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सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

नए त्रिपदम 'हाइकु' - मन-प्रकृति



मैं मैं नहीं हूँ
जो हूँ वैसी नहीं हूँ
भ्रमित मन


छलिया है जो
पाखंड करता क्यों
नादान मन

प्रशंसा पाए
अहम ही ब्रह्रास्मि
तृप्त हो जाए


मोह पाश है
विश्व मकड़ी जाल
नहीं उलझो


सत्य का खोजी
प्रकाश स्वयं बन
तू ही आनन्दी

15 टिप्‍पणियां:

इरफ़ान ने कहा…

हाइकू का तो नहीं, आपके मन के उद्गार पता चले. द्वंद्व है.

annapurna ने कहा…

सुन्दर चित्र
अशांत भाव
अभिव्यक्ति वाह !

Unknown ने कहा…

सच की सुंदर अभिव्यक्ति ।

mamta ने कहा…

भाव और अभिव्यक्ति दोनों बहुत अच्छी।

अजय कुमार झा ने कहा…

meenakshi jee,
saadar abhivaadan. haeeku mein to aapkee maarak kshamtaa badh jaatee hai

बेनामी ने कहा…

मोह पाश है
विश्व मकड़ी जाल
नहीं उलझो
bahut khubsurat,
man ka har rang antarang har haiku se abhivyakta hota hai,bahut achha laga apke haiku padhkar.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

जितने सुंदर शब्द उतने ही सुंदर भाव...वाह.
नीरज

काकेश ने कहा…

khoobsoorat.

बालकिशन ने कहा…

अच्छी, बहुत अच्छी कविता.
सच की अतिसुंदर अभिव्यक्ति

अजित वडनेरकर ने कहा…

सच्चा सफर है यह। अन्तर्यात्रा - जो है बेहद ज़रूरी। बहुत सुंदर भाव...

पारुल "पुखराज" ने कहा…

प्रशंसा पाए
अहम ही ब्रह्रास्मि
तृप्त हो जाए

मन यही चाहे……है न दी ? सुंदर भाव

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर!!

anuradha srivastav ने कहा…

पसंद आये........

Reetesh Gupta ने कहा…

सत्य का खोजी
प्रकाश स्वयं बन
तू ही आनन्दी

बहुत सुंदर ..अच्छे लगे आपके सभी हाईकु...बधाई

मीनाक्षी ने कहा…

आप सबका धन्यवाद... शायद हम सब का सफर एक .. शायद डगर भी एक ... !