स्वाधीनता आन्दोलन के सन 1920 के बाद के दौर में नई पीढ़ी का यह नवीनता के प्रति मुग्ध आकर्षण अपने में अनेक पहलुओं को समेटे था जैसे कल्पनाशीलता, स्वच्छंदता, पुरातन के विरुद्ध संघर्ष, नए समाज का स्वप्न और स्वाधीन भारत के नवप्रभात की अभिलाषा.
निराला जी ने 'परिमल' की भूमिका मे कहा है, "हिन्दी उद्यान में अभी प्रभात काल ही की स्वर्णछटा फैली है. उसमें सोने के तारों का बुना कल्पना का जाल ही अभी है, जिससे किशोर कवियों ने अनंत विस्तृत नील प्रकृति को प्रतिमा में बाँधने की चेष्टाएँ की हैं, उसे प्रभात के विविध वर्णों से चमकती हुई अनेक रूपों में सुन्दर देखकर . वे हिन्दी के एक काल के शुष्क साहित्य ह्रदयों में इन मनोहर प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित करने का विचार कर रहे हैं. इसलिए अभी जागरण के मनोहर चित्र, आह्लाद परिचय आदि जीवन के प्राथमिक चिह्न ही देख पड़ते हैं, विहंगों का मधुर कल कूजन, स्वास्थ्यप्रद स्पर्श सुखकर शीतल वायु, दूर तक फैलई हुई प्रकृति के ह्रदय की हरेयाली, अनंतवाहिनी नदियों का प्रणय-चंचल वक्ष:स्थल, लहरो पर कामनाओं की उज्ज्वल किरणें, चारों ओर बाल-प्रकृति की सुकुमार चपल दृष्टि."
राष्ट्रीयता स्वाधीनता आन्दोलन की जो तरंग 1920 के बाद शुरु होती है , उसी नव जागृति की पृष्ठभूमि में छायावादी कविताएँ लिखी जा रही थीं. पंत जी की 'पल्लव' और निराला जी के मुक्त छंद शीघ्र ही लोकप्रिय हो गए. प्रसाद जी के नाटको के गीत अपनी गेयता के कारण प्रसिद्ध हुए. छायावाद के समय भाषा ने जो रूप धारण किया, उसी का यह परिणाम हुआ कि खड़ी बोली में भी कविता कविता सी लगने लगी.
फिर समय बदला, प्रगति के पथ पर कविता आगे बढ़ी, नए नए प्रयोग करती हुई कविता को बदलते समय ने एक नए रूप में हमारे सामने ला खड़ा किया. आधुनिक नारी सी नई संवेदना और शिल्प के साथ नई कविता का रूप ही अलग है. अगर इस विषय पर चर्चा शुरु की तो बस आप मुझे ब्लॉग निकाला ही दे देंगे.
अब आप लेख पढने आ ही गए हैं तो इस कविता पर ही एक नज़र डाल कर एक शीर्षक भी देते जाइए :)
हरे भरे तेरे तृण ऐसे
रोम-रोम पुलकित हों जैसे
स्नेहिल सदा स्पर्श क्यों तेरा?
रीता फिर भी मन क्यों मेरा ?
कोमलाँगी तुम प्यारी-प्यारी
मनमोहिनी न्यारी-न्यारी
क्यों काँटे सी चुभती हो?
क्यों रूखी सी दिखती हो?
धानी आँचल से ढकी हुई
पलकें तेरी हैं झुकीं हुईं
पलक उठाई क्यों तुमने ?
नज़र मिलाई क्यों तुमने?
कहती हो अपनी यदा-कदा
रहती हो तुम मौन सदा
आवाज़ उठाई क्यों तुमने ?
भाव दिखाए क्यों तुमने ?