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रविवार, 29 जून 2008

सागर में डूबता सूरज ...















सागर में डूबते सूरज को
वसुधा ने अपनी उंगली से
आकाश के माथे पर सजा दिया...
साँवला सलोना रूप और निखार दिया

यह देख
दिशाएँ मन्द मन्द मुस्काने लगीं
सागर लहरें स्तब्ध सी
नभ का रूप निहारने लगीं...
गगन के गालों पर लज्जा की लाली छाई
सागर की आँखों में जब अपने रूप की छवि पाई ....

स्नेहिल सन्ध्या दूर खड़ी सकुचाई
सूरज की बिन्दिया पाने को थी अकुलाई ...
सोचा उसने
धीरे धीरे नई नवेली निशा दुल्हन सी आएगी
अपने आँचल में चाँद सितारे भर लाएगी..
फूलों का पलना प्यार से पवन झुलाएगी
संग में बैठी वसुधा को भी महका जाएगी..

बुधवार, 25 जून 2008

हमारे नन्हे मुन्ने दोस्त......

हम यहाँ दमाम में और हमारे नन्हे मुन्ने दोस्त दुबई में.. अर्बुदा का फोन आया कि बच्चे हर रोज़ स्कूल से आते जाते हमारे दरवाज़े की ओर नज़र भर देख कर सोचते हैं कि मीनू आंटी आज भी नही आयी . अपनी मम्मी से सवाल करते हैं तो एक ही जवाब मिलता है कि जल्दी आ जायेंगी..वरुण विद्युत अपने पापा से मिलने गए हैं... पापा से ...? विजय अंकल से ...? हाँ जी ...अर्बुदा के कहने पर थोडी देर हैरान परेशान से होते है .. फ़िर अचानक याद आती है...फ़िर दुबारा एक ही सवाल पूछने लगते हैं.... मीनू आंटी कब वापिस आएगी.... जल्दी आ जायेगी....कहते हुए अर्बुदा अपने घर की ओर बढ़ जाती है तो बच्चे भी पीछे चुपचाप चल पड़ते हैं..
दिन में एक दो बार उनके साथ खेल ना लो , अर्बुदा और हमें बात करने की इजाज़त नही मिलती... बच्चों को शायद प्यार लेना आता है...दिल और दिमाग के तार जल्दी ही प्यार करने वालों से मिल जाते हैं... इला खासकर कभी हमारी गोदी में तो कभी अर्बुदा की गोद में चढ़ जाती है... उसे देखते ही ईशान भी कहाँ पीछे रहता है... बातों का पिटारा उसके पास भी बहुत बड़ा है...(ऐसे ही कहा जाता है कि औरतें ज्यादा बोलती हैं... असल में पुरूष ही ज़्यादा बोलते हैं यह तो एक सर्वे में सिद्ध हो चुका है) ... खैर हम चाय लेकर बैठते हैं, अभी गपशप की सोचते हैं कि बच्चे हमारे पास और अर्बुदा दूर से मुस्कुरा कर बस देखती रह जाती है कि कब उसकी बारी आयेगी...हम दोनों बातचीत करने की कितनी ही बार कोशिश कर लें लेकिन जीत बच्चों की होती है...
खैर हम उनकी तस्वीरों से दिल बहलाते रहे और सोचते रहे काश देशो में कोई सीमा न होती और न कोई कागजी औपचारिकता ....नन्हे मुन्ने दोस्तों को कैसे समझायें कि अब हम बड़े हो गए हैं... बड़े होकर हम सब ऐसे ही बन जाते हैं...!!!!!!!

आप मिलेंगे हमारे दोस्तों से .......!! मिलेंगे तो फ़िर से बचपन में लौटने का मन करेगा .... !!!



शनिवार, 21 जून 2008

चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा

घर की सफाई और सफर की तैयारी में लगे हैं..  
अपनी पेकिंग करते करते अज़ीज़ नाजा की एक कव्वाली सुन रहें हैं...
जो हमें बहुत अच्छी लगती है ....
दरअसल इसके बोल तो बहुत पहले ही लिख कर रखे थे...
लेकिन कभी मौका ही नही मिला कि पोस्ट बनाई जाए...
आज काम के बाद के आराम के पलों में वक्त हाथ में आया तो पोस्ट पब्लिश कर दी....
सोचा हम ही क्यों आप भी लुत्फ़ लें....





हुए नामवर बेनिशान कैसे कैसे
ज़मीन खा गई नौजवान कैसे कैसे

आज जवानी पर इतराने वाले कल पछताएगा
3
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  2 
ढल जाएगा, ढल जाएगा - 2 
 
तू यहाँ मुसाफ़िर है , यह सराय फानी है
चार रोज़ की मेहमाँ तेरी ज़िन्दगानी है 
जन-ज़मीन ज़र ज़ेवर कुछ ना साथ जाएगा
खाली हाथ आए है खाली हाथ जाएगा
जान कर भी अंजान बन रहा है दीवाने
अपनी उम्रेफ़ानी पर तन रहा है दीवाने
इस कदर तू खोया है इस जहाँ के मेले
तू खुदा को भूला है फँस के इस झमेले में
आज तक यह देखा है पाने वाला खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे रोता है
मिटने वाली दुनिया का एतबार करता है
क्या समझ के तू आखिर इससे प्यार करता है
अपनी अपनी फिक्रों में जो भी है वो उलझा है
जो भी है वो उलझा है
ज़िन्दगी हक़ीकत में क्या है कौन समझा है
क्या है कौन समझा है
आज समझ ले 
आज समझ ले कल यह मौका हाथ ना तेरे आएगा
ओ गफलत की नींद में सोने वाले धोखा खाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  2 
ढल जाएगा  2 
 
मौत ने ज़माने को यह समाँ दिखा डाला
कैसे कैसे उस ग़म को ख़ाक़ में मिला डाला 
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं 
जंग ओ जू वो पोरस है और ना उसके हाथी हैं 
कल जो तनके चलते थे अपनी शान ओ शौकत पर 
शमा तक नहीं जलती आज उनकी क़ुरबत पर 
अदना हो या आला हो सबको लौट जाना है 
सबको लौट जाना है  2
 
मुफलिसोंतवन्दर का कब्र ही ठिकाना है 
कब्र ही ठिकाना है  2
जैसी करनी 
जैसी करनी वैसी भरनी आज किया कल पाएगा
सिर को उठाकर चलने वाले एक दिन ठोकर खाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  3
ढल जाएगा, ढल जाएगा - 2 
 
मौत सबको आनी है कौन इससे छूटा है
तू फ़ना नही होगा यह ख्याल झूठा है
साँस टूटते ही सब रिश्ते टूट जाएँगे
बाप माँ बहन बीवी बच्चे छूट जाएँगे
तेरे जितने है भाई वक्त का चलन देंगे
छीन कर तेरी दौलत दो ही गज़ कफ़न देगे
जिनको अपना कहता है कब ये तेरे साथी है 
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बाराती है
लाके कब्र में तुझको उल्टा पाके डालेंगे
अपने हाथों से तेरे मुहँ पे खाक़ डालेंगे
तेरी सारी उल्फत को खाक में मिला देगे
तेरे चाहने वाले कल तुझे भुला देंगे
इसलिए यह कहता हूँ खूब सोच ले दिल में
क्यों फँसाए बैठा है जान अपनी मुश्किल में
कर गुनाहो से तौबा आगे बस सँभल जाए
आगे बस सँभल जाए  2
दम का क्या भरोसा है जान कब निकल जाए 
जान कब निकल जाए 
मुट्ठी बाँध के आनेवाले 
मुट्ठी बाँध के आनेवाले हाथ पसारे जाएगा
धन दौलत जागीर से तूने क्या पाया क्या पाएगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा  2 
ढल जाएगा, ढल जाएगा  8

मंगलवार, 17 जून 2008

बंद कमरे की एक छोटी सी खिड़की ...!

कई दिनों से दमाम में हूँ , दोनों बेटे और हम घर में रहते हैं...नया शहर होने के कारण कोई मित्र भी नही... हाँ पति के सहकर्मी बार बार कहते हैं कि अपनी पत्नी को कभी भी उनके यहाँ भेज दें… साहब फिलस्तीनी हैं और पाँच बेटियों के पिता हैं सो इशारे में ही कह देते हैं बेटे नही जा सकते. बस यही सोच कर हमारा जाना टल रहा है... अब घर में वक्त गुजारने के लिए किताबें और इंटरनेट या फ़िर अतीत की दुनिया में यादों के साथ.... कल पुरानी तस्वीरे निकाल ली और बस दिन कैसे गुज़रा पता ही नही चला....
२० साल एक ऐसे समाज में गुज़रे जिसकी मानसिकता ने नारीवाद और नारी सशक्तिकरण की सोच को बेमानी माना... यह अनुभव हुआ कल रात नारी के लिए एक पोस्ट लिखते समय ... यहाँ सिर्फ़ ५ % औरतें ही काम के लिए घर से बाहर जाती हैं लेकिन घर से बाहर निकलने के लिए कोई न कोई साथ हो , इसका ध्यान रखा जाता है... १०-१२ साल की लड़की बुरका पहनना शुरू कर देती है... लेकिन बुरका पहन कर भी कुछ जगह ऐसी हैं जहाँ औरतों का जाना मना है जैसे कि वीडियो शॉप, नाई की दुकान , इसी तरह जहाँ पुरूष अधिकतर देखें जायें वहां मतुआ पुलिस आकर देखती है... रेस्तरां में फेमिली सेक्शन बने हैं , जिनके अन्दर पति और बच्चो के साथ ही बैठ सकती हैं ...

वोट देने का अधिकार तो पुरुषो को ही नही है तो औरतों की बात ही नही है फ़िर भी उनकी उम्मीद कायम है कि राजनीति में उन्हें भी शामिल किया जाएगा. किंग फैसल ने जब लड़कियों को शिक्षा देने का ऐलान किया तो इसके खिलाफ धरना देने वालों को हटाने के लिए किंग को सेना भेजनी पडी थी... आज शिक्षा पाने का अधिकार मिलते ही साउदी औरत पुरूष से आगे निकल गयी... किसी भी देश के शिक्षा संस्थान के आंकडे देखें.. लडकियां शिक्षा के क्षेत्र में लड़कों से हमेशा आगे रही हैं .... यहाँ भी ऐसा ही है... सामाजिक जीवन में हलचल इसी कारण से शुरू हो जाती है ... पुरूष इस हार को सहन नही कर पाता, कही कमज़ोर पड़ जाता है तो कहीं तिलमिला कर ग़लत रस्ते पर भटक जाता है. आजकल साउदी में तलाक का रेट इतना बढ़ गया है कि सरकार और समाज दोनों ही चिंतित हैं...

अभिव्यक्ति की आजादी जो किसी के लिए भी सबसे अधिक महत्त्व रखती है , उसे न पाकर जो दर्द होता होगा , उसका बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है.... लेकिन इन सब के बाद भी साउदी औरत पश्चिम की दखलंदाजी पसंद नही करती , अपने बलबूते पर ही अपना अधिकार पाना चाहती है... साउदी लेखिका जैनब हनीफी जिनती बेबाकी से लिखना पसंद करती थी उतना ही किंगडम इस बात की इजाज़त नही देता था...अपने कलम की आग से विचारों में गर्मी पैदा करने के लिए लिखना ज़रूरी समझा इसलिए ब्रिटेन जाकर रहने लगी... यूं ट्यूब पर इस इंटरव्यू को दिखने का एक मुख्य कारण है जैनब का निडर होकर बात करना... वही कह सकती हैं कि औरतों के पक्ष में कही हदीस मर्दों को सही नही लगती या उनका कोई वजूद ही नही है


शनिवार, 14 जून 2008

जैसा देश वैसा भेष

साउदी अरब में अब तक के गुज़रे सालों का हिसाब किताब करने लगूँ तो लगेगा कि खोया कम ही है...पाया ज्यादा है... बहुत कुछ सीखा है... जो शायद किसी और जगह सीखना मुमकिन होता क्योंकि प्रजातन्त्र से राजतन्त्र में आकर रहने का अलग ही अनुभव हुआ... २१वी सदी में भी साउदी अरब की संस्कृति, वहाँ का रहन सहन बदला नही है शायद बदलने में अभी और वक्त लगेगा ... . ..हाँ सुरसा की तरह मुंह खोले महंगाई बढ़ती जा रही है... फ़िर भी कुछ ज़रूरी चीजों की कीमत नही बदली जैसे कि एक रियाल की पेप्सी और एक ही रियाल का खुबुज़(रोटी) ..

१९८६ में जब साउदी अरब की राजधानी रियाद पहुँची थी तो मन में कई शंकायें थी..अनकही कहानियाँ थी जिन्हें याद करते तो सिरहन से होती लेकिन फ़िर याद आती अपने देश की... वहाँ भी हर अखबार में हर दिन चोरी, लूटमार और खून खराबे की खबरें होती.... सावधानी से चलने की बात की जाती... किसी भी लावारिस पड़ी वस्तु को हाथ लगाने से मनाही.... गहने कम से कम पहनने की ताकीद ... अजनबी आदमी से बातचीत करने की मनाही... घर के नौकरों की पुलिस में पूरी जानकारी देना आदि आदि ... इस तरह की और भी कई सावधानियाँ बरतने की बात की जाती....

बस तो यही सोच कर हमने नयी जिन्दगी शुरू कर दी... धीरे धीरे वहाँ के तौर तरीके समझने लगे... बाज़ार जाने के लिए कब निकलना है.... कब फैमिली डे है...कब सिर्फ़ औरतें जा सकती हैं..सुबह का वक़्त शोपिंग का सबसे अच्छा वक्त मन जाता... . शुक्रवार के दिन तो कोशिश करते ही निकलें.... लेबर, वर्करज से बाज़ार भरे रहते .... बुरका पहन कर ही बाहर निकलना है तो नए नए बुर्के खरीद कर अलमारी में टांग लिए गए... बस इत्मीनान.... जैसा देश वैसा भेष.... मान कर चलने में भलाई समझी...

साउदी में अधिकतर औरतें डाक्टर, टीचर, नर्स और नौकरानी का ही काम कर सकती हैं. साउदी औरत सरकारी महकमों में और बैंकों में देखी जाती हैं...अब तो अस्पताल , होटल और बैंक के काउन्टर पर भी साउदी लड़कियां देखी जाती हैं लेकिन पूरे हिजाब में...

हमने भी घर की चारदीवारी से बाहर निकलने का सबब ढूँढ ही लिया और इंडियन एम्बसी के स्कूल में हिन्दी टीचर लग गये... फ़िर बदमज़ा जिन्दगी का कुछ-कुछ मज़ा आने लगा... फ़िर भी ख्याल रखते कि कब और कहाँ कैसे जाना है... स्कूल जाने से अकेले बाहर निकलने का डर थोड़ा कम हुआ... बुरका पहन कर दोनों बच्चों को साथ लेकर एक दो दोस्तों के घर पैदल ही निकल जाते लेकिन घर में काम करने वाले एक बंगला देशी बुजुर्ग ने अकेले जाने से मना कर दिया....... घर का काम ख़त्म होने पर साथ चल कर छोड़ कर आते... अपने देश से दूर रहने पर रिश्तो की कीमत पता चलती है... अपनी जुबान बोलने वाले अपने से ही लगते हैं...चाहे पाकिस्तान के हों या बंगलादेश और श्रीलंका के हों... हिंदू मुस्लमान और ईसाई एक ही फ्लैट में , एक ही रसोई में मिलजुल कर खाते पीते अपनों से दूर रह पाते हैं...

अकेली काम करने वाली डाक्टर और नर्स अस्पताल से मिले घरों में रहती हैं और वहीं की वेंन और बसों में सफर करती हैं.... टैक्सी में भी कभी कभी आना जाना होता है .. सभी स्कूलों की बसें हैं जिसमे पर्दे लगे रहते हैं... कुछ लोग अपनी कार से छोड़ना लाना करते हैं... कभी कभी टैक्सी से भी जाना पड़े तो कोई डर नही है, हाँ अकेले होने पर हिन्दी-उर्दू बोलने वाले की ही टैक्सी रोकी जाती है.... सभी लोग अपनी जुबान जानने वाले की टैक्सी में सफर करने में आसानी महसूस करते हैं... एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है बाहर निकलते वक्त अपना परिचय पत्र साथ लेना...परिचय पत्र मतलब इकामा . हम विजय के इकामा की फोटोकापी रखते थे.... जब बच्चे बड़े हुए..उनकी जेब में भी एक एक फोटोकापी रखनी शुरू कर दी... . कभी अकेले किसी दोस्त या टीचर के घर गए तो ज़रूरी होता.... .इसके साथ जुड़ी एक रोचक घटना का ज़िक्र करना चाहूँगी.. मेरे एक टीचर सहेली जिसके पास अपना इकामा था , शादी के बाद भी उसी इकामे पर काम करती रही. पति के इकामे में नाम डालने की ज़रूरत नही समझी. मतलब यह कि पति और पत्नी दोनों के अलग अलग इकामे. दोनों ने सपने में भी नही सोचा था कि कभी उन्हें पकड़ लिया जाएगा... बस एक दिन दोनों कि शामत ही गयी... दोनों पुलिस द्वारा पकड़ लिए गये... शुक्र खुदा का कि दोनों को अच्छी अरबी आती थी जो एक लम्बी बातचीत और बहस करके उन्हें समझा पाए कि दोनों पति पत्नी है और जल्दी ही पति के इकामे में पत्नी का नाम दर्ज हो जाएगा.

इसी तरह से एक बार पतिदेव विजय को मना लिया गया कि मेरी सहेली को उसके घर से लेकर आना है... पहले तो ना नुकर की फ़िर मान गये.. जो डरते हैं शायद वही मुसीबत में जल्दी फंसते हैं, हुआ भी वही.... रास्ते में चैकिंग हुई... महाशय रोक लिए गये... अच्छा था कि मेरी सहेली पीछे बैठी थी.... आगे बैठी होती तो और मुसीबत खड़ी हो जाती.... दोनों की हालत ख़राब....लेकिन खुदा मेहरबान तो बाल भी बांका नही हो सकता..पूछताछ करने पर अपने को कंपनी ड्राईवर कह कर जान बचा कर भागे तो कसम खा ली कि अकेले किसी महिला को लाना है छोड़ना है....

समय बदल रहा है चाहे धीमे रफ़्तार में...लेकिन फ़िर भी बदल रहा है... साउदी औरत हो या किसी और देश की औरत हो .... कहीं सब करने की आजादी और हर काम में सहयोग देने का भाव..और कहीं... औरत को कुछ समझने का भाव भी पाया जाता है...

बीबीसी ने आठ साउदी लड़कियों का इंटरव्यू लिया जिसमे उन्होंने अपने बारे में बताया... इसके अलावा आम औरत का जीवन, जिसमे गहने कपड़े कार और बड़े विला में हर सुख सुविधा का सामान होता है.... पाकर भी शायद खुश है या नही ...कोई नही जान सकता .... कभी कभी हलकी घुटी सी अन्दर की आवाज़ सुनाई दे जाती है...पर उसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है बस.... कुछ करने के लिए तो उन्हें ही आगे बढ़ना है...हालांकि कुछ घटनायें ऐसी हो जाती हैं जिन्हें बाहर की दुनिया में सुना जाता है... अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठाई जाती है...


जिन्दगी में अच्छे अनुभव भी होते हैं... जिनकी कीमत बुरे अनुभवों के बाद और बढ जाती है.... घर परिवार , काम और दोस्त ... बस यही दुनिया ...हर वीकएंड पर मिलना ... हर महीने दूर रेगिस्तान में पिकनिक पर जाना.... वीरवार की सुबह सहेलियों के साथ मार्केट जाना... पति बेबी सिटींग करके खुश.... एक बार बस कहने की देर है की जहाँ हम जाना चाहें फौरन ख़ुद आकर या ड्राईवर भेज कर पहुँचा दिया जाता... पैदल चलने का कोई रिवाज़ ही नही वहाँ पर.... ख़ास कर औरतों के लिए... लेकिन कुछ अस्पतालों के बाहर चारों ओर सैर का सुंदर फुटपाथ बना है... जिस पर कभी हम भी सैर करते थे..
अब तो बस सपनों में ही रियाद जाते हैं... दम्माम के घर की चारदीवारी में कैसे गुज़रती है अगली पोस्ट में....


मंगलवार, 10 जून 2008

तस्वीरों का सफर ... !

दमाम से कुछ दूरी पर देहरान में एक नया मॉल खुला. शाम को जब तक पहुँचते सला का वक्त हो गया था... सो हमने विंडो शौपिंग का ही सबसे पहले आनंद लिया... उसी दौरान अपने मोबाइल से कुछ तस्वीरें लेने का मन हो गया... बस किसी तरह इच्छा पूरी कर ही ली ..






देखा हमने
मॉल देहरान का
नया नवेला








पल दो पल
बातों में मशगूल
पिता औ' पुत्र







दोस्त मिले दो
दम लेने को बैठे
कॉफी थे पीते








सला का वक्त
पर्दे में गपशप
दुकाने बंद





फैलती खुश्बू
सिनामन रोल की
मुँह में पानी













बुर्के में बंद
ख्वाहिशे हैं हज़ार
पूरी हों अब

रविवार, 8 जून 2008

आभासी दुनिया में नाई की दुकान खुली है ....

हम जहाँ हैं वहाँ शौहर या शौफर ही बाहर ले जा सकते है.... दोनो बेटों को बारबर शॉप ले जाने की बात हुई तो विद्युत ने हमें लैप टॉप के सामने बिठा दिया और आँखें बंद करने को कहा.... कानों में हेड फोन लगा कर आँखें बंद करने को कहा ...... बस हम पहुँच गए बारबर शॉप ....आप भी घर बैठे बैठे ही नाई की दुकान जा सकते हैं......


अरे रुकिए.... क्लिक न करिये.. ..

नाई की दुकान में अन्दर जाने से पहले आपके कानों में हेड फोन होने चाहिए...

पहले हेड फोन लगाईये ..... आवाज़ को सेट कीजिये.. कर लिया ??

आँखें बंद कीजिये.... अब लुत्फ़ लीजिये.....





रविवार के दिन घर बैठे-बैठे मुफ्त में ही ......

कैसा लगा !!!!!! ज़रूर बताइए !!!!

बुधवार, 4 जून 2008

बेतरतीब सोच के कई चेहरे ...



३० मई की रात को सब काम निपटा कर आभासी दुनिया की सैर की सोच कर ब्लॉगजगत में दाखिल हुए तो जीमेल के अकाउंट से रीडर खोला.... सामने ज्ञान जी की नई पोस्ट ' भोर का सपना' खुली ,,,जिसे पढ़ते हुए ' हैंग ग्लाइड ' को नज़र भर देखने के लिए विकी पीडिया खोलना पडा... मन ही मन कामना की कि ज्ञान जी का भोर का सपना उनकी तरक्की करता हुआ सच हो जाए .... पोस्ट पढ़ते गए आगे बढ़ते गए..... हरे रंग का दूसरा बॉक्स मन को ललचा रहा था... जिसमे पोस्ट का शीर्षक 'सुखी एक बन्दर परिवार ,दुखिया सब संसार ! ' हमे पढने को बाध्य कर रहा था क्योंकि बंदरों से हमारा पुराना बैर भी है और उनके बारे में बहुत कुछ जानने की इच्छा भी.(इस .विषय .पर भी कभी लिखेंगे ) .. अब हम अरविंद जी की उस रोचक पोस्ट को पढने उनके ब्लॉग पहुँच गए... उसी हरे बॉक्स में ज्ञान जी की अपनी एक पोस्ट का नाम देखा तो कैसे छोड़ देते.... उनकी पोस्ट "रोज दस से ज्यादा ब्लॉग-पोस्ट पढ़ना हानिकारक है " देख कर तो हमारा सर चकराने लगा...होश उड़ गए .... ज्यों ज्यों पढ़ रहे थे ...दिल बैठता जा रहा था...... बहुत सी बातें शत प्रति शत हमारे ऊपर सही बैठ रही थी.... "स्टेटेस्टिकली अगर आप 10 ब्लॉग पोस्ट पढ़ते हैं तो उसमें से 6.23 पोस्ट सिनिकल और आत्मकेन्द्रित होंगी. रेण्डम सैम्पल सर्वे के अनुसार 62.3% पोस्ट जो फीरोमोन स्रवित करती हैं, उनसे मानसिक कैमिकल बैलेंस में सामान्य थ्रेशहोल्ड से ज्यादा हानिकारक परिवर्तन होते हैं. इन परिवर्तनो से व्यक्ति में अपने प्रति शंका, चिड़चिड़ापन, लोगों-समाज-देश-व्यवस्था-विश्व के प्रति “सब निस्सार है” जैसे भाव बढ़ने लगते हैं. अगर यह कार्य (यानि अन-मोडरेटेड ब्लॉग पठन) सतत जारी रहता है तो सुधार की सीमा के परे तक स्वास्थ बिगड़ सकता है." "सब निस्सार है.".का भाव तो था ही लेकिन "अपने प्रति शंका" का भाव तो और भी गहरा था कि हम अच्छे ब्लॉगर नही हैं..... और तो और अपने लेखन पर भी शक होने लगा कि .....शायद हमारा लेखन भी किसी काम का नही ..... व्यस्त होने के बाद भी अनगिनत ब्लॉग पढ़ डालते, चाहे प्रतिक्रिया देने में आलस कर जाते या समझते कि शायद वह भी सही ना कर पायें सो टिप्पणी देना छोड़ दिया..... ज्ञान जी की इस पोस्ट को पढ़ने के बाद तो हम 'आर सी मिश्रा जी ' की पोस्ट बस देख भर आए....डॉलर पाने का मोह भी भूल गए.....
ज्ञान जी की एक ही पोस्ट में ५ ब्लोग्ज़ तो हम पढ़ ही चुके हैं .... "साउथ एशियन देशों में जहां अब ब्लॉग लिखने-पढ़ने का चलन बढ़ रहा है, बड़ी तेजी से म्यूटेट होते पाये गये हैं." यह पढ़ कर तो और चकरा गए कि क्या से क्या हो रहें हैं...इस चक्कर में न चाहते हुए भी और भी कई लिंक्स खोज डाले ...उन्हें ज्ञान जी के लिए यही लिंक कर रहें हैं,, शायद कुछ राह निकले कि आभासी दुनिया में म्यूटेट होते हम कहाँ पहुंचेगे... एक और लिंक जो नज़र में आया कि दूसरो के ब्लोग्ज़ पर टिप्पणी करने पर भी अपना नुक्सान है ....
जितना लिखा है उससे कहीं ज़्यादा सोच रहे थे....अब दिमाग थक सा गया है...बस कह दिया उसने ... गंभीर विषयों पर चिंतन तो होता ही रहता है ... लेकिन चिंता को चिता समान कहा गया है इसलिए चिंता को छोड़ कर कुछ देर के लिए आइये हम भी बच्चे बन जायें.. ...एक रोचक लिंक मिला है.....आप भी खोलें और चिंतामुक्त होकर खेलें......

सोमवार, 2 जून 2008

कई दिनों के बाद .....

कई दिनों तक कई जिम्मेंदारियां निभाते हुए चाह कर भी ब्लॉग पर लिखने का वक़्त ही नही मिला. सोचा था पतिदेव के घर जाकर मौका पाते ही जितने भी कागज़ रंगे हैं सब पोस्ट दर पोस्ट लिख दूँगी. जल्दी में अपने हिन्दी फोंट्स ले जाना भूल गयी. खैर ढूँढने पर कई लिंक्स मिले लेकिन सउदी सर्वर ऐसा की सब बेकार, इधर हम ठान चुके थे कि किसी भी तरह एक पोस्ट तो ज़रूर लिखेगे सो अब हिन्दी मीडिया की इस साइट में आकर ऐसा सम्भव हो पाया.
बस दुआ कर रही हूँ कि सर्वर डाउन न हो.

अभी अभी पतिदेव ऑफिस के लिए निकलें हैं और दोनों बच्चें सो रहें हैं. वरुण का लैपटॉप चुपचाप उसके कमरे से ले आए हैं और जो भी मन में आ रहा है लिख रहें हैं.

कई दिनों से चक्की रोई चूल्हा रहा उदास कि लय पर कुछ लिखने का मन कर रहा है ----

कई दिनों से चिट्टा रोया , चित्तचोर रहा उदास
कई दिनों से मैं भी रोई , हालत रही ख़राब ....
कई दिनों से काम कई थे, सौ सौ नही हज़ार
कई दिनों से जान अकेली, वक़्त बड़ा अज़ाब...

कई दिनों से काम किए, संवारा बच्चे - घरबार
कई दिनों की मेहनत रंग लाई, आधी नैया पार
कई दिनों की गिनती पूरी, बेटे दोनों पास ....
कई दिनों की सोई इच्छा पूरी हो गयी आज

बड़ा बेटा इंजिनियर बन गया ..... छोटे बेटे का स्कूल खत्म हुआ .... लेकिन जीवन रुकता कहाँ है.... नदिया की धारा जैसे आगे ही आगे बहता जाता है. आजकल सउदी अरब में हैं. छोटा बेटा १८ साल का होगा सो उसका परिचय कार्ड बनना है जिसे अरबी भाषा में इकामा कहते हैं. पूरे परिवार को ११ महीने बाहर रहने की इजाज़त मिलेगी.
दस दिन बाद दुबई लौटेंगे, दुबई के ही एक कॉलेज में छोटे बेटे का एंट्रेंस टेस्ट है. उसकी जिंदगी का एक नया अध्याय शुरू होगा. बड़े बेटे को दूसरी सफलता के लिए तैयार करना है.. लेकिन उससे पहले एक कहावत को चरितार्थ करना है.... सेहत हज़ार नियामत .....

अभी इतना ही ....हिन्दी लिखने का रास्ता मिल गया है ....

दम्माम की चारदीवारी में खाने पीने के बाद लिखना पढ़ना और संगीत सुनने का ही आनंद ले रहें हैं . बाहर जाने का मौका शाम को ही मिलता है सो.........

कई दिनों की चुप्पी टूटेगी, बातें होंगी हज़ार
कई दिनों की सिमटी यादें निकलेंगी हर बार ....