विद्युत रेखा हूँ नीले अंबर की
स्वाति बूँद हूँ नील गगन की !
गति हूँ बल हूँ विनाश की
अमृत-धारा बनती विकास की !
अग्नि-कण हूँ ज्योति ज्ञान की
मैं गहरी छाया भी अज्ञान की !
मैं मूरत हूँ सब में स्नेह भाव की
छवि भी है सबमें घृणा भाव की !
वर्षा करती हूँ मैं करुणा की
अर्चना भी करती हूँ पाषाण की !
सरल मुस्कान हूँ मैं शैशव की
कुटिलता भी हूँ मैं मानव की !!