud ek achchhe kavval hain, aaj kal allahabad mein muflisi ke daur mein je rahe hain.


http://hi.girgit.chitthajagat.in/baharhaal.blogspot.com/

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुंदर लगी यह कव्वाली ...बहुत दिनों बाद कोई कव्वाली सुनी अच्छा लगा शुक्रिया :)

पारुल "पुखराज" ने कहा…

सब ठाठ धरा रह जायेगा…जब छो,ड चलेगा बंजारा-बहुत पुरानी और नायाब ्चीज़ सुनवा दी दीदी-आभार

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अनित्य का ध्यान दिलाने में यह क्लासिकल विधायें - जैसे कव्वाली या बिदेसिया बहुत सटीक हैं।
अच्छा ध्यान लगता है इस गायन को सुनने में।

बेनामी ने कहा…

sundar kvvali ke liye aabhar.

अमिताभ मीत ने कहा…

वाह ! क्या बात है. बार बार सुना. मज़ा आ गया. बहुत बहुत शुक्रिया.

बेनामी ने कहा…

तू यहाँ मुसाफ़िर है , यह सराय फानी हैचार रोज़ की मेहमाँ तेरी ज़िन्दगानी है जन-ज़मीन ज़र ज़ेवर कुछ ना साथ जाएगाखाली हाथ आए है खाली हाथ जाएगा
bahut hi sundar,man khush ho gaya

Udan Tashtari ने कहा…

बड़ी मेहनत की है जी हमरी पसंदीदा कव्वाली परोसने में, बहुत बहुत आभार.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

मीनाक्षी जी,
ये कव्वाली हमारे घर के पास बसी मछुआरोँ की बस्ती हुआ करती थी वहाँ जोर जोर से लाउड स्पीकर पे साल के सारे धार्मिक उत्सवोँ पे सुनायी देती थी चाहे वो गणपति होँ
या मुहर्रम
या शिवरात्री --
आज आपने सुनवायी !
फिर वे दिन याद आ गये..
सँमँदर की तरह उठते भावोँ के साथ,
उन्हीँ के जैसे
.. स स्नेह,
-लावण्या

इरफ़ान ने कहा…

बहुत ख़ूब.

mamta ने कहा…

सबने संडे को इस कव्वाली का लुत्फ़ उठाया और हम आज इक लुत्फ़ उठा रहे है।
शुक्रिया मीनाक्षी जी इस बेहतरीन पेशकश के लिए।