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शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2007

मेरे प्यारे काका सर्प न्यारे हैं बड़े !

माँ, आपकी अनुमति से आज अपनी इस कविता को पन्नों की कैद से आज़ाद कर रही हूँ. आज सुबह का पहला ब्लॉग जो खुला उसे पढ़कर बहुत सी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं. वे सभी डर जो मुझे सताते थे वे किसी ओर को भी सताते हैं जानकर तसल्ली हुई कि मैं अकेली नहीं इस दुनिया में. मेरे जैसे बहुत हैं जो अन्दर ही अन्दर एक डर से जकड़े हुए हैं. कुछ लोग स्वीकर कर लेते हैं और कुछ लोग इस डर को चाह कर भी दिखा नहीं पाते.

(इस कविता में श्री अज्ञेय जी की कविता के एक अंश का सहारा लिया गया है जिससे कविता आगे बढ़ पाई. सही में कहा जाए तो मेरा एक सपना है और था कि उनसे एक मुलाकात कर पाती)


" मेरे आँगन में नीम के पेड़ तले

सदियों से एक विषधर हैं पले !


मेरे प्यारे काका सर्प न्यारे हैं बड़े

माथे पर उनके मणिमाणिक हैं जड़ें !


होती हर सन्ध्या मेरी काका के संग

बैठ कर मैं भी रंग जाती उनके रंग !


लेकिन आज जाने क्यों उदास थे पड़े

बेचैनी से दूध का कटोरा किए थे परे !


खड़ी थी व्याकुल मैं आँखों में आसूँ भरे

मुझे देख पीड़ा में घाव उनके हुए हरे !


सम्मानित अतिथि एक हमारे घर थे विराजे

जाने-माने कविराज हमारे घर थे जो पधारे !


आँगन में आए थे टहलने , देखा सर्पराज को

आश्चर्य चकित हुए, देखा जब नागराज को !


मन में उनके प्रश्न कई एक साथ जन्मे

उत्तर एक पाने को कविराज थे मचले !


पूछने लगे उत्साहित होकर सर्पराज से ----

"हे साँप , तुम सभ्य हुए नहीं, न होगे

नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया

फिर कैसे सीखा डसना , विष कहाँ से पाया !"


मैं सुनकर सकते में आई , फिर सँभली

खिसियानी बिल्ली सी फीकी हँसी हँस दी !


फिर बोली विषधर से, अपने प्यारे काका से

यह तो सीधा कटाक्ष हुआ है शहरी मानव पे !


मेरी तुलना मानव से क्यों -- काका मेरे चिल्लाए

मानव से तुलना क्यों यह सोच-सोच भन्नाए !


विषधर मेरा नाम जैसा अन्दर , बाहर भी वैसा

विष उगलना मेरा काम, अन्दर बाहर एक जैसा !


मानव-मन से कब विष उगलेगा, कब अमृत बरसेगा

उसका मन पाषाण रहेगा या मोम सा भी पिघलेगा !


कोई न जाने, वो खुद न जाने , मायाकार स्वयं न जाने

फिर मेरी तुलना मानव से क्यों मेरा मन यह न माने !


करारी चोट लगी सुनकर अपने काका की बातें

मन तड़पा रोया काका की बातें थीं गहरी घातें !


मैंने मानव-जन्म क्यों पाया, सोच-सोच मन अकुलाया

विषधर काका जैसे मैं भी हो जाऊँ मन मेरा भरमाया !!!!